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मालूम होता है कि इसलाम साफ सफाई और नहाने पर भी जोर देता है , हां अगर कहीं पानी न मिले या मिलना मुश्किल हो तो मिट्टी वगैरह से ही सफाई की इजाजत देता है । इसलाम आदमी को भीतर की और बाहर की यानी रूहानी और जिस्मानी सफाई पर जोर देता है । . नमाज में जो पढ़ा जाता है वह भी हर मुसलमान को अच्छी तरह समझना चाहिये )
१०- अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानत वालों की अमानतें उनके हवाले कर दिया करो और जब लोगों के बाहमी झगड़े फैसला करने लगो तो इन्साफ़ के साथ फैसला करो।
११- मुसलमानो, मजबूती के माथ इन्साफ़ पर कायम रहो; खुदा लगती गवाही दो, अगरचे गवाही तुन्हारे अपने मां या बाप और रिश्तेदारों के खिलाफ ही क्यों न हो।
५-सूरे माइदह १- बाज़ लोगों ने तुम्हें जो हुर्मतवाली ममजिद [काबा) में जाने से रोका था, यह अदावत तुमको ज्यादती करने की बाइस न हो और नेकी और पर्हेजगारी में एक दूसरे के मददगार हो जाया करो और गुनाह और ज्यादती के कामों में एक दूसरे के मददगार न बनो ।
(इसलाम की शुरुआत में मुहम्मद साहिब और मुसलमानों को मके के लोगों ने बहुत सताया था। उस बात को याद करके मुसलमान लोग ऊधम न मचायें, बदला न लेने लगे, इसके लिये यह आयत है। इसलाम ज्यादह से ज्यादह क्षमा और शान्ति का उपदंश या सबक देता है।)
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