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प्रस्तावना
सूर्य, चन्द्र और तारे प्राचीनकाल से ही मनुष्य के कौतूहल के विषय रहे हैं। मानव सदा इन रहस्यमयी वस्तुओं के रहस्य को जानने के लिए उत्सुक रहता है। वह यह जानना चाहता है कि ग्रह क्यों भ्रमण करते हैं और उनका प्रभाव प्राणियों पर क्यों पड़ता है? उसकी इसी जिज्ञासा ने उसे ज्योतिषशास्त्र के अध्ययन के लिए प्रेरित किया है। ____ भारतीय ऋषियों ने अपने दिव्यज्ञान और सक्रिय साधन द्वारा आधुनिक यन्त्रों के अभाव में भी प्रागैतिहासिक काल में इस शास्त्र की अनेक गुत्थियों को सुलझाया था। यद्यपि आज पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगकर कुछ लोग इस विज्ञान को विदेशी देन बतलाते हैं; पर प्राचीन शास्त्रों का अवगाहन करने पर उक्त धारणा भ्रान्त सिद्ध हुए बिना नहीं रह सकती
जैन ज्योतिष की महत्ता भारतीय विज्ञान की उन्नति में इतर धर्मावलम्बियों के साथ कन्धे से कन्धा लगाकर चलनेवाले जैनाचार्यों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनकी अमर लेखनी से प्रसूत दिव्य रचनाएँ आज भी जैन-विज्ञान की यशःपताका को फहरा रही हैं। ज्योतिषशास्त्र के इतिहास का आलोडन करने पर ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों द्वारा निर्मित ज्योतिष ग्रन्थों से भारतीय ज्योतिष में अनेक नवीन बातों का समावेश तथा प्राचीन सिद्धान्तों में परिमार्जन हुए हैं। जैन ग्रन्थों की सहायता के बिना भारतीय ज्योतिष के विकास-क्रम को समझना कठिन ही नहीं, अंसम्भव है।
___भारतीय ज्योतिष का शृंखलाबद्ध इतिहास हमें आर्यभट्ट के समय से मिलता है। इसके पूर्ववर्ती ग्रन्थ वेद, अंगसाहित्य, ब्राह्मण, सूर्यप्रज्ञप्ति, गर्गसंहिता, ज्योतिष्करण्डक एवं वेदांगज्योतिष प्रभृति ग्रन्थों में ज्योतिषशास्त्र की अनेक महत्त्वपूर्ण बातों का वर्णन आया है। वेदांगज्योतिष में पञ्चवर्षीय युग पर से उत्तरायण और दक्षिणायन के तिथि, नक्षत्र एवं दिनमान आदि का साधन किया है। इसके अनुसार युग का आरम्भ माघ शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्य और चन्द्रमा के धनिष्ठा नक्षत्र सहित क्रान्तिवृत्त में पहुंचने पर होता है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल कई शती ई. पू. माना जाता है। विद्वानों ने इसके रचनाकाल का पता लगाने
प्रस्तावना : ११