Book Title: Kshama ke Swar
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jain Shwetambar Shree Sangh Colkatta

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Page 4
________________ प्रस्तावना - मुनि श्री चन्द्रप्रभसागर विरचित 'क्षमा के स्वर' नामक ग्रन्थ आपाततः आद्योपान्त देखा। लघुकाय होते हुए भी ग्रन्थ विचार एवं भाषा की दृष्टि से समृद्ध है। ग्रन्थकार ने भारतीय संस्कृति की जैन, हिन्दू और बौद्ध तीनों धाराओं के प्रामाणिक ग्रन्थों को आधार बना कर क्षमा के लक्षण, भेद एवं स्वरूप का विवेचन किया है। विद्वान् लेखक ने विषय को स्पष्ट करने के लिए अनेक दृष्टान्तों का उद्धरण दिया है तथा अनेक आधुनिक प्रश्न उपस्थित कर उनका समुचित समाधान प्रस्तुत किया है। शास्त्रीय विषय होने पर भी भाषा जनसाधारण के लिए सर्वथा बोधगम्य है । पर्युषण पर्व की वेला में श्रद्धाल जिज्ञासुओं में निःशुल्क वितरित करने के लिए विरचित यह ग्रन्थ निश्चय ही लोकोपकारक होगा, ऐसी हमारी धारणा है । मनुष्य के भीतर रहने वाले राग, द्वेष, मोह आदि क्लेश ही उसके महान् शत्रु हैं। इनके ऊपर विजय प्राप्त करना ही वास्तविक विजय है। भगवान महावीर, बुद्ध आदि प्राचीन मुनियों, ऋषियों ने इनके ऊपर विजय के ही अनुभूत उपाय बतलाए हैं। जगत् में व्याप्त दैन्य,, शोषण, उत्पीडन, युद्ध, अशान्ति, भय आदि विविध दुःख इन क्लेशों के ही बाह्य प्रक्षेपण हैं. इनके ही परिणाम हैं। यह कोई सैद्धान्तिक बात ही नहीं है, अपितु गहराई के साथ चिन्तन करने से यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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