Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ ( ५ ) ते वढताजी ॥ शिष्य० ॥ सादी विण कहे रायजी ॥ शि० ॥ अमथी कां न कहेवायजी ॥ शिष्यण ॥ ५॥ प्राणांत लगे दुःख व्यापजी ॥ शि॥ तोही लोजी पा बुनापेजी॥शि०॥ ते मरण पामे तमु दुःखेजी॥ शिण ॥ आवी नपजे ते कुखेजी॥ शिष्य० ॥६॥ पहेली अ. घरणी कीजेजी ॥ शि० ॥ अव्य बहुढं तिहां खरचीजे जी॥शि ॥ घर पुत्र श्रई जव श्रावेजी ॥.शि०॥ तव याशा पूरी कहावेजी॥ शिष्य॥ ॥ वधामणि दी. धी जेणेजो। शि ॥ लखमी पामी बहु तेणेजी॥शिण ॥जन्मोतरी जोषीये कीधीजी ॥ शिबखशीस घणी तस दीधीजी॥ शिष्य ॥॥रूपवंत, घणुं गुणवं तोजी॥शि०॥ सघले लदणे संजुत्तोजी॥ शिवाजा ट नोजक नाम नवायाजी ॥शि ॥ गीत गाये नाचे सवायाजी ॥ शिष्यः॥ ए॥ दान दे घणुं संतोषेजी ॥ शिण | निजनाति कुटुंब सहु पोषेजी ॥ शिण॥ पान फोफल नारीयर दीधांजी ॥ शि॥ पहेरामणी करी राजी कीधां जी ॥ शिष्य॥१०॥ दी, जी॥शि || जाणे कारज माहरु सीधुं जी ।। शि०॥ माथे नवरंगी टोपी जी ॥ शिजरफाग फि रंगी उपो जी ॥ शिष्यः ॥ ११॥ बांगला दरीया दी .. - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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