Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ क्रमबद्धपर्याय : एक अनुशीलन 25 क्रमबद्धपर्याय पोषक आगम-प्रमाण गद्यांश 3 जैसा कि सर्वश्रेष्ठ............ सबस प्रबल हतुह (पृष्ठ 2 पैरा 5 से पृष्ठ 5 पैरा 5 तक) विचार बिन्दु : 1. इस गद्यांश में लेखक द्वारा सात आगम प्रमाण प्रस्तुत किये गए हैं। 2. 'क्रम' शब्द से आशय क्रमाभिव्यक्ति से है और 'नियमित' शब्द से आशय प्रत्येक पर्याय अपने स्वकाल में अपने-अपने निश्चित उपादान के अनुसार परिणमित होने से है। पर्याय के उत्पन्न होने की उसकी तत्समय की योग्यता ही निश्चय उपादान है। संक्षेप में कहा जाए तो वस्तु के सुनिश्चित क्रम में स्वाधीनरूप से परिणमन करने की व्यवस्था को क्रमबद्धपर्याय कहते हैं। ____ 3. कार्तिकेयानुप्रेक्षा' के अनुसार उक्त परिभाषा का आशय निम्नानुसार है। “जिस द्रव्य की, जिस क्षेत्र में 'जिस काल में जो पर्याय, जिस विधि से, जिस निमित्त की उपस्थिति में होना सर्वज्ञदेव ने जाना है, उस द्रव्य की, उसी क्षेत्र में उसी काल में' वही पर्याय, उसी विधि से, उन्हीं निमित्तों की उपस्थिति में होगी।" वस्तु के परिणमन की इस व्यवस्था को क्रमबद्धपर्याय' कहते हैं। इस परिभाषा में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, पुरुषार्थ, निमित्त आदि सभी का एकत्र होना सुनिश्चित है - यह भी बताया गया है। 4. क्रमबद्धपर्याय की सिद्धि में सर्वज्ञता सबसे प्रबल हेतु है। 5. क्रमनियमित और क्रमबद्ध' एकार्थवाची हैं। 7. विशेष निर्देश :___1. प्रत्येक आगम-प्रमाण पर समयानुसार यथा-सम्भव चर्चा की जाए, तथा उपर्युक्त विचारों पर विशेष बल दिया जाए। ___ 2. नियमित शिक्षण-सत्र की कक्षाओं में छात्रों से पाठ्य पुस्तक में समागत आगम प्रमाणों की तालिका (चार्ट) बनवाई जाए, जिसमें निम्न खण्ड हो सकते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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