Book Title: Kisne Kaha Man Chanchal Hain Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 8
________________ चतुर्थ संस्करण शान्तिपूर्ण जीवन जीने के लिए मैं प्रस्थानत्रयी में विश्वास करता हूं। पहला प्रस्थान है— मन को समझना, दूसरा है—उसे सुमन बनाना और तीसरा है— उसे अमन में बदल देना । प्रस्तुत पुस्तक में इस प्रस्थानत्रयी की संक्षिप्त-सी चर्चा मैंने की है । केवल मन की चंचलता की उलझन में फंसे हुए लोग मन की वास्तविकता को नहीं समझ सकते । चित्त की वास्तविकता को जाने बिना मन की वास्तविकता जानी नहीं जा सकती । चित्त की परिक्रमा करने, मन को समझने में यह पुस्तक कुछ सहारा दे सकती है । अध्यात्म योग की कुछ नई दिशाएं उद्घाटित करना और वैज्ञानिक शोधों के आलोक में अध्यात्म को समझना सहज समय की मांग है । इस मांग को समझना आज के आध्यात्मिक के लिए जरूरी है । इस जरूरत की पूर्ति के लिए इस पुस्तक का उपयोग हो सकता है । आमेट १७ जुलाई, १९८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only युवाचार्य महाप्रज्ञ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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