Book Title: Kuran ki Zaki
Author(s): Swami Satyabhakta
Publisher: Swami Satyabhakta

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Page 29
________________ तुम्हारा दोस्त हो जायगा । हुस्न मदारात उन्हीं लोगो को दी जातो है जो सब करते हैं । ४२-सूरे शूरा (ऐ पैगम्बर ) तुम उन (लोगों ) पर कुछ तैनात हो नहीं । अरबी कुरान हमने तुम्हारी तरफ नाजिल किया है ताकि तुम मक्के के रहने वालों को और जो लोग मक के आसपास (बसते हैं) उनको [ पाप ) से डराओ। [ कुरान अरबी में क्या उत। इम की वजह यहां साफ़ दी गई है यही कारण है कि कुरान का ज्यादह हिस्सा अरबी के उस जमाने के खाम तौर के मुताबिक है । फिरभी करानमें ऐसी बातें भरी पड़ी हैं जो हर ज़माने और हर मुल्क के लिये मुफीद हैं, उनका ( इस्तेमाल ) उपयोग सभी को करना चाहिये। हर धर्म-शास्त्र में । ऐसी बातें बहुतसी रहती हैं पर विवेक और आदर से इन शास्त्रों को देखा जाय तो इन सब बातों की उपयोगिता समझ में आ सकती है। ४९ सूरे हुजुरात १-अरब के रेगिस्तानी लोग कहते हैं कि हम ईमान लाये। कहदो कि तुम ईमान नहीं लाये। हां, कहते हा कि तुम ईमान लाये । [अपने को मुसलमान कहने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता जबतक उस के काम मुसलमान के से नेक न हों ] ५७ सूरे हदीद .. १-तुम लोग कहीं भी रहो वह तुम्हारे साथ है और.जो कुछ तुम किया करते हो वह देखता है। .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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