Book Title: Kuran ki Zaki
Author(s): Swami Satyabhakta
Publisher: Swami Satyabhakta

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ उनको और तुम को हम ही रोजी देते हैं। औलाद को जान से मार डालना बड़ा भारी गुनाह है। ७-जिना ( व्यभिचार ) के पास न फटकना क्योंकि वह बेहयाई है और बदचलनी की बात है। ८--बदला लेने में जियादती न करो। ९.-जब माप कर दो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो, डंडी सीधी रख कर तोला करो।। ११-जिस बातका तुझको इल्म नहीं उसके पीछे न पड़ जाया कर । समझ बूझकर काम किया कर । ' . १२--ज़मीन पर अकड़ कर न चला कर क्योंकि न तो तू जमीन को फाड़ सकेगा न पहाड़ों बराबर लम्बा हो सकेगा । [घमंड ' न किया कर ] ३-हमारे बन्दों को समझादो कि ( अपने मुखालिफों से भी कोई बात कहें तो ) ऐमी कहें कि वह बेहतर (मोठी) हो क्योंकि शैतान (सस्त बात कहलवाकर) लोगों में फ़साद डलवाता है । (इसलाम की अमनपसन्दी और इखलाक का यह कितना अच्छा नमना है कि विरोधियों से बात करने में भी सख्त बात कहने की मनाई है) १४-और (ऐ पैगम्बर लोग ) तुम से रूह (आत्मा) की हकीकत दर्याफ्त करते है कहदो कि रूह मेरे पर्वदिंगार का एक हुक्म है और तुम लोगों को बस थोड़ा ही इल्म दिया गया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32