Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 63
________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन 61 प्रश्न :53. द्रव्य में पर्याय की महत्ता उदाहरण सहित समझाइये? 54. पर्यायों में परिवर्तन की बुद्धि अज्ञान क्यों है? 55. जैन-दर्शन के अकर्त्तावाद का चरम बिन्दु क्या है? 56. क्रमबद्धपर्याय की विकल्पात्मक श्रद्धा और सच्ची श्रद्धा क्या है? 57. क्रमबद्धपर्याय की सच्ची श्रद्धा का क्या फल है? **** क्रमबद्धपर्याय, एकान्त नियतिवाद और पुरुषार्थ गद्यांश 22 कुछ लोगों का यह भी.............. ..............सच्चे अनेकान्तवादी हैं। (पृष्ठ 39 पैरा 5 से पृष्ठ 40 से पैरा 4 तक + पृष्ठ 41 पैरा 7 से पृष्ठ 42 पैरा 5 तक) विचार बिन्दु:___ 1. गोम्मटसार में एकान्त नियतिवादी को मिथ्यादृष्टि कहा है, अतः कुछ लोग क्रमबद्धपर्याय को भी एकान्त नियतिवाद अर्थात् मिथ्यात्व कहते हैं; परन्तु उनकी यह मान्यता सही नहीं है। पुरुषार्थ आदि अन्य समवायों का निषेध करना एकान्त नियतिवाद है, जबकि क्रमबद्ध पर्याय की श्रद्धा में एकान्त नियतिवाद या मिथ्यात्व नहीं है, क्योंकि इसमें अन्य समवायों का निषेध नहीं अपितु उनकी स्वीकृति है। 2. जिनेन्द्र सिद्धान्त कोष में नियति' देव काललब्धि' और भवितव्य को निम्नानुसार परिभाषित किया गया है। "जो कार्य या पर्याय जिस निमित्त के द्वारा जिस द्रव्य में जिस क्षेत्र व काल में उसी प्रकार से होना है, वह कार्य उसी निमित्त के द्वारा उसी द्रव्य, क्षेत्र व काल में उसी प्रकार से होता है। ऐसी द्रव्य, क्षेत्र, काल व भावरूप चतुष्टय से समुदित नियत कार्य व्यवस्था को नियति कहते हैं। नियत कर्मोदयरूप निमित्त की अपेक्षा से इसे ही 'दैव' नियत काल की अपेक्षा इसेहीकाललब्धि' और होने योग्य कार्य की अपेक्षा इसेही भवितव्य' कहते हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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