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प्रस्तावना
करान समुद्र के समान एक महान ग्रन्थ है, उसकी थाह ना और उसमें से रत्न ढूँढ निकालना एक साधारण काम नहीं । इसके लिए समय, योग्यता, रूचि और निष्पक्ष दृष्टि की आवकता है जो किसी किसी में ही सुलभ हैं । यही कारण है कि त मे लोग जिनमें ऐसे लोग भी कम नहीं होते हैं जिन्हें शिक्षित हक विद्वान भी कहा जाला है, कुरान के नाम पर मनचाही बातें इ दिया करते हैं । एक तरफ़ मुसलमान विना समझेबूझे मनहे गीत गालिया करते हैं दूसरी तरफ़ गैरमुसलमान मनचाही दा कर लिया करते हैं । मज़हब का घमंड लोगों में यूं ही रहता
और वह ऐसी बातों से और बढ़ता है जिससे वैर और झगड़े' दा होते हैं और धर्म के नाम पर अधर्म का, फरिश्ते के नाम पर तान का, नंगा नाच होता है ।
दुर्भाग्य यह है कि लोग दूसरे के धर्म ग्रन्थों को नहीं पढ़ते । दे लोग एक दूसरे के धर्म ग्रन्थों को पढ़ें और अपने अपने मज। के ग्रन्थ पढ़ने के साथ साथ दूसरे धर्म ग्रन्थों को भी ठीक ठीक मझें तो कोई वजह नहीं है कि यह मजहब जो आज घमंड वैर न और संघर्ष का अड्डा बना हुआ है, प्रेम और शान्ति का घर
बन जाय । श्री. सत्यभक्तजी ने इसी ध्येय को नन रखते हुये यह छोटी सी पुस्तक लिखी है। मन लोगों के १ कुरान सरखे विशाल ग्रन्थ को पढ़ने के लिये समय रुचि या यता नहीं है वे भी इस पुस्तिका का उपयोग कर सकते हैं । सलमान और गैर मुसलमान, दोनों के लिये यह पुस्तक बहुत पयोगी है । बहुत से मुसलमान कुरान नहीं पढ़ते या नहीं पढ़पाते
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