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(७)
२-अगर तुमको यह अन्देशा हो कि (कई बीवियों मेंज्यादा से ज्यादा चार ) बराबरी के साथ बर्ताव न कर सकोगे तो एक ही बीवी या जो तुम्हारे पास है बस है ।
३-यतीमों का माल उनके हवाले कर दो, और ऐसा न करना कि उनके बड़े होने के अन्देशे से फुजूलखर्ची करके जल्दी जल्दी उनका माल खा पी डालो ।.."जो लोग नाहक यतीमों का माल खा जाते हैं वे अपने पेटों में आग भरते हैं।
__४-उन लोगों की तौबा कूबल नहीं जो उम्र भर बुरे काम करते रहे।
५-तुम्हें जायज़ नहीं है कि औरतों को बपौती समझकर जबरदस्ती उन पर कटजा करलो । जो कुछ तुमने उनको दिया है उसमें से कुछ छीन लेने की नीयत से उनको कैद न रक्खो। बीवियों के साथ हुस्न सलूक से रहो भले ही वे तुम्हें नापसन्द हों, अजब नहीं कि कोई चीज़ तुम्हें नापसन्द हो और अल्लाह उसमें बहुतसी खैर दे।
६--अगर तुम्हारा इरादा एक बीवी को बदल कर उसकी जगह दूसरी बीवी करने का हो तो जो तुमने पहिली बीवी को बहुत सा माल दे दिया हो उसमें से कुछ भी वापिस न लेना।
७-जिन औरतों के साथ तुम्हारे बाप ने निकाह किया तुम उनके साथ निकाह न करना मगर जो हो चुका सो हो चुका। यह बड़ी बेहयाई और गजब की बात थी और बहुत ही बरा दस्तूर था । तुम्हारी माएं बेटियां बहिनें फियां खालाएं (मौसी)
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