Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 98
________________ अध्याय 4 क्रमबद्धपर्याय : महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर यद्यपि विगत तीन अध्यायों में क्रमबद्धपर्याय पुस्तक के अनुशीलन एवं प्रश्नोत्तर खण्ड में समागत प्रमुख विचार-बिन्दुओं की चर्चा की गई है, एवं उनसे सम्बन्धित संक्षिप्त प्रश्न भी दिए गए हैं; तथापि 8-10 दिन के शिविर में इस महत्वपूर्ण विषय को पढ़ाने के उद्देश्य से यहाँ मूल विषय से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर दिए जा रहे हैं। अतः प्रवचनकारों एवं अध्यापक बन्धुओं से सानुरोध आग्रह है कि इन प्रश्नोत्तरों के आधार से विषय का स्पष्टीकरण करते हुए इन्हें छात्रों को हृदयंगम कराने का प्रयास करें तथा इन प्रश्नोत्तरों को कन्ठस्थ करने की प्रेरणा दें। प्रश्न 1. क्रमबद्धपर्याय क्या है? द्रव्य/गुण/पर्याय उत्तर :- क्रमबद्धपर्याय किसी एक द्रव्य या गुण या पर्याय का नाम नहीं, अपितु समस्त द्रव्यों और गुणों के परिणमन की सुव्यवस्थित व्यवस्था अर्थात् वस्तु के परिणमन की व्यवस्था है। प्रश्न 2. क्रमबद्धपर्याय किसे कहते हैं? उत्तर :- “जिस द्रव्य की, जिस क्षेत्र में, जिस काल में, जो पर्याय जिस निमित्त की उपस्थिति में, जिस पुरुषार्थ पूर्वक, जैसी होनी है; उसी द्रव्य की, उसी क्षेत्र में, उसी काल में, वही पर्याय, उसी निमित्त की उपस्थिति में, उसी पुरुषार्थपूर्वक, वैसी ही होगी, अन्यथा नहीं। वस्तु के परिणमन की इस व्यवस्थित व्यवस्था को क्रमबद्धपर्याय कहते हैं। प्रश्न 3. व्यवस्थित और अव्यवस्थित से क्या आशय है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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