Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ क्रमबद्धपर्याय : निर्देशिका परिणमन का क्या नियम होगा? अतः कषायों के अनुसार कार्य की उत्पत्ति होना असम्भव है। काललब्धि का महत्त्व :-तीर्थंकर भगवान महावीर की दिव्यध्वनि उन्हें केवलज्ञान होने के बाद भी 66 दिन तक नहीं खिरी-यह घटना सर्वविदित है। इस सम्बन्ध में कषायपाहुड़ व धवला में दिये गए प्रश्नोत्तर रोचक तो हैं ही; काललब्धि का महत्व बताने वाले भी हैं। ____66 दिन तक दिव्यध्वनि क्यों नहीं खिरी? इसके उत्तर में पहले तो निमित्त की मुख्यता से उत्तर दिया गया कि गणधर नहीं थे। फिर सौधर्म इन्द्र ने गणधर को तत्काल उपस्थित क्यों नहीं किया? इस प्रश्न का उत्तर काललब्धि की मुख्यता से देते हुए सौधर्म इन्द्र जैसे शक्तिशाली व्यवस्थापकको भी असहाय' कह दिया है। ___ इसीप्रकार किसी भी घटना के सम्बन्ध में यदि यह प्रश्न किया जाए कि यह कार्य अभी क्यों हुआ? तो काललब्धि का विचार करने पर ही समाधान होता है। द्वितीय प्रश्न भी काल की तरफ से है कि सौधर्म इन्द्र ने उसी समय गणधर को उपस्थित क्यों नहीं किया? इसलिए इसका उत्तर भी काल से दिया गया है? हमारे दैनिक जीवन में भी ऐसे अनेक प्रसंग बनते हैं कि किसी समस्या का समाधान सूझने पर हम महसूस करते हैं कि यह बात हमारे ख्याल में पहले क्यों नहीं आई? यदि पहले ही ऐसा कर लेते तो इतना समय व्यर्थ न जाता, काम भी न बिगड़ता? जब बहुत देर तक बस की प्रतीक्षा करने के बाद टैक्सी या ऑटो रिक्शे से जाने का निर्णय किया जाता है, तब यही विकल्प होता है कि पहले ही टैक्सी क्यों न कर ली? इत्यादि अनेक विकल्पों का समाधान यह काललब्धिही करती है। निमित्ताधीन दृष्टिवाले काललब्धि पर ध्यान न देकर निमित्त को ही कर्ता मानकर कहते हैं कि जब निमित्त आया, तब कार्य हुआ? परन्तु यह प्रश्न तो निमित्त के बारे में भी खड़ा रहता है कि निमित्त तभी क्यों आया? पहले क्यों नहीं आया? इसका समाधान भी काललब्धि से ही होता है। __ गहराई से विचार किया जाए तो निमित्त मिलने पर भी विवक्षित कार्य तुरन्त नहीं हो जाता है। पानी को अग्नि पर रखते ही वह तुरन्त गर्म क्यों नहीं होता? कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132