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सहन करलेते हैं उनके काम को तो और भी अच्छा बतलाता है। इससे मालूम होता है कि इसलाम अमन चाहता है, अहिंसा चाहता है ।)
५-अल्लाह उन लोगों के साथ है जो परहेजगारी करते हैं (संयमी हैं) और लोगों के साथ भलाई से पेश आते हैं ।
१७--सूरे बनी इस्राइल १-अगर तुम नेकी करोगे तो अपने ही लिये करोगे।
२--मां बाप से जच्छी तरह पेश आना । अगर इन दोनों में से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुंचे तो (इससे तुझ कितनी भी तकलीफ़ क्यों न हो) उफ़ तक न करना और मुहब्बत से खाकसारी का पहलू उनके आगे झुकाए रखना ।
३-रिश्तेदार, गरीब, और मुसाफिर को उसका हक पहुँचात. रहो और बेजा मत उड़ाओ ( ऐयाशी न करो) क्योंकि बेजा उड़ानेवाले शैतानों के भाई हैं।
अगर तुम को पर्वर्दिगार के फज्ल के इन्तिजार में जिसकी तुमको उम्मीद हो इनसे मुँह फेरना पड़े [यानी तुम गरीबों वगैरह की मदद न कर सको तो नर्मी से इन्हें समझादो। [शिडको मत)
५ अपना हाथ न तो इतना सिकोड़ो कि (गोया) गर्दन से बंधा हो न बिलकुल उसको फैला ही दो, ऐसा करोगे तो तुम ऐसे ही बैठे रह जाओगे कि लोग तुमको मलामत भी करेंगे और तुम ख़ाली हाथ भी हो जाओगे।
६--गरीबी के डर से अपनी औलाद को न मार डाला करो
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