Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 24
________________ क्रमबद्धपर्याय: निर्देशिका जिनागम के अविनय का महादोष होता है। अतः जिनागम के किसी भी सिद्धान्त hat मनोरंजन का विषय न बनायें। इसका आशय यह नहीं है कि इसकी चर्चा न करें, बल्कि यह है कि इसकी चर्चा से हास्य का पोषण न करें, अपितु पर्याय की कर्त्ताबुद्धि तोड़कर पर्यायों से दृष्टि हटाकर स्वभाव-सन्मुख होने का प्रयत्न करें। 22 (स) जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में :- यद्यपि अन्य दर्शनों में भी क्रमबद्धपर्याय की बात आती है। आज अन्य मत के अनेक प्रवक्ता भी इसकी चर्चा करते देखे जाते हैं, परन्तु उनमें पूर्वापर विरोध है। जैनदर्शन में सर्वज्ञता और वस्तु व्यवस्था के आधार पर इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाता है, अतः यहाँ जिनागम में उपलब्ध प्रमाणों और युक्तियों के आधार पर क्रमबद्धपर्याय का अनुशीलन किया जा रहा है । प्रश्न : 1. क्रमबद्धपर्याय के सन्दर्भ में समाज का वर्तमान वातावरण कैसा है ? 2. क्रमबद्धपर्याय को चर्चित करने में पूज्य स्वामीजी का क्या योगदान है ? 3. समाज के वर्तमान वातावरण के सम्बन्ध में लेखक की क्या भावना है? क्रमबद्धपर्याय से आशय .. विषय- परिचय गद्यांश 2 .दूसरे का कोई भी हस्तक्षेप नहीं है। Jain Education International (पृष्ठ 1 पैरा 3 से पृष्ठ 2 पैरा 4 तक) विचार बिन्दु : प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने क्रमबद्धपर्याय का आशय स्पष्ट करते हुए समझाया है कि प्रत्येक वस्तु का परिणमन क्रमानुसार, नियमित, व्यवस्थित और स्वतंत्र होता है । नाटक के रंगमंच पर दिखाई जानेवाली रईस की कोठी और गरीब की झोपड़ी के उदाहरण से यह समझाया गया है, कि वस्तु का परिणमन पूर्व निश्चित और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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