Book Title: Laghu Prakaran Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
आज
॥ ए
अन्यथा जीना पग उपर मल लागे, तेवारें वली पग अपवित्र थाय, तथा ते जीजेला पगे जीव लागे तेमनी घात थाय, तेथी महोटुं पाप लागे॥ १०॥ ॥ घरना देरा सर पासें जश्ने धरती पूंज्या पली धोयेलां पूजानां वस्त्र पहेरीने थाउ पडनो मुखको श बांधे ॥ ११॥ ॥ देवपूजाने अवसरें एक मन, बीजं वचन, त्रीजी काया, चो)
ए॥ अन्यथा मलसंश्लेषादपवित्रौ पुनः पदौ ॥ तल्लीनजीवघातेन, नवे घा पातकं महत् ॥ १०॥ गृहचैत्यांतिकं गत्वा, नूमिसंमार्जनादनु ॥ परिधान य च वस्त्राणि, मुखकोशं दधात्यथ ॥११॥ मनोवाकायवस्त्रेषु, नपज्योपकर | स्थितौ॥शुद्धिःसप्तविधा कार्या, देवतापूजनदणे॥१शापुमान् परिदधेन्न स्त्रीवस्त्रं । वस्त्र, पांचमी नूमि, बहां पूजानां उपकरण श्रने सातमी स्थिति स्थैर्य, ए सात वानां देव पूजवाने अवसरे शुद्ध करवां ॥ १२ ॥ ॥ पूजा करती वखतें क्यारे पण पुरुचे ॥ स्त्रीनुं वस्त्र पहेर नही, अने स्त्रीयें पुरुष, वस्त्र न पहेरवं. जो पहेरे, तो कामनी त
॥
Jain Editional
For Personal and Private Use Only
Mallainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222