Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ 9) डो पूरो जो ॥ शि० ॥ जो थापण होवे अधूरी जी ॥ शिष्य ॥ १८ ॥ रोग उपजे तेहने अंगे जी ॥ शि० ॥ वात पित्त प्रबन कफ संगे जी ॥ शि० ॥ तव वैद्य तेडे ससु काजे जी ॥ शि० ॥ धन नहिं तो काढो व्याजे जी || शिष्य० ॥ १८ ॥ जूआ धूणे ने कहे नूतो जी ॥ शि० ॥ ऊजणी नाखी अवधूतो जी ॥ शि० ॥ दोरा मंत्री ब दुला बांधे जी ॥ शि० ॥ आयु ऋटुं कोइ न सांधे जी ॥ शि० ॥ २० ॥ पे वली गोली क्काय जी ॥ शि० ॥ करे कारज सबलां साथ जो ॥ शि ॥ निज थापण सघली लेर जी ॥ शि० ॥ सुत पोहोचे परजव तेइ जी ॥ शि० ॥ २१ ॥ नंदन तुं प्राण आधार जी ॥ शि० ॥ कां मेली गयो निरधार जी ॥ शि० ॥ एम करे अनेक विला प जी ॥ शि० ॥ उदय श्राव्यां जे कीधां पापजी ॥शि० ॥ ५२ ॥ ढाल बीजी पूरी कोधी जी ॥ शि० ॥ राग सो रखमांहे सीधी जी || शि० ॥ एहवी करणी जे टाले जी || शि० ॥ वीर पापपंक पखाले जी ॥ शि० ॥ २३ ॥ ४८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ रुष संबंधे ऊपजे, पुत्र कुपुत्र कुमित्र । पशु वै हि म जाई वहू, मात पिता कुकलत्र ॥ १॥ माये रण कोइ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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