Book Title: Kirti Kaumudi tatha Sukrut Sankirtan
Author(s): Someshwar Mahakavi, Arisinh Thakkur Kavi, 
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 101
________________ कीतिकौमुदी-सुकृतसंकीर्तनमहाकाव्यद्वयम् । की० की. काo २१ पृष्ठ चापोत्कट ( राजवंश) सु० ९६ नरचन्द्र (कवि नागेन्द्रपच्छीय ) की० ४,१११ चामुण्डराज ( चौलुक्यनृप ) ७.१०० नरचन्द्रसरि (काव नागेन्द्ररच्छीय) की० ४,१११ (चापोत्कटनृप) सु. ९८ नरवर्मा ( धाराधीश) की०. . ८ चाहमान ( राजवंश) नीलकण्ठ (कवि) की. चुलुक (राजवंश) की. नागेन्द्र (श्वेताम्बर गच्छविशेष) चुलुक्य (राजवंश) १९,२०,१०४ पञ्चासर (जिनमन्दिर ) ९६,१३३ चुलुक्यभर्ता ( चौलुक्यनृप, वीरधवल) की. २६ पत्तन ( अणहिलपुर) २०,१३२ वैद्य (राजवंश) की० ११ पम्पा ( सरोवर) की०६ चौलुक्य (राजवंश) ७,४२,९९ परमार ( राजवंश) की. ८ चौलुक्यचन्द्र ( वीरधवल) की० २५ पादलिप्तपुर (नगर) चौलुक्यनृप ( वीरधवल) प्रतापमल्ल (चौलुक्यसेनानायक) चौलुक्यवंश (राजवंश । की० ९ प्रद्युम्न ( रैवतशिखर ) १३४ जगज्झम्पन ( वल्लभराज-बिरूद ) ७,१०० प्रभास ( तीर्थविशेष ) अगद्देव (प्रतीहार । ११ प्रह्लादनदेव ( कवि, नृपति) जयन्त (भट) २४ प्राग्वाट (वंशविशेष) १३१०६ जयसिंह ( चौलुक्यनृप, सिद्धराज ) ८,१०८ बकपाटक (नगर) की० , (वस्तुपालपुत्र) बकुल ( बकुलेश्वर-सूर्यमन्दिर ) सु. १३३ जाङ्गल (जनपद) ८.१०२ जाङ्गलेश (जाङ्गलदेशनृपति) ९,१०३ बर्बरक (राक्षस) आमदग्न्य (परशुराम) बल्लाल (नृप) की जिनदत्तरि (वायडगच्छीय) सु० १११ बाण (कवि) तापी (नदी) बारप (सेनानायक) ७,१०० तुरष्क ( जातिविशेष) सु० १०३ बिल्हण (कवि) की०४ सुरुष्काधिपति ( तुरुष्कजातीयनृप ) सु० ९ भट्टादित्य (सूर्यमन्दिर ) तेजःपाल (मन्त्री, वस्तुपालानुज ) १४,१०६, भारवि ( कवि ) १३०,१३४ भीम (चौलुक्यनृप, प्रथम) ७,१०१ त्रिपुरी (नगरी) की. ५ , ( चौलुक्यनृप, द्वितीय) दक्षिण (जनपद) की. ९ भीमदेव ( , , ) दक्षिणेन्द्र ( दक्षिणदेशाधिप) की० १८ भीमपल्ली (ग्राम) दर्पक (? ) भीमेशवेश्म (शिवमन्दिर) १३३ दर्भावती नगरी) १३५ भुवनपाल (भट ) २३,२४ दुर्लभराज (चौलुक्यनृप) ७,१०१ भुवनसिंह (भट) की. देवपत्तन (नगर) सु० १२१ भूभट (चापोत्कटनृप) धनपाल (कवि) की. ३ भृगुकच्छ ( भृगुपुर) धवल (चौलुक्यवंशीय, अर्णोराजपिता) ९, भृगुपुर (भृगुकच्छ) १३४ धवलकपुर ( नगर) १२९ भोज (धारानृपति) धवलकक (नगर) सु० १३०,१३४ मथुरा (नगरी) धारा (नगरी) ५,८,१०१,१०२ मधूपघ्न (मथुरानगरी) धाराधीश (धारानृपति) ९ मरु (जनपद) की. नड्डूलनायक (नृपति) की० ९ मरुभूप (मरुजनपदनृपति) . की की. की सु० की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168