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(११)
मुआफिक अगर वह शरीयत पर ईमान ला सके तो वह सच्चा मुसलमान कहा जा सकेगा।
६-सूरे अनआम १-कहो कि मैं तुम पर मुसल्लत नहीं हूं कि तुम को कुम न करने दूं। .
मेरा काम इतना है कि तुमको खुदा का पैगाम पहुंचा दूं उसपर अमल करना या न करना तुम्हारा काम है ।
[इससे साफ़ मालूम होता है कि इसलाम में मजहब के नाम पर किसी किस्मकी जबर्दस्ती नहीं है सिर्फ उपदेश है।]
२-हमने तुमको इनपर मुहाफिज (अभिभावक ! तो (मुकरिर) किया नहीं और न तुम इनपर तईनात हो । और जो लोग खुदा के सिवा दूसरे माबूदों को बुलाया करते हैं उनको बुरा न कहो ।
इसलाम नास्तिकों वगैरह की भी बुराई करने की इजाजत नहीं देता, इसलाम की यह बड़ी भारी उदारता है । ]
३-. बहुतेरे मुश्रिकीन को उनके शरीकों ने उनको अपने बच्चे मार डालने को उम्दा कर दिखाया ताकि उनको हलाकत में डाल दे। ...इनको और इनके झूटी बात बनाने के विचार. को छोडो । बेशक वे लोग घाटे में हैं जिन्होंने बदअक्ली से अपने बच्चों को मार डाला।
[इसलाम के पहिले अरब में बहुत बाल-हल्या होती थी जिसे इसलाम ने रोका।
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