Book Title: Kummaputta Chariam
Author(s): K V Abhyankar
Publisher: K V Abhyankar
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________________ 23 154-162] कुम्मापुत्तचरि तत्तो भविअजणाणं भवसायरतारणिकतरणीए / धम्मं कहइ पहू सो सुहासमाणीइ वाणीए // 154 // भो भो सुणतु भविआ कहमवि निग्गोअमज्झओजीवो। निग्गंतूण भवेहिं बहुएहि लहेइ मणुयत्तं // 155 // मणुअत्ते वि हु लद्धे दुलहं पाविज खित्तमायरिअं। उप्पज्जति अणेगे जं दस्सुमिलक्खुयकुलेसु // 156 // आयरियक्खित्ते वि हु पत्ते पडुइंदियत्तणं दुलहं / पाएण को वि दीसइ नरो न रोगेण रहिअतणू // 15 // पत्ते वि पंडुतणुत्ते दुलहो जिणधम्मसवणसंजोगो। गुरु गुरुगुणिणा मुणिणो जेण न दीसंति सव्वत्थ // 158 // लद्धम्मि धम्मसवणे दुलहं जिणवयणरयणसद्दहणं / विसयकहपसत्तमणो घणो जणो दीसए जेण // 159 // सदहणे संपत्ते किरिआकरणं सुदुल्लहं भणि / जेणं पमायसत्तू नरं करंतं पि वारेइ // 160 // यतः• प्रमादः परमद्वेषी प्रमादः परमो रिपुः / प्रमादो मुक्तिपूर्दस्युः प्रमादो नरकायनम् // 161 // ते धन्ना कयपुण्णा जे णं लहिऊण सयलसामग्गि / चइअ पमायं चारित्तपालगा जंति परमपयं // 162 // 1 क धम्म कहेइ. 2 अ ज ब, समाणीए, 3 ग मुणंतु भविया. 4 अ ब. निगोअ; ख नीगोअ 5 ब. बहुएहिं लहइ. 6 ब, पडुत्तणत्ते 7 क गुरुगुणगुरुओ; अ ट गुरुगुणगुणिणो, 8 अ क ब. सव्वसामग्गि,

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