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(२) ३-हम कोई आयत मन्सूख करदें या जहन से उसको उतार दें तो उससे बेहतर या वैसी ही नाज़िल कर देते हैं
[इससे पता लगता है कि इसलाम ज़माने के मुताबिक सुधार करने के खिलाफ़ नहीं है। इसीलिये इसलामकी शुरूआत में ही नई आयतों ने पुरानी आयतों को मनसुख किया है । ऊपर की आयत इन पर सच्चाई की छाप लगाती है ।।
४-जो कुछ भलाई अपने लिये पहिले म भेज दोगे उसको खुदा के यहां पाओगे।
५-अल्लाह ही का है पूरब और पश्चिम, तो जहाँ कहीं मुँह करलो उधर ही को अल्लाह का सामना है ।
६-जबाब दो कि हम तो अल्लाह पर ईमान लाये हैं और (उस पर) जो हम पर उतरा और जो इब्राहीम इस्माईल और इस्हाक और याकूब पर उतरा और मूसा ईमा को मिला और जो दूसरे पैगम्बरों को उनके पर्वर्दिगार की तरफ़ से मिला हम इनमें से किसी एक में भी जुदाई नहीं समझते।
[इससे मालूम होता है मुसलमान को सब किताबों (धर्म शास्त्रों) और सब मज़हबों के पैग़म्बरों पर एकसा यकीन रखना चाहिये]
७-नेकी यही नहीं कि तुम अपना मुँह पूर्व की ओर करो या पच्छिम की ओर करो, लेकिन भलाई उनकी है जो अल्लाह और कयामत के दिन पर और फरिश्तों और सब किताबों (धर्म-शास्त्रों) और सब पैगम्बरों पर ईमान लाये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com