Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 131
________________ क्रमबद्धपर्याय पोषक महत्त्वपूर्ण विचार बिन्दु : 1. प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में त्रिकाल विद्यमान है। 2. परिणाम को नहीं हटा सकते, परिणाम में से एकत्व हटा सकते हैं। - अध्यात्म गंगा : बोल क्रमांक 89 3. क्रमबद्ध की श्रद्धा में अकर्त्तापना आता है। जो हो रहा है, उसे क्या करना? उसे मात्र जानना है। मात्र जाननेवाला रहने पर राग टलता जाता है और वीतरागता बढ़ती जाती है। - अध्यात्म गंगा : बोल क्रमांक 101 4. पर्यायें तो जैसी स्वयं होनी हैं वैसी ही होती हैं, उनको क्या बदलना है? उनको क्या ठीक करना है? यह समझते ही समझ बदल गई और अपना कार्य शुरू हो गया; भगवान बन गया अपने द्रव्य का। __ - अध्यात्म गंगा : बोल क्रमांक 202 5. वास्तव में सम्पूर्ण लोक को जाने तीर्थनाथ भगवान। एक अनघ निज सुख में स्थित है जो निज ज्ञायक भगवान, उसे न जाने तीर्थनाथ वे - ऐसा यदि कोई मुनिराज। कहते हैं व्यवहार मार्ग से, तो नहिं दोषी वे मुनिराज॥ - नियमसार कलश 285 का पद्यानुवाद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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