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कुरान की झाँकी
स्वामी सत्यभक संस्थापक सत्याश्रम
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प्रस्तावना
करान समुद्र के समान एक महान ग्रन्थ है, उसकी थाह ना और उसमें से रत्न ढूँढ निकालना एक साधारण काम नहीं । इसके लिए समय, योग्यता, रूचि और निष्पक्ष दृष्टि की आवकता है जो किसी किसी में ही सुलभ हैं । यही कारण है कि त मे लोग जिनमें ऐसे लोग भी कम नहीं होते हैं जिन्हें शिक्षित हक विद्वान भी कहा जाला है, कुरान के नाम पर मनचाही बातें इ दिया करते हैं । एक तरफ़ मुसलमान विना समझेबूझे मनहे गीत गालिया करते हैं दूसरी तरफ़ गैरमुसलमान मनचाही दा कर लिया करते हैं । मज़हब का घमंड लोगों में यूं ही रहता
और वह ऐसी बातों से और बढ़ता है जिससे वैर और झगड़े' दा होते हैं और धर्म के नाम पर अधर्म का, फरिश्ते के नाम पर तान का, नंगा नाच होता है ।
दुर्भाग्य यह है कि लोग दूसरे के धर्म ग्रन्थों को नहीं पढ़ते । दे लोग एक दूसरे के धर्म ग्रन्थों को पढ़ें और अपने अपने मज। के ग्रन्थ पढ़ने के साथ साथ दूसरे धर्म ग्रन्थों को भी ठीक ठीक मझें तो कोई वजह नहीं है कि यह मजहब जो आज घमंड वैर न और संघर्ष का अड्डा बना हुआ है, प्रेम और शान्ति का घर
बन जाय । श्री. सत्यभक्तजी ने इसी ध्येय को नन रखते हुये यह छोटी सी पुस्तक लिखी है। मन लोगों के १ कुरान सरखे विशाल ग्रन्थ को पढ़ने के लिये समय रुचि या यता नहीं है वे भी इस पुस्तिका का उपयोग कर सकते हैं । सलमान और गैर मुसलमान, दोनों के लिये यह पुस्तक बहुत पयोगी है । बहुत से मुसलमान कुरान नहीं पढ़ते या नहीं पढ़पाते
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इस लिए मजहब के नाम पर ऐसी हरकतें कर बैठते हैं जो कुरान की नसीहतों और कुरान के हुक्मों के बिल्कुल खिलाफ हैं। ऐसे मुसलमान इस पुस्तक को पढ़ कर अपनी भूल सुधार सकते हैं । बहुतसे गैरमुसलमान कुरान को पढ़े बिना इसलाम और मुसलमानों के बारे में गलतफहमियों के शिकार हो जाते हैं और उन के बारे में बेहूदी बात कह दिया करते हैं जो झूठी और नुकसानदेह होती हैं। ऐसे लोग भी 'कुरान की झाँकी, देखकर अपने भ्रम का निराकरण कर सकते हैं। ___ 'कुरान की झाँकी' में कुरान के उपदेश कुरान के ही शब्दों में रखे गए हैं, कहीं कहीं मतलब को साफ़ करने के लिए कोष्टक में अलग पैराग्राफ बना कर सत्यभक्तजी ने अपना मत भी दे दिया है जिससे पाठकों को समझने में सहूलियत हो।
श्री. सत्यभक्त जी सर्व-धर्म-समभाव के प्रणेता हैं। आपका विश्वास है कि सर्व धर्म-समभाव के बिना मजहबों के बाहमी अगड़े नहीं मिट सकते, मानवता का प्रचार नहीं हो सकता। इसीलिये आपकी यह इच्छा है कि सभी धर्मों के मलग्रन्थों के सार इसी तरह की छोटी छोटी किताबों के रूप में रखे जाने चाहिए ताकि थोडे समय में थोड़ी पढ़ाई से और थोड़े खर्च में लोग अपने और दूसरों के धर्मग्रन्थों को ठीक ठीक समझ सकें।
हमारी इच्छा है कि यह पुस्तक घर घर में पहुँचे, और सब मुसलमान व गैरमुसलमान इसे पढ़ें । हम आशा करते हैं कि श्री. सत्यभक्तजी के इस प्रयत्न का पूरा पूरा सदुपयोग किया जायगा।
-रघुवीरशरण दिवाकर
बी. ए., एल-एल. बी.
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कुरान की झाँकी
...का . १०
१ मूरे फातिहा . १-हर तरह की तारीफ़ खुदा हो, को है।
२ मूरे वकर.. .......... १-बेशक मुसलमान और यहूदी और ईसाई और साइबी इनमें से जो लोग अल्लाह पर और रोजे आखिरत पर ईमान लायें और अच्छे काम करते रहें तो उनको उनका अज्र उनके पर्वदिगार के यहां मिलेगा।
[१-उस समय हर एक महज़ब में से अच्छी अच्छी बातें चुनलनेवाला एक गिरोह था जिसे साइबी या साबी कहते थे। २-रोजेआखिरत अर्थात क़यामत पर यकीन रखने का मतलब है अच्छे बुरे कामों के नतीजे पर यकीन रखना, जिससे आदमी बुराई से बचे और भलाई करता रहे । ३-इस आयत से मालूम होता है कि कुरान मुसलमान होने पर जोर नहीं देता, मलाई बुराई के खयाल पर जोर देता है । मजहब तुम कोई भी रक्खो पर नेकी बदी के फल पर यकीन रक्खो जिससे नेकी की तरफ़ तुम्हारा दिल जाये और बदी से बचता रहे ]
२-माँ बाप के साथ सलूक करते रहना और रिश्तेदारों और यतीमों और मोहताजों के साथ भी । और लोगों से अच्छी तरह बात करना। और नमाज पढ़ते और जकात देते रहना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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(२) ३-हम कोई आयत मन्सूख करदें या जहन से उसको उतार दें तो उससे बेहतर या वैसी ही नाज़िल कर देते हैं
[इससे पता लगता है कि इसलाम ज़माने के मुताबिक सुधार करने के खिलाफ़ नहीं है। इसीलिये इसलामकी शुरूआत में ही नई आयतों ने पुरानी आयतों को मनसुख किया है । ऊपर की आयत इन पर सच्चाई की छाप लगाती है ।।
४-जो कुछ भलाई अपने लिये पहिले म भेज दोगे उसको खुदा के यहां पाओगे।
५-अल्लाह ही का है पूरब और पश्चिम, तो जहाँ कहीं मुँह करलो उधर ही को अल्लाह का सामना है ।
६-जबाब दो कि हम तो अल्लाह पर ईमान लाये हैं और (उस पर) जो हम पर उतरा और जो इब्राहीम इस्माईल और इस्हाक और याकूब पर उतरा और मूसा ईमा को मिला और जो दूसरे पैगम्बरों को उनके पर्वर्दिगार की तरफ़ से मिला हम इनमें से किसी एक में भी जुदाई नहीं समझते।
[इससे मालूम होता है मुसलमान को सब किताबों (धर्म शास्त्रों) और सब मज़हबों के पैग़म्बरों पर एकसा यकीन रखना चाहिये]
७-नेकी यही नहीं कि तुम अपना मुँह पूर्व की ओर करो या पच्छिम की ओर करो, लेकिन भलाई उनकी है जो अल्लाह और कयामत के दिन पर और फरिश्तों और सब किताबों (धर्म-शास्त्रों) और सब पैगम्बरों पर ईमान लाये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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८-जिस तरह तुम से पहिले लोगों पर रोज़ा ( उपवास) रखना फर्ज था तुम पर भी फर्ज किया गया जिससे तुम बहुत से गुनाहों से बचो । और जिनको खाना देना जरूरी है उन पर एक रोजे का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है ।
९-रोजों की रातों में अपनी, बीवियों के पास जाना तुम्हारे लिये जायज़ कर दिया गया है । अल्लाह ने देखा कि तुम चोरी चौरी उनके पास जाने से अपना दीनी नुकसान करते थे।
( आमलोग मजहबी उसूलों पर ईमानदारी से कितना अमल कर सकते हैं इसका काफ़ी खयाल इसलाम में रक्खा गया है इसीलिये ज़रूरत के मुताबिक आयतें मनसूख होती रही हैं ।)
१०-जो लोग तुम से लड़ें तुम भी अल्लाह के रास्ते में उनसे लड़ो मगर ज़ियादती न करना। अल्लाह ज़ियादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता । ....... जब तक काफ़िर अदबवाली मसजिद के पास तुम से न लेंडे तुम भी उस जगह उनसे न लड़ो । 'अपने हाथों अपने को हलाकत में न डालो (हत्या में न फँसाओ) और एहसान करो।
११--हज के दिनों में न कोई शहवत (स्त्री पुरुष का सहवास) की बात करे, न गुनाह की, नं लड़ाई की।
१२.-शराब और जुए के बारे में दर्याफ्त करते हैं । कह दो इन दोनों में बड़ा गुनाह है।
१३-यतीमों के बारे में समझा दो कि उनकी बेहतरी बेहतर है और उनसे मिलजुलकर रहो, वे तुम्हारे भाई हैं।
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१४-हेज़ (मासिक धर्म) के दिनों में औरतों से अलंग रहो । जब तक पाक न होलें उनके पास मत जाओ।
१५--जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने की कसम खा बैठे उनको चार महीने की मोहलत है। फिर ( इस मुद्दत में )
अगर रुजू करलें तो अल्लाह बख्शनेवाला , महान है और अगर तलाक की ठान लें तो अल्लाह सुनता जानता है। और जिन औरतों को तलाक दी गई है वे अपने आपको तीन दफ़े कपड़ों के आने तक रोके रक्खें ।
जो कुछ भी खुदा ने उनके पेट में छिपा रक्खा है (गर्भ) उसका छिपाना उनको जायज़ नहीं। ........जैसा ( मदों का हक़) औरतों पर वैसे ही दस्तूर के मुताबिक औरतों का हक मर्दो पर)। ........जो कुछ तुम औरतों को दे चुके हो (स्त्री-धन, महर) उसमें से कुछ भी वापिस लेना जायज़ नहीं ।
१६-औरत को अगर तीसरी बार तलाक दे दो तो इसके बाद जब तक औरत दूसरे शौहर से निकाह न करे उसके लिये जायज़ नहीं ।
(इसलाम के पहिले लोग दस दस बार तलाक दिया करते थे। तलाक़ की मुद्दत ख़त्म होने को आई और बुला लिया, दो चार दिन रक्खा और फिर तलाक दे दिया। इस तरह सालों तक उन औरतों को बन्दिश में रख कर तड़पाया करते थे इसलिये इसलाम ने तीसरे तलाक को आखरी तलाक ठहरा दिया )
१७--जब तुम औरतों को तलाक दे दो और वे अपनी मुद्दत पूरी क.लें और जायज तौर पर आपस में उनकी मर्जी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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( ५ )
मिल जाय तो उनको दूसरे शौहरों के साथ निकाह कर लेने से न रोको ।
१८ - तुम में जा लोग बीवियाँ छोड़ मों तो वे बीवियाँ चार माह दस दिन तक अपने को रोक रक्खें । [ मुद्दत पूरी होने पर निकाह करें।
१९- अपने हक़ को छोड़ देना ज्यादह परहेज़गारी की बात है, इस बड़प्पन को मत भुलाओ जो तुम्हारे बीच है ।
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२० - जो लोग अल्लाह की राह में अपना माल ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस दाने की सी है जिससे सात बालें पैदा हुई और हर बाल में सौ दांन • अल्लाह की राह में खर्च करते हैं और एहसान नहीं जताते और न लेनेवाले को किसी तरह की तकलीफ देते हैं उनका सवाब उनके पर्वदिगार के यहां मिलेगा ।
२१ - नर्मी से जवाब दे देना और दरगुज़र करना उस खैरात से बेहतर है जिसके पीछे तकलीफ़ लगी हो ।... अपनी खरात को एहसान जताने और ईज़ा देने से उस शख्श की तरह अकारथ न करो जो अपना माल लोगों को दिखाने के लिये खर्च करता है ।
२२ - अगर खैरात जाहिर में दो तो वह भी अच्छा और अगर उसको छुपाओ [गुप्तदान ] और हाजतमन्दों को दो तो यह तुम्हारे हक में ज्यादा बेहतर है ।
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२३ - जो लोग सूद ( ब्याज ) खाते हैं वे खड़े न है | सकेंगे । तिजारत को अल्लाह ने हलाल किया है और सूद को हराम । अगर तुम ईमान रखते हो तो जो सूद बाकी है उसे छोड़ दो ।
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( ६ )
२४ - पैग़म्बर उस किताब को मानते हैं जो उनके पवर्दिगार की तरफ़ से उनपर उतरी है, और पैगम्बर के साथ दूसरे मुसलमान भी अल्लाह, उसके फरिश्तों और उसकी किताबों और उसके पैगम्बरों में से किसी एक को भी जुदा नहीं समझते। ३ सुरे आलि इम्रान
१ - हम तो उन पैग़म्बरों में से किसी एक में ( भी फर्क नहीं करते |
२ -- जो लोगों को नेक कामों की तरफ बुलाएँ और अच्छे काम को कहें और बुरे कामों से मना करें ऐसे ही लोग अपनी मुराद को पहुँचेंगे |
३ - मुसलमानो, सूद न खाओ |
४ - जन्नत [ स्वर्ग | उन पर्हेज़गारों के लिये तय्यार है जो खुशहाली और तंगदस्ती में भी ख़र्च करते हैं और गुस्से को रोकते और लोगों के कसूरों को माफ़ करते हैं । लोगों के साथ नेकीं करनेवालों को अल्लाह दोस्त रखता है ।
५- तुम उनको, जो अल्लाह की राह में मारे गये हैं मुर्दा न समझो |
६ - दुनिया की ज़िन्दगी तो सिर्फ़ धोखे की पूँजी है । ४ - मूरे निसाअ
१ - यतीमों का माल उनके हवाले करो उनकी किसी अच्छी चीज़ को अपनी बुरी चीज़ से न बदलो, और उनका माल अपने माल में मिलाकर खुर्द बुर्द न करो ।
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(७)
२-अगर तुमको यह अन्देशा हो कि (कई बीवियों मेंज्यादा से ज्यादा चार ) बराबरी के साथ बर्ताव न कर सकोगे तो एक ही बीवी या जो तुम्हारे पास है बस है ।
३-यतीमों का माल उनके हवाले कर दो, और ऐसा न करना कि उनके बड़े होने के अन्देशे से फुजूलखर्ची करके जल्दी जल्दी उनका माल खा पी डालो ।.."जो लोग नाहक यतीमों का माल खा जाते हैं वे अपने पेटों में आग भरते हैं।
__४-उन लोगों की तौबा कूबल नहीं जो उम्र भर बुरे काम करते रहे।
५-तुम्हें जायज़ नहीं है कि औरतों को बपौती समझकर जबरदस्ती उन पर कटजा करलो । जो कुछ तुमने उनको दिया है उसमें से कुछ छीन लेने की नीयत से उनको कैद न रक्खो। बीवियों के साथ हुस्न सलूक से रहो भले ही वे तुम्हें नापसन्द हों, अजब नहीं कि कोई चीज़ तुम्हें नापसन्द हो और अल्लाह उसमें बहुतसी खैर दे।
६--अगर तुम्हारा इरादा एक बीवी को बदल कर उसकी जगह दूसरी बीवी करने का हो तो जो तुमने पहिली बीवी को बहुत सा माल दे दिया हो उसमें से कुछ भी वापिस न लेना।
७-जिन औरतों के साथ तुम्हारे बाप ने निकाह किया तुम उनके साथ निकाह न करना मगर जो हो चुका सो हो चुका। यह बड़ी बेहयाई और गजब की बात थी और बहुत ही बरा दस्तूर था । तुम्हारी माएं बेटियां बहिनें फियां खालाएं (मौसी)
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(८)
भताजियां भानजियां, रजाई माएं [धायमा जिन्हों ने तुम्हें दूध पिलाण और तुम्हारी दूधशरीको बहिने , तुम्हारी मासे तुमपर हराम हैं और जिन बीवियों के साथ तुम सोहबत कर चुके हो उनकी लड़कियां, तुम्हारे बेटों की बीवियां तुमपर हराम हैं [तुम इनके साथ निकाह शादी-नहीं कर सकते । मगर जो हो चुका सो हो चुका ।
[इससे मालूम होता है कि शादी के बारे में यह अन्धाधुन्धी अरब में फैली हुई थी जिसे इसलाम ने दूर किया ]
८-मां बाप, रिश्तेदार, यतीम, गरीब, नज़दीकी पड़ोसी अजनबी पड़ोसी, पास बैठनेवाले मुसाफिर और जो तुम्हारे कब्जे में हों-नौकर चाकर-इन सब के साथ भलाई के साथ पेश आओ क्योंकि अल्लाह उन लोगों को पसन्द नहीं करता जो इतराते हैं, बड़ाई मारते हैं, खुद कंजसी करते हैं और दूसरों को कंजसी की तरफ़ ले जाते हैं और अल्लाह ने अपने फज्ल से जो कुछ उन्हें दे रक्खा है उसे छिपाये रखते हैं।
(कंजूसी के साथ दिखावटी खर्च का भी बुरा कहा गया है, न कंजस बनो, न हैसियत से ज्यादा खर्च करो यही ठीक रास्ता है)
९-जब तुम नशे की हालत में रहो तब नमाज़ के पास भी न जाना जब तक कि जो कुछ कहते हो समझने लगो, और नहाने की हाजत हो तो भी नमाज के पास न जाना जब तक कि गुस्ल न करलो।
(पहिले शराब नमाज के वक्त के लिये हराम थी पीछे हमेशा के लिये हराम हो गई । नहाने वगैरह की बात से यह साफ़
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(९)
मालूम होता है कि इसलाम साफ सफाई और नहाने पर भी जोर देता है , हां अगर कहीं पानी न मिले या मिलना मुश्किल हो तो मिट्टी वगैरह से ही सफाई की इजाजत देता है । इसलाम आदमी को भीतर की और बाहर की यानी रूहानी और जिस्मानी सफाई पर जोर देता है । . नमाज में जो पढ़ा जाता है वह भी हर मुसलमान को अच्छी तरह समझना चाहिये )
१०- अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानत वालों की अमानतें उनके हवाले कर दिया करो और जब लोगों के बाहमी झगड़े फैसला करने लगो तो इन्साफ़ के साथ फैसला करो।
११- मुसलमानो, मजबूती के माथ इन्साफ़ पर कायम रहो; खुदा लगती गवाही दो, अगरचे गवाही तुन्हारे अपने मां या बाप और रिश्तेदारों के खिलाफ ही क्यों न हो।
५-सूरे माइदह १- बाज़ लोगों ने तुम्हें जो हुर्मतवाली ममजिद [काबा) में जाने से रोका था, यह अदावत तुमको ज्यादती करने की बाइस न हो और नेकी और पर्हेजगारी में एक दूसरे के मददगार हो जाया करो और गुनाह और ज्यादती के कामों में एक दूसरे के मददगार न बनो ।
(इसलाम की शुरुआत में मुहम्मद साहिब और मुसलमानों को मके के लोगों ने बहुत सताया था। उस बात को याद करके मुसलमान लोग ऊधम न मचायें, बदला न लेने लगे, इसके लिये यह आयत है। इसलाम ज्यादह से ज्यादह क्षमा और शान्ति का उपदंश या सबक देता है।)
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(20)
२ -- मुसलमानो, जब नमाज़ के लिये आमादा हो तो अपने मुँह धोलिया करो और कोहनियों तक अपने सरों का मसह कर लिया करो और टखनों तक अपने पांव भी धोलिया करो, और अगर तुम को नहाने की हाजत हो तो गुस्ल करके अच्छी तरह पाक साफ़ हो जाओ और अगर तुम बीमार हो या सफ़र में हो या तुम में से कोई पाखाने से आया हो या तुम स्त्रियों के पास गये हो और फिर तुम्हें पानी न मिले तो तयम्मुम कर लिया करो ( साफ़ मिट्टी लेकर अपने हाथों और मुंह का मसह करलो ) अल्लाह तुम्हें तंग नहीं करना चाहता मगर तुम्हें साफ़ सुथरा रखना चाहता है ।
३ - इन्साफ की गवाही देने के लिये हमेशा तैयार रहा करो और किसी अदावत के सबब इन्साफ़ को न छोड़ो | सब के साथ इन्साफ़ करो यही पर्हेज़गारी से करीब है 1
४ - हमने ( वक्तन फ़वक्तन ) तुममें से हर के लिये एक शरीअत ठहराई और तरीका (ख़ास) और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सब को एक ही ( दीनदी ) उम्मत करता लेकिन ( जुदी बुदी शरीअतों के भेजने से ) यह मक़सद रहा कि जो हुक्म [तुम्हारी हालत के मुताबिक वक्तन फवक्तन ] तुमको दिये उनमें तुम्हें आज़माये । तुम नेक कामों में एक दूसरे से बढ़ने की कोशिश करो।
( इससे मालूम होता है कि इसलाम किसी एक शरीअत का गुलाम नहीं है न किसी एक रस्म या रिवाज का गुलाम है, वह लोगों के मुआफिक शरीयत का हिमायती है । उसके अनुसार अल्लाह हर एक आदमी की अक्ल की जाँच करता है। अपने
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(११)
मुआफिक अगर वह शरीयत पर ईमान ला सके तो वह सच्चा मुसलमान कहा जा सकेगा।
६-सूरे अनआम १-कहो कि मैं तुम पर मुसल्लत नहीं हूं कि तुम को कुम न करने दूं। .
मेरा काम इतना है कि तुमको खुदा का पैगाम पहुंचा दूं उसपर अमल करना या न करना तुम्हारा काम है ।
[इससे साफ़ मालूम होता है कि इसलाम में मजहब के नाम पर किसी किस्मकी जबर्दस्ती नहीं है सिर्फ उपदेश है।]
२-हमने तुमको इनपर मुहाफिज (अभिभावक ! तो (मुकरिर) किया नहीं और न तुम इनपर तईनात हो । और जो लोग खुदा के सिवा दूसरे माबूदों को बुलाया करते हैं उनको बुरा न कहो ।
इसलाम नास्तिकों वगैरह की भी बुराई करने की इजाजत नहीं देता, इसलाम की यह बड़ी भारी उदारता है । ]
३-. बहुतेरे मुश्रिकीन को उनके शरीकों ने उनको अपने बच्चे मार डालने को उम्दा कर दिखाया ताकि उनको हलाकत में डाल दे। ...इनको और इनके झूटी बात बनाने के विचार. को छोडो । बेशक वे लोग घाटे में हैं जिन्होंने बदअक्ली से अपने बच्चों को मार डाला।
[इसलाम के पहिले अरब में बहुत बाल-हल्या होती थी जिसे इसलाम ने रोका।
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(१२)
४--फजूल खर्ची न करो क्योंकि फजूलखर्ची करनेवाली को खुदा पसन्द नहीं करता ।
इसलाम में कंजूमी का भी मुखालफत है और फजूलखर्ची की भी, इसलाम बीच का सच्चा रास्ता बताता है।
५--मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करते रहो और मुफलिसी के डर से अपने बच्चों को कल न करो। हम तुमको खाना देते हैं उनको भी।
- [अरब के लोग गरीबी के डरसे और लड़की का बाप कहलाने की बेइज्जती के डरसे भी अपने बच्चों को जिन्दे ही जमीन में गाड़ देते थे यह करता और जहालत भी इसलाम ने दूर की।]
६--यतीम के माल के पास भी न जाओ। --इन्साफ़ के साथ पूरी पूरी नाप करो ।
८--जब तम बालो तो सच बात ही बोलो और फैसला करो तो इन्साफ सेही करो।
७-- मरे अअराफ १-खाओ और पियो फजूलाखर्चयां न किया करो क्योंकि खुदा फजुलखर्च करनेवालों का पन्सद नहीं करता ।
२-खुदा की रहमत नेक काम करने वालों से करीब है ।
३--क्या तुम ऐसी बेहर्याई के मुतकित्र होते हो कि जहान में तुम से पहिले किसी ने ऐसी बेहयाई नहीं की कि तुम औरतों को छोड़कर शहवतरानी के लिए मर्दो पर मायल होते हो | मगर तुम लोग हद से गुजर गये हो।
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(१३) [इस्लाम ने मर्द मर्द में व्यभिचार के पाप को भी दूर किया और पैग़म्बर लूत के हवाले से लोगोंको यह बात समझाई ।।
४. नाप और तोल पूरी किया करो और लोगों को उनकी चीज़ कम न दिया करो।
५--तुम हमको हरगिज़ देख न सकोगे। हिजरत मुसा अपनी आंखो से अल्लाह को देखना चाहते थे पर नहीं देख सके । सचमुच कोई आदमी अपनी इन आंखों से खुदा को नहीं देख सकता सिर्फ अक्ल की आंखों से ही देख सकता है ।
८--सूरे अन्फाल १-जाने रहो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद बस बखेड़े हैं।
२--जो कैदी तुम्हारे कब्जे में हैं इनको समझादो कि अगर अल्लाह देखेगा कि तुम्हारे दिलों में नेकी है तो जो माल तुमसे छीना गया है उससे बेहतर तुमको अता फर्माएगा और तुम्हारे कसूर भी माफ करेगा।
बदमाश बदमाशी न कर सकें इसका ख़याल रखते हुए विरोधियों के साथ--भले ही वे हार कर कैदी ही क्यों न हो गये हों- इसलाम अच्छे से अच्छा सलूक करने का उपदेश देता है ।।
९-सूरे तौबा १-मसजिद वह है जिसकी नींव शुरू से ही परहेज़गारी पर रक्खी गई है।
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( १४ )
[सहूलियत के लिये मसजिदें बनाने में बुराई नहीं है लेकिन लड़ाई झगड़ा या दलबन्दी के लिये जो मसजिद बनाई जाय वह नापाक मसजिद है । हज़रत मुहम्मद साहिब के समय में भी कुछ लोगों ने एसी एक मसजिद बनवाई थी । लेकिन रसूलल्लाह ने वह मसजिद नापाक कहकर गिरवा दी । ] १०- - सूरे यूनुस
१ - जिन लोगों ने भलाई की उनके लिये मलाई है और कुछ बढ़कर भी ं"। और जिन लोगों ने बुरे काम किये तो बुराई का बदला वैसी ही बुराई है ।
२ – हर क़ौम के लिए रसूल मिला है !
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१० - सूरे रअद
१ - तुम तो सिर्फ़ ख़बरदार कर देनेवाले हो और [तुम कुछ अनोखे पैग़म्बर नहीं ] हर एक क़ौम का ( एक न) एक हिदायत करने वाला [ हो गुज़रा ] है
1
[ लोग हज़रत मुहम्मद साहिब से तरह तरहकी निशानियाँ मांगा करते थे पर ये सब बातें इसलाम के और सच्चाई के ख़िलाफ़ हैं। किसी भी पैगम्बर को मोजिज़ा या चमत्कार दिखाने का या गुप्त बातें कहने का अधिकार नहीं है । रसूलों का काम पाप का बुरा नतीजा दिखाकर लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाना है । ] १४ – सूरे इब्राहीम
१ - जब हमने कोई पैग़म्बर भेजा तो उसको उसी की कौम की ज़बान में बातचीत करता हुआ भेजा है ताकि वह उनको अच्छी तरह समझा सके।
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(१५) [पुरानी जबान में कोई भी धर्म-प्रचार नहीं करता। इस लिहाज़ से हिन्दुस्तान में संस्कृत प्राकृत अरबी फारसी आदि जबानों में धर्म-प्रचार न करना चाहिये । ]
१६-सूरे नहल १ हम हर एक उम्मत में कोई न कोई पैगम्बर भेजते हैं।
२-हमने कुरान तुम पर सिर्फ इसीलिये उतारा है ताकि तुम इन लोगों को धर्म की वे बातें बतादो जिनके बारे में ये लोग झगड़ रहे हैं :
(मतभेद मिटाना सब को मिलाना अमन, कायम करना कुरान का और इसलाम का खास मकसद है]
३-हम एक आयत को बदलकर उसकी जगह दूसरी , आयत नाजिल करते हैं और अल्लाह जो नाज़िल फर्माता है उसको वही खब जानता है।
[हर एक मज़हब मौके के मुताबिक नियम बनाया करता है, बदला करता है। मजहब रूढ़ि के गुलामों को नहीं, समझदारों को मिलता है । इसलाम में इस समझदारी को कितनी जगह है यह बात ऊपर की आयत से साफ मालूम होती है ] ... ४-सख्ती भी करो तो वैसी ही करो जैसी तुम्हारे साथ की गई हो और अगर सब करो तो करने वालों के हक में सब बेहतर है।
[ किसी काम में सख्ती करने की इजाजत इसलाम नहीं देता। सख्ती के जवाब में सिफ़ उतनी ही सख्ती करने की इजाजत देता है जितनी उनके ऊपर की गई है और जो सख्ती के
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सहन करलेते हैं उनके काम को तो और भी अच्छा बतलाता है। इससे मालूम होता है कि इसलाम अमन चाहता है, अहिंसा चाहता है ।)
५-अल्लाह उन लोगों के साथ है जो परहेजगारी करते हैं (संयमी हैं) और लोगों के साथ भलाई से पेश आते हैं ।
१७--सूरे बनी इस्राइल १-अगर तुम नेकी करोगे तो अपने ही लिये करोगे।
२--मां बाप से जच्छी तरह पेश आना । अगर इन दोनों में से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुंचे तो (इससे तुझ कितनी भी तकलीफ़ क्यों न हो) उफ़ तक न करना और मुहब्बत से खाकसारी का पहलू उनके आगे झुकाए रखना ।
३-रिश्तेदार, गरीब, और मुसाफिर को उसका हक पहुँचात. रहो और बेजा मत उड़ाओ ( ऐयाशी न करो) क्योंकि बेजा उड़ानेवाले शैतानों के भाई हैं।
अगर तुम को पर्वर्दिगार के फज्ल के इन्तिजार में जिसकी तुमको उम्मीद हो इनसे मुँह फेरना पड़े [यानी तुम गरीबों वगैरह की मदद न कर सको तो नर्मी से इन्हें समझादो। [शिडको मत)
५ अपना हाथ न तो इतना सिकोड़ो कि (गोया) गर्दन से बंधा हो न बिलकुल उसको फैला ही दो, ऐसा करोगे तो तुम ऐसे ही बैठे रह जाओगे कि लोग तुमको मलामत भी करेंगे और तुम ख़ाली हाथ भी हो जाओगे।
६--गरीबी के डर से अपनी औलाद को न मार डाला करो
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उनको और तुम को हम ही रोजी देते हैं। औलाद को जान से मार डालना बड़ा भारी गुनाह है।
७-जिना ( व्यभिचार ) के पास न फटकना क्योंकि वह बेहयाई है और बदचलनी की बात है।
८--बदला लेने में जियादती न करो।
९.-जब माप कर दो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो, डंडी सीधी रख कर तोला करो।।
११-जिस बातका तुझको इल्म नहीं उसके पीछे न पड़ जाया कर । समझ बूझकर काम किया कर । ' . १२--ज़मीन पर अकड़ कर न चला कर क्योंकि न तो तू
जमीन को फाड़ सकेगा न पहाड़ों बराबर लम्बा हो सकेगा । [घमंड ' न किया कर ]
३-हमारे बन्दों को समझादो कि ( अपने मुखालिफों से भी कोई बात कहें तो ) ऐमी कहें कि वह बेहतर (मोठी) हो क्योंकि शैतान (सस्त बात कहलवाकर) लोगों में फ़साद डलवाता है ।
(इसलाम की अमनपसन्दी और इखलाक का यह कितना अच्छा नमना है कि विरोधियों से बात करने में भी सख्त बात कहने की मनाई है)
१४-और (ऐ पैगम्बर लोग ) तुम से रूह (आत्मा) की हकीकत दर्याफ्त करते है कहदो कि रूह मेरे पर्वदिंगार का एक हुक्म है और तुम लोगों को बस थोड़ा ही इल्म दिया गया है।
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(१८)
धर्मशास्त्र यानी मजहब और दर्शनशास्त्र यानी फलसाफ़ जुदाजुदा शास्त्र हैं । लोग मजहब और फलसफे को मिलाकर बड़ी गड़बड़ी करते हैं और अपने फ़र्ज को भुलाकर फजूल की बहसों में पड़जाते हैं । इस आयतसे इसलामने ऐसी बहसों की जड़ काटदी ! मजहब का काम नीति और सदाचार का पाठ पढ़ाना है फलसफे की गुत्थियाँ सुलझाना नहीं)
१५-कहो कि तुम अरु ग्रह पुकारो या रहमान पुकारो, जिस नाम से भी पुकारो सब नाम अच्छे हैं ।
नाम पर झगड़ना जहालत है, खुदा अल्लाह रहमान, रहीम, ईश्वर, भगवान, हक, सत्य, गॉड रब, शिव, शङ्कर, महादेव, राम, बहुरमज्द वगैरह सब नाम उसीके हैं।
दीन इसलाम में जिसको कि खुदा कहते हैं, वो ही हिन्दसे न भगवान कहा जाता क्या ? जुदाई देखना इनमें है बड़ी नासमझी, खुदाभी नाम बदलने से बदल जाता क्या ?
१६.-न तो अपनी नमाज़ चिल्लाकर पढ़ो और न उसको चुपके पड़ो, वाचका तरीका इख्तियार करलो।।
२० सूरे ताहा १-(सब) अच्छे नाम उसी (अल्लाह) के हैं।
२१-सूरे अम्बिया : १ १-लोगों ने आपस में (इस्तिलाफ करके दीव के टुकड़े
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टुकड़े कर डाले (लेकिन आखिरकार) सब हमारी ही तरफ़ को लौटकर आने वाले हैं। [धर्मों की एकता पर इस्लाम काफ़ी जार देता है।]
२२-सूरे हज्ज १-हमने हर एक उम्मत के लिये (इबादत के) तरीके करार दिये कि वह उन पर चलते हैं। .
(हर एक कौम के पूजापाठ के तरीके जुदा जुदा हैं इसलाम किसी के तरीके में बाधा नहीं डालना चाहता)
२४-सूरे नूर १. मुसलमानो, अपने घरों के सिवा (दूसरे) घरों में घर बालों से पूछे बिदून और उनसे अस्सलामु अलैकुम् ( तुम पर शान्ति हो) कहे बिदून न जाया करो। अगर तुम को मालूम हो कि घर में कोई आदमी मौजूद नहीं तो जब तक तुम्हें खास इजाजत न हो उनमें नं जाओ, और अगर तुम स कहा जाय लौट जाओ तो लौट आओ। यह [लौट आना ] तुम्हारे लिये ज्यादह सफाई की बात है। ......२-मुसलमानों से कहो कि अपनी नजर..नीची स्वखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाजत करें। . .
[बुरी नजर से स्त्रियों को देखना या घरना, काम के अंगों को दिलना इसलाम में मना है। स्त्रियों के लिये भी ऐसा ही हुक्म है ।
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( २०)
३-अपनी विधवाओं के निकाह (विवाह) करदो । और अपने गुलामों दासियों में से उनके, जो नेकबख्त हों।.
४-जो लोग निकाह करने का मकदर नहीं रखते उनको चाहिये कि ज़ब्त करें (ब्रह्मचर्य से रहें)।
५-जो तुम्हारी दासियाँ पाकदामन रहना चाहती हैं उनको दुनिया की जिन्दगीके आरजी फायदे की गरज से हरामकारी पर मजबुर न करो।
२५ सूरेफुर्कान रहमान के बन्दे तो वह है जो जमीन पर दीनता के साथ चलें और जब जाहिल उनसे जहालत की बातें करने लगे तो (उनको) सलाम करें । जो खर्च करने लगे तो फजूलखर्ची न करें और न बहुत तंगी करें वल्कि उनका खर्च इफ़रात और तफरीत के दरमियान बीच की रासका हो। जो नाहक किसी शख्स को जान से न मारें कि उसको खुदा ने हराम कर रक्खा हो. ...जो जिना के मुर्तकिब न हो, (व्यभिचार न करते हों)....न झूठी गवाही दें, जो बेहूदा बकवाद न करें, खेलतमाशों के पास से गुज़रे तो चुपचाप भले आदमी की तरह गुज़र जायें ।
(इस प्रकार के नेकचलन, अमनपसन्द आदमी ही सच्चे मुसलमान है । इसलाम की ख्वाहिश तो यह है कि जहां मुसलमान रहें वहां नेकी और अमन का राज्य होना चाहिये ... .
२६-सुरे ध्रुअराज. १-(कोई चीज़ लोगों को पैमाने से नाप कर दिया कसेतो) पैमाना नाप कर दिया करो और लोगों को नुकसान पहुँचाने
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(२१)
वाले न बनो और तराजू सांधी रखकर तोला करो और लोगों को उनकी चीजें कम न दिया करो और मुल्क में फ़साद फैलाते न फिरो।
__ . २७-सरे नम्ल १--तुम बेहयाई (के काम के) मुर्तकिब होते हो और [एक दूसरे को देखते भी जाते हो क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवतगनी (के इरादे) से लड़कों पर गिरे पड़ते हो। बात यह है कि तुम बड़े जाहिल लोग हो।
[खुल्लमखल्ला सम्भोग करना और पुरुषों का पुरुषों के साथ व्यभिचार करना ये असभ्यता के काम उस समय अरब में चालू थे, लूत पैग़म्बर के इतिहास के ज़रिये इसलाम ने इन दोनों कामों की निन्दा की और इन्हें रोका]
१-अगर तुम सच्चे हो तो खुदा के यहां से कोई किताब ले आओ जो इन दोनों (कुरान तोरात) से हिदायत में बेहतर हो। मैं उसकी पैरवी करने को मौजूद हूं।
हजरत मुहम्मद साहब किसी किताब से बधे हुये न थे, उन्हें तो नेकी का पाठ पढ़ाने से मतलब था, भले ही वह. कोई भी हो। इस के मुताविक सच्चा मुसलमान सदाचार का पाठ कुरान तोरात :गीता वेद इंजील सूत्र पिटक आवस्ता-वगैरह किसी भी किताब में से पड़ेगा। इसलामः आदमी को बिना तास्मुंव का बेलाय और आजादख़याल बनना चाहता है ......
२९ सूरे अन्कत .. १ क्या लोगों ने यह समझ रक्खा है कि इतना कहने पर
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(२२)
जायगे कि हम ईमान ले आये ! और उनको आज़माया
छूट
न जायगा !
[ अपने को मुसलमान कहने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता उसके लिये नेकी और ईमानदारीकी परीक्षा में पास होना
ज़रूरी है ।
२- क्या जो बुरे अमल करते है उनने समझ रखा है कि हमारे काबू से बाहर हो जायेंगे !
३ - हमने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ अच्छा सलूक करने का हुक्म दिया ।
४- तुम किताब वालों के साथ झगड़ा ( वादविवाद ) न किया करो ।
•
बहाना करते थे कि
[ जिनके पास नीति सदाचार ( अख़लाक़ ) सिखाने वाली कोई किताब नहीं है उन्हें सच्चाई और नेकी के रास्तेपर ले आना इसलाम का मकसद है इसीलिये जो किसी मजहब को मानते हैं जिसके पास कोई धर्म पुस्तक है इसलाम उन के साथ दोस्ताना बर्ताव रखना चाहता है । अरब के लोगों के पास कोई मज़हबी किताब नहीं थी इसलिये अरब के लोग यह हमारे पास कोई किताब ही नहीं है हम नीति सदाचार ( नेकी) पर अमल कैसे करें (देखो सूरत साफ्फात ) अरब वालों की इस कठिनाई को दूर करने के लिए कुरान आया, किसी धर्म वालों के झगड़ने के लिये नहीं । दूसरे धर्मवालों के साथ इसका कैसा दोस्ताना और बराबरी का व्यवहार रखना चाहता है यह बात आग की आयतं से भी बड़ी आछी तरह मालूम होती हैं ।]
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(२३) ५-(इन लोगों से)कहो कि जो किताब हम पर नाजिल हुई और जो (किताब) तुमपर नाजिल हुई हम तो सभी को मानते हैं और हमारा खुद। और तुम्हाग खुदा एक ही है । [इसके बढ़कर उदारता और सच्चाई क्या होगी]
३१ मरे लुकमान १- तुझपर जैसी पड़े झेल, बेशक यह हिम्मत के काम हैं और लोगों से बेरुखी न कर और ज़मीन पर इसराकर न चल, अल्लाह किसी इतराने वाले शेखीखोर को पसन्द नहीं करता और अपनी चाल बीच की रख और धीरे से बोल क्योंकि आवाजों में बरी से बुरी आवाज़ गधों की है।
३३ सूरे अहज़ाब १-अपने घरों में जमी रहो, और अगले जमाने के भद्दे बनाव सिंगार दिखाती न फिरो और नमाज़ पढ़ो और ज़कात[दान] दो।
(इससे मालम होता है कि इसलाम में खियों को भी नमाज वगैरह धार्मिक आचार के हक मदों की तरह हैं और बकात वगैरह फर्ज भी मर्दो सरीखे हैं । बी पुरुषों में कुछ फर्क मान कर भी दोनों के अधिकारों को अधिक से ज्यादा से ज्यादा समान बनाने की कोशिश इसलाम ने की है और अस्व की पुरानी-सियों की निस्बत मुसलमान सियों के अधिकार कई गुणे बढ़ गफे है..
३५ मूरे काबिर १-कोई शन्स किसी दूसरे का गुमाह अपने उपर नहीं सेगा और अगर किसी पर भारी बोझ हो और वा अन्ना बोझ
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(२४)
बटाने के लिये बुलाये तो उसका जरासा भी बोझ नहीं बटाया जायगा अगर्चे वह रिश्तेदार ही क्यों न हो।
अपने अपने पाप का फल अपने को ही भोगना पड़ता है सभी मजहबों का यह उसूल इसलाम में भी है ]
२--कोई कौम ऐसी नहीं कि उसमें कोई पैगम्बर न हुआ हो।
__ ३६ सूरे यासनि
१--तुम ऐसे लोगों को [पाप से ] डराओ जिनके बाप [दाद ] नहीं डसये गये और (यही सबब है कि) वे गाफिल हैं ।
१०--सरे मोमिन १-हमने तुन से पहिले रसूल भेजे, उनमें कुछ ऐसे हैं जिनके लात हमने तुमको सनाये और उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनके हालात हमने तुमको नहीं सुनाये।
[सभी रसूलों को मानना मुसलमानों का फर्ज है यह बात पहिले कही गई है पर सभी रसूलों का यह मतलब नहीं है कि जिसके नाम कुरान में आये हैं वे ही मान जायें । नाम आया हो या न आया हो सभी खुदाके रसूल हैं इसलिये सभी को मानना चाहिये । इस आयत के मुताबिक मुसलमान दुनिया के किसी भी मज़हब का विरोध नहीं कर सकता, "हां पाप कहीं भी हो उसका विरोध करेगा ]
४१ सरे हामीस सज्दह १- नेकी और बदी बराबर नहीं हो सकती, दुई के बदले में नेकी करो तो तुम देखोगे कि जो शख्स तुम्भरा दुश्मन का वह
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तुम्हारा दोस्त हो जायगा । हुस्न मदारात उन्हीं लोगो को दी जातो है जो सब करते हैं ।
४२-सूरे शूरा (ऐ पैगम्बर ) तुम उन (लोगों ) पर कुछ तैनात हो नहीं । अरबी कुरान हमने तुम्हारी तरफ नाजिल किया है ताकि तुम मक्के के रहने वालों को और जो लोग मक के आसपास (बसते हैं) उनको [ पाप ) से डराओ।
[ कुरान अरबी में क्या उत। इम की वजह यहां साफ़ दी गई है यही कारण है कि कुरान का ज्यादह हिस्सा अरबी के उस जमाने के खाम तौर के मुताबिक है । फिरभी करानमें ऐसी बातें भरी पड़ी हैं जो हर ज़माने और हर मुल्क के लिये मुफीद हैं, उनका
( इस्तेमाल ) उपयोग सभी को करना चाहिये। हर धर्म-शास्त्र में । ऐसी बातें बहुतसी रहती हैं पर विवेक और आदर से इन शास्त्रों
को देखा जाय तो इन सब बातों की उपयोगिता समझ में आ सकती है।
४९ सूरे हुजुरात १-अरब के रेगिस्तानी लोग कहते हैं कि हम ईमान लाये। कहदो कि तुम ईमान नहीं लाये। हां, कहते हा कि तुम ईमान लाये । [अपने को मुसलमान कहने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता जबतक उस के काम मुसलमान के से नेक न हों ]
५७ सूरे हदीद .. १-तुम लोग कहीं भी रहो वह तुम्हारे साथ है और.जो कुछ तुम किया करते हो वह देखता है। .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
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[ अगर हर एक आदमी इस आयत पर सच्चा यकीन रक्खे तो वह छुपकर भी पाप न कर सके। जो छुपकर भी पाप नहीं करता अल्लाह पर उसीका सच्चा यकीन मानना चाहिये। ]
२-अल्लाह किसी इतराने वाले शेखीबाज़ को पसन्द नहीं करता।
६१--सूरे सफ्फ़ १--मुसलमानो, एसी बात क्यों कह बैठा करते हो जो तुम करके नहीं दिखाते । (यह बात) अल्लाह को सख्त नापसन्द हैं।
६७-सरे मुल्क १- तुम अपनी बात चुपके से कहो या पुकार कर कहो, खुदा तो दिल की बातों से वाकिफ है।
८८-सूरे गाशियह १.(ऐ पैगम्बर, तुम लोगों को समझाओ, तुम तो [खाली ] समझाने वाले है। और इस। तुम उनपर कुछ दारोगा की तरह तैनात नहीं हो।
[इसस मालूम होता है इसलाम धर्म प्रचार में जोर जबर्दस्ती नहीं कराता । हजरत महम्मद साहब को भी खुश ने जबर्दस्ती करने का हक नहीं दिया फिर दूसरा को तो मिल ही कैमे सकता है । रसूलल्लाह ने इसराम का प्रचार समझाकर ही किया था । जो लोग यह कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद साहब ने इसलाम का प्रचार तलवार के जोर से किया है उन्हें यह आयत पढ़कर अपनी भूल सुधार लेना चाहिये।
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(२७)
९३ -सूरे जुहा १--यतीम पर जुल्म न करना और न भिखारी को झिडकना।
१०४-मूरे हमज़हा १--जो ऐबचीनी करता है आवाजें कसता है उसकी तबाही है।
२--जो इस ख़याल से माल जमा करता और उसको गिन गिन कर रखता रहा कि वह माल की बदौलत हमेशा जिंदा रहेगा सो यह तो होना नहीं, वह ज़रूर [एक दिन] हजमह (दोजख की आग) में फेंका जायगा ।
११४-सूरे अन्नास १-कहा करो कि मैं पनाह चाहता हूँ उस अल्लाह से जो सबका पर्वर्दिगार, सब का हक़ीकी बादशाह और सब का माबूद है (कि वह मुझे) उस शतान की बुराई से बचावे जो (चुपके चुपके) लोगों के दिलों में बुरे ख़याल डाला करता है ।
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________________ सत्यमक्त साहित्य १-सत्यात-मानव-धर्म-शास्त्र [ दृष्टिकांड - २-सत्यामृत [आचार-कांड]३-निरतिवाद४-सत्य संगीत५-जैनधर्म-मीमांसा [भाग १]६-जैनधर्म-मीमांसा [ भाग २७-शीलवती८-विवाह पद्धति९-सत्यसमाज और प्रार्थना१०-नागयज्ञ [नाटक]११-हिन्दू-मुस्लिममेल१२-आत्म-कथा-- १३-हिन्दू-मुस्लिम इत्तहाद [ भनुवाद)१४-बुद्ध हृदय१५-कृष्णगीता१६-अनमोलपत्र१७-सुलझी हुई गुत्थियाँ१८-कुरान की झांकी मिलने का पता-सत्याभम, बर्षा. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com