Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 114
________________ अध्याय 5 क्रमबद्धपर्याय : प्रासंगिक प्रश्नोत्तर चौथे अध्याय में क्रमबद्धपर्याय से सीधे सम्बन्धित प्रश्नोत्तर दिए गए हैं, जिनके आधार पर लघु-शिविरों में यह विषय अच्छी तरह पढ़ाया जा सकता है। यदि समय हो तो निम्न प्रश्नोत्तरों के आधार पर पाठ्य-पुस्तक में समागत अन्य प्रासंगिक प्रकरणों को तैयार कराना चाहिए। ये प्रकरण क्रमबद्धपर्याय के पोषक हैं, अतः इनका निर्णय करने से क्रमबद्धपर्याय का निर्णय निर्मल और दृढ़ होता है। प्रश्न 1. त्रिलक्षण परिणाम पद्धति क्या है? उत्तर :- प्रत्येक द्रव्य के प्रदेश (कालद्रव्य को छोड़कर) और पर्यायें अपनेआपने स्वरूप से उत्पन्न और पूर्वरूप से विनष्ट तथा सभी परिणामों में एक प्रवाहपना होने से अनुत्पन्न और अवनिष्ट अर्थात् ध्रुव हैं। इसप्रकार प्रत्येक प्रदेश और पर्याय एक ही समय में उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यात्मक है। द्रव्य इन परिणामों की परम्परा में स्वभाव से ही सदा रहता है, इसलिए वह स्वयं भी उत्पाद - व्यय - ध्रौव्यात्मक है । इस प्रकार एक ही परिणाम में एक ही साथ उत्पाद - व्यय ध्रौव्यपना घटित होता है; यही त्रिलक्षण परिणाम पद्धति है। प्रश्न 2. प्रदेश और परिणाम की परिभाषा बताते हुए उनमें क्रम का कारण बताइये? उत्तर :- विस्तार क्रम के सूक्ष्म अंश को प्रदेश और प्रवाहक्रम के सूक्ष्म अंश को परिणाम कहते हैं । बहुप्रदेशी द्रव्यों के प्रदेशों में तथा प्रत्येक द्रव्य के परिणामों एक नियमित क्रम होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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