Book Title: Kuran ki Zaki
Author(s): Swami Satyabhakta
Publisher: Swami Satyabhakta

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Page 27
________________ (२३) ५-(इन लोगों से)कहो कि जो किताब हम पर नाजिल हुई और जो (किताब) तुमपर नाजिल हुई हम तो सभी को मानते हैं और हमारा खुद। और तुम्हाग खुदा एक ही है । [इसके बढ़कर उदारता और सच्चाई क्या होगी] ३१ मरे लुकमान १- तुझपर जैसी पड़े झेल, बेशक यह हिम्मत के काम हैं और लोगों से बेरुखी न कर और ज़मीन पर इसराकर न चल, अल्लाह किसी इतराने वाले शेखीखोर को पसन्द नहीं करता और अपनी चाल बीच की रख और धीरे से बोल क्योंकि आवाजों में बरी से बुरी आवाज़ गधों की है। ३३ सूरे अहज़ाब १-अपने घरों में जमी रहो, और अगले जमाने के भद्दे बनाव सिंगार दिखाती न फिरो और नमाज़ पढ़ो और ज़कात[दान] दो। (इससे मालम होता है कि इसलाम में खियों को भी नमाज वगैरह धार्मिक आचार के हक मदों की तरह हैं और बकात वगैरह फर्ज भी मर्दो सरीखे हैं । बी पुरुषों में कुछ फर्क मान कर भी दोनों के अधिकारों को अधिक से ज्यादा से ज्यादा समान बनाने की कोशिश इसलाम ने की है और अस्व की पुरानी-सियों की निस्बत मुसलमान सियों के अधिकार कई गुणे बढ़ गफे है.. ३५ मूरे काबिर १-कोई शन्स किसी दूसरे का गुमाह अपने उपर नहीं सेगा और अगर किसी पर भारी बोझ हो और वा अन्ना बोझ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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