Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 188
________________ श्राग्न ॥ए ॥ त्य प्रत्ये टुं श्रादरेकरी पूजु ढुं ॥॥ ॥ इति षष्ठी नैवेद्य पूजा ॥ टाल्यो पापनो स मूह जेणे, नित्ये उदयवंत, त्रण विश्वने एटले त्रण जगतने जोवानी कला तेणेकरी सहित एवा नगवंत प्रत्ये नक्तियें करी महारुतम जे अज्ञान ते शमाववामाटे शमताना समुख एवा जगवंत प्रत्ये जक्तियें करी हुँ दीपक करुं हुं ॥१॥ ॥इति सप्तमी दीपक विध्वस्तपापपटलस्य सदोदितस्य, विश्वावलोकनकलाकलितस्य नक्त्या ॥ न ! Malयोतयामि पुरतो जिननायकस्य, दीपं तमःप्रशमनाय शमांबुराशेः॥२॥इति । दीपकपूजा ॥ तीर्थोदकै(तमलैरमलस्वन्नावं, शश्वन्नदीह्रदसरोवरसागरोत्थैः ॥ रिमारमदमोहमहाहिताय, संसारतापशमनाय जिनार्चयामि ॥॥ पूजा॥हे जिन! निरंतर निर्मल ने खनाव जेमनो, कंदर्प तथा श्राउ मद श्रने मोहरूप सर्प तेने हणवाने गरुम समान एवा तमने नदी, प्रह, सरोवर श्रने समुफ तेना निर्मल||| पाणीयें करी संसारनो ताप शमाववाने अर्थे हुँ पूनुं हुं ॥ ॥ ॥ इत्यष्टमी जल | Jain Education . onal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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