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टुकड़े कर डाले (लेकिन आखिरकार) सब हमारी ही तरफ़ को लौटकर आने वाले हैं। [धर्मों की एकता पर इस्लाम काफ़ी जार देता है।]
२२-सूरे हज्ज १-हमने हर एक उम्मत के लिये (इबादत के) तरीके करार दिये कि वह उन पर चलते हैं। .
(हर एक कौम के पूजापाठ के तरीके जुदा जुदा हैं इसलाम किसी के तरीके में बाधा नहीं डालना चाहता)
२४-सूरे नूर १. मुसलमानो, अपने घरों के सिवा (दूसरे) घरों में घर बालों से पूछे बिदून और उनसे अस्सलामु अलैकुम् ( तुम पर शान्ति हो) कहे बिदून न जाया करो। अगर तुम को मालूम हो कि घर में कोई आदमी मौजूद नहीं तो जब तक तुम्हें खास इजाजत न हो उनमें नं जाओ, और अगर तुम स कहा जाय लौट जाओ तो लौट आओ। यह [लौट आना ] तुम्हारे लिये ज्यादह सफाई की बात है। ......२-मुसलमानों से कहो कि अपनी नजर..नीची स्वखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें। . .
[बुरी नजर से स्त्रियों को देखना या घरना, काम के अंगों को दिलना इसलाम में मना है। स्त्रियों के लिये भी ऐसा ही हुक्म है ।
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