Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ atatatestetsoft । श्रीना D tostatestatestatestostatestoster t वीरजी मुनि विरचित कर्मविपाकनो रास. ० अथवा जंबुरबानो रास.. तथा र गौतमष्टवानी चोपाई ए ग्रंथ. शुनाशुन्ज कर्मोना फलनो दर्शावनार होवाथी सर्व श्रावक नाश्योने नणवा वां चवा माटे नपयोगी जाणीने, श्रावक नीमसिंह माणके, राजनगरमध्ये, राजनगर मुशायंत्रमा गपी प्रसिद्ध कयों, संवत् १९६६ सने १०१० FOLOR-MASSAGESSESE नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण दसका उपयोग कर सकें। Jain Educationa International . Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ यथ ॥ ॥ श्री कर्मविपाक प्रथवा जंबू टचानो रास प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सकल पैदारथ सर्वदा, प्रयमुं श्यामल पास ॥ नमिये तेहने ऊठि नित्य, परमानंद प्रकाश ॥ १ ॥ गोयम गहर पर नमी, कर्मविपाक विधि जोय ॥ फल जाखं कृत कर्मनां, सांजलजो सहु कोय ॥ २ ॥ सोहम स्वामी समोसख्या, चंपानगरी मांहे ॥ जंबू प्रभु प्रणमी करी, पूछे प्रश्न उत्सादे ॥ ३ ॥ कहो जगवन् धनवंत सुखी, शे कर्मे जीव श्राय ॥ दारिद्री निर्धन दुःखी, कुण कर्मे कहेवाय ॥ ४ ॥ वलतुं बोले केवली, सुप जंबू सुविचार ॥ जला प्रश्न तें पूनिया, नविक जीव हितकार ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पेहेली ॥ देशी चोपाइनी ॥ ॥ साधु जणि दीये बहु मान, पहेले जवे जेणे दी धुं दान ॥ रुद्धि वृद्धि ते पामे घणी, आशा पूरे सवि मन तणी ॥ १ ॥ दान न दीधुं जेणे नरे, ते परघर मागता Jain Educationa International 94 For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फिरे ॥ मागंतां पण न दीये कोय, अदत्त तणां फल एहवा होय ॥॥ किण कर्मे अति खी| अंग, कण कर्मे पुष्टता प्रसंग ॥ गोली सरिखं मोटुं पेट, छुःख देखतां चाले नेट ॥३॥ बिज पारकां जोतो फरे, वि. घन पारका दियडे धरे ॥ निंदा करतां न लहे शंक, परनवमां ते थाये रंक ॥४॥ राजाना फाड्या लंडार, रत्न तेहनां चोख्यां सार ॥थूलदेह ते करणी तणुं, दीले मांस वधे अति घणुं ॥५॥ एक दीकरी आवी रहे, पुत्र तणुं नामज नवि लहे ॥ कोणे कमें सीधां वली, वलतुं बोले एम केवली ॥६॥ [वप्रजाति तव खेती करी, गाय एक ते जाये चरी ।.क्रोधे ब्राह्मण मारी गाय, तिण पापे एक पुत्री धाय ।। । एक पुरुष जे नारी वरे, ते संघली जाये जमपूर ॥ कोण कर्म पहोते तेहने, होवे न नारी एक जेहने ॥ ॥ पूरव; नव नारी अति घणी, विण अपराधे तेणे अवगणी ॥ शस्त्रघात विष. घाते करी, मारी पाप बुद्धि मन धरी ॥॥ जेह जी. वने उपजे नरम, तेहज पोते कहो कोण कर्म ॥ उत्तम जाति धने गर्वियो, नांग अफीण सुरापान कियो । १०॥ विषम ज्वर अति दाद ऊपजे, तेदने कर्म कहो को जेजे ॥ पोती गाड वाहे उंट, जरे चार अधिकी . . .. . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३.) तस पूंग॥ ११॥ उनाले अनि ज्वले अति घणी, धन खोने थाये ते जणी ॥ तापे पीड्यां आर्ति करे, तृषा क री पशु खियां मरे ॥ एह पाप जाणो तस शिरे॥ १॥ चार पांच उ मासे करे, अधिको नारी गर्न नहिं 'धरे ॥ कोण कर्म पोहोते तेहने, ते संबंध कहो हित घणे ॥ १३॥ आहेडी वनमांहे शोर, करे पापीया पाप अघोर ॥ पाडे हरिणने बहुला त्रास, गर्नपात तिणे गर्जनो नाश ॥ १४ ॥ विधवा बालपणे जे थाय, तेहने पाप कोण कदेवाय ॥ निज नरतारने मारी हाथ, रमे रंगे बीजानी साथ ॥ १५ ॥ पुत्र जनम पामीने मरे, संतति एक नहिं तसु ष कर्म पूरब नव कयां, तेणे संतान श्रवृतयों ॥ १६॥ पहली ढाल ए पूरी करी, कर्म विरोधक ब ना कर्म टाले नर नार, वीर मुलीये संसीए.१७७२२॥ ॥दोहा ।। ॥ मृग वराह शंबर शशा, महिष गग बक मोर ।। तित्तर पोपट चरकला, हंस कपोत चकोर ॥१॥ मारे एहवा जीवने, हाथ सरासर नाडी ॥ मीनादिक जल चर हणे, जाले पाशमां पाडी ॥२॥ पशु पंखी माणस - . . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) तणां, जेह विणासे बाल ॥ नाश करें जू तीरुनो, तें वांगीया संजाल ॥ ३ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ वाट जोवंतां श्राव्यांजी | सुंदर साहेली || मोर लीये टदुकायांजी ॥ सुंदर गोरडली ॥ ए देशी ॥ ॥ पुत्र पांच प्रकारना कहियेजी ॥ शिष्य तुमे सांजलो || जेदवां कीधां तेवां फल लहियेजी ॥ शिष्य० ॥ पहेलो थापणमोसो जाणोजी ॥ शिष्य० ॥ बीजो रपियो पुत्र वखाणोजी ॥ शिष्य० ॥ १ ॥ त्री जो वेरी पुत्र जीजेजी ॥ शिष्य० ॥ चोथो उदासीन गणीजे जी ॥ शिष्य० ॥ पुत्र पांचमो ते सुखकारीजी ॥ शिष्य ० ॥ ते जाणो तुमो निरधारीजी ॥ शिष्य० ॥ २ ॥ थापण मूकी जाये कोइजी ॥ शिष्य० ॥ नलवीने राखे सोइजी || शिष्य० ॥ धणी यावीने जव मागेजी ॥ शिष्य ॥ कड़े ताहारुं कांदि न लांगेजी ॥ शिष्य० ॥ ३ ॥ में हाश्री हाथे दीधीजी ॥ शिष्य० ॥ तुमे घरमें मूकी सी धीजी ॥ शिष्य० ॥ तुं वाम मूल्यो बे जाईजी ॥ शि यः ॥ तादरे महारे कोण सगाइजी ॥ शिष्यः ॥ ४ ॥ tad a धडधडताजी | शिष्य० ॥ दरबारे जाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) ते वढताजी ॥ शिष्य० ॥ सादी विण कहे रायजी ॥ शि० ॥ अमथी कां न कहेवायजी ॥ शिष्यण ॥ ५॥ प्राणांत लगे दुःख व्यापजी ॥ शि॥ तोही लोजी पा बुनापेजी॥शि०॥ ते मरण पामे तमु दुःखेजी॥ शिण ॥ आवी नपजे ते कुखेजी॥ शिष्य० ॥६॥ पहेली अ. घरणी कीजेजी ॥ शि० ॥ अव्य बहुढं तिहां खरचीजे जी॥शि ॥ घर पुत्र श्रई जव श्रावेजी ॥.शि०॥ तव याशा पूरी कहावेजी॥ शिष्य॥ ॥ वधामणि दी. धी जेणेजो। शि ॥ लखमी पामी बहु तेणेजी॥शिण ॥जन्मोतरी जोषीये कीधीजी ॥ शिबखशीस घणी तस दीधीजी॥ शिष्य ॥॥रूपवंत, घणुं गुणवं तोजी॥शि०॥ सघले लदणे संजुत्तोजी॥ शिवाजा ट नोजक नाम नवायाजी ॥शि ॥ गीत गाये नाचे सवायाजी ॥ शिष्यः॥ ए॥ दान दे घणुं संतोषेजी ॥ शिण | निजनाति कुटुंब सहु पोषेजी ॥ शिण॥ पान फोफल नारीयर दीधांजी ॥ शि॥ पहेरामणी करी राजी कीधां जी ॥ शिष्य॥१०॥ दी, जी॥शि || जाणे कारज माहरु सीधुं जी ।। शि०॥ माथे नवरंगी टोपी जी ॥ शिजरफाग फि रंगी उपो जी ॥ शिष्यः ॥ ११॥ बांगला दरीया दी .. - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से जी॥ शि०॥ माय बाप तणां मन हीसे जी ॥ शिक ॥ हाथ पगे सोनानी कमली जी ॥ शि०॥ अणियाली आंखडली जी ॥ शिष्य० ॥१२॥ काने मोतीनी लालडी सोहे जी॥ शिण॥ कडे कंदोरो मन मोहे जी ॥ शिण ॥ पगे राती पगरखी घाले जी॥ शि० ॥ उमकं तो बांगण चाले जी॥ शिष्य ॥ १३ ॥ जेम रूप नंदन नुं निरखे जी॥ शितेम हियडामां घणुं हरखे जी ॥शि ॥ मुज जाग्यदशा सपराणी जी। शि० ॥ पुत्र बोले मधुरी वाणी जी ॥ शिष्य० ॥१४॥ पांच वरस लगे लाले पाले जी॥ शि॥ पसीनणवा मेट्यो निशाले जी॥शि०॥आपे निशालीयाने खडीया जी ॥ शि०॥ रूपा सोनाना ते घडीया जी॥ शिष्य ॥१५॥ वतरणां विणा जवफूली जी ॥शि॥ आपे सुखडली बहु मूली जी॥शि ॥ खीरोदक शणियां चकमा जी ॥ शि०॥ पांमरी पीतांबर थकमां जी ॥ शिष्य० ॥ १६॥ पंमितने बहु धन आपे जी॥ शिण ॥ जाणे कोर्ति मा. हारी व्यापे जी॥ शिजणी गणिने थयो ते पोढो जी॥ शि॥ सहु कहे पिताथी दोढो जी ॥ शिष्य र॥ माता पण वचन न लोपे जी ॥ शि०॥ कुवचन कहे तोही न कोपे जी ॥ शि०.॥ एम प्रीति देखा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9) डो पूरो जो ॥ शि० ॥ जो थापण होवे अधूरी जी ॥ शिष्य ॥ १८ ॥ रोग उपजे तेहने अंगे जी ॥ शि० ॥ वात पित्त प्रबन कफ संगे जी ॥ शि० ॥ तव वैद्य तेडे ससु काजे जी ॥ शि० ॥ धन नहिं तो काढो व्याजे जी || शिष्य० ॥ १८ ॥ जूआ धूणे ने कहे नूतो जी ॥ शि० ॥ ऊजणी नाखी अवधूतो जी ॥ शि० ॥ दोरा मंत्री ब दुला बांधे जी ॥ शि० ॥ आयु ऋटुं कोइ न सांधे जी ॥ शि० ॥ २० ॥ पे वली गोली क्काय जी ॥ शि० ॥ करे कारज सबलां साथ जो ॥ शि ॥ निज थापण सघली लेर जी ॥ शि० ॥ सुत पोहोचे परजव तेइ जी ॥ शि० ॥ २१ ॥ नंदन तुं प्राण आधार जी ॥ शि० ॥ कां मेली गयो निरधार जी ॥ शि० ॥ एम करे अनेक विला प जी ॥ शि० ॥ उदय श्राव्यां जे कीधां पापजी ॥शि० ॥ ५२ ॥ ढाल बीजी पूरी कोधी जी ॥ शि० ॥ राग सो रखमांहे सीधी जी || शि० ॥ एहवी करणी जे टाले जी || शि० ॥ वीर पापपंक पखाले जी ॥ शि० ॥ २३ ॥ ४८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ रुष संबंधे ऊपजे, पुत्र कुपुत्र कुमित्र । पशु वै हि म जाई वहू, मात पिता कुकलत्र ॥ १॥ माये रण कोइ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मत करो, रण जूनु नवि थाय ।। परनव जीव जाये ति हां, रण जाणो फुःखदाय ॥२॥ ॥ ढाल रोजी॥ ॥ देशी फुबखडानी॥ ॥ रखे को रण करो॥ ए बांकणी ॥ सुणजो हवे आदरी करी रे, रणिया सुतनी वात ॥ रखे कोई रण करो॥जे दिनथी ते ऊपजे, ते दिनथी तिरजात ॥ र. खे॥१॥ को गुण माने नहिं, बोले निरी वाण ॥ रखे०॥ मीमीतुं सवि जखे रे, कोइ न माने आण ।। रखे ॥२॥ वस्तु जली जे घरे होवे रे, ते चोरी करी लेय ॥ रखे ॥ जो वारे माता पिता रे, तो गाली तसु देय ॥ रखे ॥३॥ राठ पीठ जे घर तणां रे, वेची खाये सो॥रखे॥ नांजे होमलां कुंमलां रे, जो तेहने कहे को॥ रखे ॥४॥ए बालक को नवि लहे रे, करशे घर तणां काम ॥ रखे ॥ मा बाप तेहनां श्म कहे रे, मोहोटो थाशे जाम ॥ रखे॥५॥ शोल वरसनो जव थयो रे, परणाव्यो मन रंग ॥ रखे ॥ विवाहे धन खरची घणुं रे, वढूअर आणी चंग ॥ रखे ॥ ६॥ मास एक-परण्या थयो रे, मांनी तव वढवाड ॥ रखे० । सासु समझो एम कहे. रे, थावी नडी कुहाड ॥ रखे० ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेस्यो जरतारने रे, सासु जूमी रांग ॥ रखे० ॥ खांहुं पीसुं जल वहुं रे, मुजने नाम नाम ॥ रखे ॥७॥ नारायण वश नारीने रे, माणसनुं शुं ज्ञान ॥ रखे ॥ अं. तसमय सहु एम कहे रे, नारीनां जून प्राण ॥ रखे ॥ ए॥ वयण सुणी नारी तणां रे, कोप्यो ते परचम ॥ रखे०॥हणवा ऊ माय तायने रे, लेई मूशल दंग ॥ रखे ॥ १०॥ माल मंदिर ए माहारां रे, एहमां नयी तुम लाग ॥ रखे ॥ काली जंटीयां मा बापनां रे, काढे ते निर्जाग ॥ रखे ॥ ११॥ एम फुःख देश तेहने रे, पामे मरण अकाल ॥ रखे०॥ मुह बागल मूकी जाय रे, विधवा वहन शाल ॥रखे ॥२॥ पेहरी नढी नविशके रे, कांइन सूजे काम ॥ रखे। लेणियायत जो आवशे रे, किहांथी देशुं दाम ॥ रखे ॥ १३॥ शं कातो निशि दिन रहे रे, ऊठी जाये परदेश ॥ रखे॥ घरनी नारी पुःख सहे रे, बाली जोबन वेश ॥ रखे। १४॥ इह नव परनव रण तणां रे, जाणी खूषण टाल ।॥ रखे। वीरमुनि त्रीजी कहे रे, फुबखडानी ढाल ॥ रखे०॥ १५॥ स०॥ ७० ॥ . . . .॥दोहा॥ .... ॥ हसे रमे मीतुं चवे, मोहे मन माय ताय गरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) सुत ते जाणीये, बाल पणे मरी जाय ॥१॥वली - पजे वलि वलि मरे, गर्ने व्यो सोय ॥ नाश करे धन धान्यनो, एम उःखदायी होय ॥२॥जो कदाच महोटो थयो, घणो करे हेराण ॥ विष प्रयोग शस्त्रे हरे, मात पितानां प्राण ॥३॥ सुख दुःख काई नवि करे, नवि आपे नवि लेय ॥ रूसे तूसे जे नही, उदासीन गणो तेय ॥४॥ जात मात जे प्रिय करे, क्रीडा करतो रंग ॥ यौवन वय जे सुख दिये, नक्ति तणे परसंग ॥ ५।। संतोषे माय बापने, मोठे वचने जेह ॥ कथन कदा लोपे नाह, सुत, ए पंचम नेय ॥ ६॥ . ॥ ढाल चोथी॥ ॥ नेमिराय तुं धन्य धन्य अणगार ॥ ए देशी ॥ ॥जीहो काला काला जामगं, लाला सघले मीले रे थाय ॥ जीहो पूरे जंबु सुधर्मने, लाला कुंण कर्मे कहेवाय ।। कृपानिधि मुजने नांखो तेह ॥जेम लांगे मन संदेह ॥ कृपा ॥१॥ ए आंकणी ॥जीहो सर्व दिव. समुनिने ठणे, लाला सतीने करे संताप ॥जीहो तेणे पापे करी ऊपजे, लाला कोढ रोगनो व्याप ॥ कृपा ।। १जीहो केणे कर्मे मुख वासना, लाला गंध होय शाख । जीहो वकवदन वक्षी आंगुलि, लाला जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिये मुनिने गाल || कृपा०॥३॥ जीहो रातुं अंग रो म उज्ज्वलां, लाला पांपण जेहनी श्वेत॥ जोहो पिंगल नर ते नांखिया, लाला कवण कर्मनो हेत ॥ कृपा॥४ ॥जीहो चैत्य सूरज सन्मुख सदा, लाला जे करे लघु वड नीत ॥ जीहो तेणे पापे करी प्राणीया, लाला पिंगला धरजो चित ॥ कृपा ॥५॥ जीहो धोलो पीलो रातलो, लाला नानाविध परमेह ॥ जीहो करणी तेहनी कोण लहे, लाला धातु क्षीण होय देह ॥ कृपा ॥ ६॥जीहो सूत्र रजत कंचन त्रंबु, लाला हीरा विद्युम जेह ।। जीहो धातु सकल चोरी ग्रहे, लाला बहु मूत्रता निःसंदेह ॥ कृपा ॥७॥जीहो सूकर कूकर गर्दना, लाला कूकड महिष मांजार ।। जीहो काक उलूक अहि वृश्चिका, लाला कहो कोण पाप प्रकार ॥ कृपा ॥ ॥ ज़ीहो दान दया तप व्रत नही, लाला यात्र न पर नपकार ॥ जीहो रात्रिनोजन जे करे, लाला तेहथी ए अवतार ॥ कृपा ।। ए ॥ जोहो चंग कुशीला कर्कशा, लाला कलह करे दिन रात ॥ जीहो रूप कुरूप काली घणुं, लाला नेशलंकी सुविख्यात ॥ कृपा ॥१०॥ जीहो धूकखर खरगामिनी, लाला माथे बाबरवाल । जीहो क्रोधमुखी बडबड करे, लाला दांत जिस्या कोदायिः ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) कृपा ॥ ११ ॥ जीहो चाटु पाटु पाउले, लाला पतिनै करे प्रहार ॥ जीहो एहवी नारी जेहने, लाला कवण कर्म अधिकार ॥ कृपा० ॥ १३ ॥ जीहो नणंद देराणी जेगणीयां, लाला सासू ससरो जेठ । जीहो वडसासू देवर वह, लाला कर्म करे नहिं वेठ ॥ कृपा ॥१३॥ जीहो जे जिनवर पूजे नहि, लाला करे आशातन थूल ॥ जोहो निंदे जनने जे सदा, लाला जाणे ए पापर्नु मू. ल ।। कृपाण ॥ १४ ॥जीहो पांच सात पुत्री हुवे, लाला पुत्र तणूं नहिं नाम ॥ जीहो तेहतणां परकाशिये, सा ला पूरव नवनां काम ॥ कृपा ॥ १५॥जीहो आहेडी नवे जंगले, लाला रोके जलनां ठाम ।। जीहो कूप नदी अह वावडी, लाला पशु पंखी आवे जाम ॥ कृपाप ॥१६॥ जीहो ऊनाले अति आकरो, लाला तडके दा. के रे देह ॥ जीहो तरस्यां ते पागं वले, लाला पाप घ[ तसु होय ॥ कृपा ॥ १७ ॥ जीहो थारंज्युं निःफल होये, लाला सीके नाहिं को काल । जीहो विधन घ. णो होय तेहने, लाला कोण कर्मे महाराज ॥ कृपा ॥ १० ॥ जोहो मात पिताने पीडवे, लाला मान नहं। गुरु थाण ॥ जीहो कारज गुरुनु नवि करे, लाला तेहy एह निदान ।। कृपाण ॥ १५ ॥ जीहो अणजाण्यो नय ऊप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) जे, लाला सूतां बेग रे श्राव । जीहो अणदीतुं दी कहे, लाला तसु फल मन संजाव ॥ कृपा ॥२०॥ जी हो ए उपदेश सोहामणो, लाला सांजलि टालो रे दोप॥जीहो चोथी ढाल पूरी थइ, लाला वीर कहे पुण्य पोष ॥ कृपा॥१॥ ए॥ ॥ दोहा ।। ॥ चार पांच पुत्री हुवे, ते सघली रमाय ॥ पूरव जव तिण प्राणीये, कीधा कोण अन्याय ॥१॥ चैत्य कूप सर वावनां, करे विघन धन खाय ॥ग्रामादिक बा ले बली, जनमांतर नर हाय ॥२॥ मंद वाय पीडा क रे, पाप तेहनां नांख ॥ मद्य मांस जे नर नखे, मरणांत फल अनिलाख ॥३॥ काने कां न सांजले, कोण कस्यां कुकर्म ॥ कहो पूज्य! जंबू नणे, वलतुं कहे सुधर्म ॥४॥ साधु वचन नवि सांजले, सुणे नहीं सिझांत ॥ अणसांजव्युं कहे सानदयु, बहेरो थाय इम ब्रांत॥५॥ ॥ढाल पांचमी ॥ ॥ पुण्य प्रशंसिये ॥ ए देशी॥ ॥ वात गुल्म होये जेहने रे, पेटे थाये रे पीड़ा । खाधुं धान्य जरे नही रे, कवण कर्मनी जीड रे ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) कर्मकथा कहो ॥ ए आंकणी ॥ गणधर गुण नंमार रे ॥ कर्म ॥ अमृत वाणी वरसता रे, जगजीवन हितका र रे॥ कर्म ॥२॥कोह्यो विणो जे होय रे, कोइन वांडे जास ॥ ते वहोरावे साधुने रे, ए फल जाणो तास रे॥ कर्म ॥३॥ खयन व्याधि तस ऊपजे रे, रोग स हुनो रे वास ॥ रात दिवस खू खू करे रे, कफ तणो आवास रे॥ कर्म ॥४॥ हाड तणो विक्रय करे रे, जे वली विष व्यापार || मधु पाडे वनमां जरे, क्षयरोगी निर्धार रे॥ कर्म॥५॥ जन्मथकी जे आंधलो रे, पाल प्रवालां गय | नेत्र रोगी बहजातिना रे, कवण कर्म अंतराय रे ॥ कर्मः ॥ ६॥ परस्त्री निरखे रागगुं रे, परनारीशं प्रीत ॥ काज विणासे पारकुं रे, आंख तणी एरीत रे॥ कर्म ॥७॥ आधाशीशी अति घणुं रे, मा थे पीड करत ॥ ऊंचं जोश नवि शके रे, कोण अशुन आचरंत रे । कर्म॥ ॥ अग्नि साखे आदरे रे, श्यामा आयत कीन ॥ चित्त ताहरुं ने मारुं रे, निन्न गणवा लयलीन रे । कर्म ।।।। परणी नारी परहरी रे, पररमणीशुं रंग ॥ घरनावे जे थापणे रे, तिण शिर साख प्रसंग रे॥ कर्म० ॥ १० ॥ सूयर सर जेदने रे, मुखाई छोये अनिष्ट ॥ तेणे श्यां पाप समाचख्यां रे, ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) जांखो मुफ इष्ट रे ॥ कर्म॥११॥ एक नर दान बहु विध दिये रे, आपे ऊलट थाणि ॥ निंदे तेहने नित्य प्रत्ये रे, तुंगमुखो ते जाण रे॥ कर्म॥१२॥ गर्ने शा ल थई रहे रे, वधे नहिं जे बाल ॥ पूरव नव तेणे आद स्यां रे, कवण कर्म विकराल रे ॥ कर्म ॥ १३ ॥ जातमात्र ते बालने रे, विवाहनी धरे शंक ॥ मारे पाडे ग. ने रे, तेहने शाल निःशंक रे । कर्म॥१४॥ स्थानज्रष्ट नर जे हुवे रे, पामे नहि किहां गम ॥ पापप्रकृति कोण तेहने रे, ते संजलावो खाम रे ॥ कर्म ॥ १५ ॥ मारग अथ जल थानके रे, वृद्ध महाफल नार ॥ पशु पंखी पंथी जिहां रे, ख्ये विशराम अपार रे ॥ कर्म ॥ १६ ॥ कापे एहवा वृक्षने रे, तेहने गम न होय ॥ जि हां जाये तिहां पुःख सहे रे, बेसण न दिये कोय रे ॥ १७ ॥ कोढ रोग घट जेहने रे, धोबुं थाये गात्र ॥ मोहो टा माणस जेहगुंरे, बोले नहीं दणमात्र रे ॥ कर्मः॥ १७॥ लोपे वृत्ति जे साधुनी रे, गोवध चोरी जूठ ॥ कन्या धन जे वावरे रे, कूलां कुंपण कुहरे ॥ कर्म ॥ १५ ॥ खूटे खांते ख्यालशुं रे, ते नर कोढी रे थाय ॥ कीधां कर्म न बूटीये रे ॥ जब तब फुःख दे श्राय रे कर्मः ॥ ३०॥ मात पिता नारी तणो रे, बेटा बेटी वि; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) योग ॥ जेहने श्रावी ऊपजे रे, कवण कर्मनो नोग रे ।। कर्म ॥२१॥ गाय वत्स-माय बापनो रे, पंखी पुत्र विडोह ॥ पाडे पापी तेहने रे, मलवाने होये रोह रे ॥ कर्म ॥२२॥ सूत्रनी वाणी सांजली रे, टाले दूषण पूर ॥वार कहें ढाल पाचर्म। र, पामे सुख जरपूर रे ॥ कर्मः ॥ २३ ॥ सर्व गाथा ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ... ॥नंदन श्रथवा नंदिनी, जन्म पामे माय बाप ॥ मरण धर्म पामे तुरत, कवण कर्म संताप ॥ १॥ शरणे आव्या जीवने, जे शरणुं नवि थाय ॥ परनव तेदना पापथी, शरण विना सीदाय ॥॥ जलोदरे करी जे पुःखी, पेट न होवे नर्म ॥ तेणे संच्या कोण पागले, न वमां अधिक अधर्म ॥३॥ जाति पांति गणे नहि, खाये जद अन्नद ॥ विरति नहिं कोई वस्तुनी, जलोदर थाये प्रत्यक्ष ॥४॥ ॥ ढाल बही॥ ॥ हरीया मन लागो॥ ए देशी॥ कंगनाल रंगमाल जे. दांते जीने छःख रे॥सोहम खामी कहो ॥ लंब होठ होय बोबडो, पाके जेहनुं मुख रे । सो ॥१॥ अकारज कीधां किस्यां, पूरव न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) व तेणे जीव रे ॥ सो० ॥ मुखरोगे करी मानवी, पाडे घणी घणी रीव रे || सो० ॥ २ ॥ गांव बोडे जे पारकी, धूतावी लीये माल रे ॥ सो० ॥ कंठमाला होय तेहने, गंगवाल कमाल रे || सो० ॥ ३ ॥ स्वाद करे जे नव नवा, खावानो होय वाढ रे || सो० ॥ याम पाखी नवगणे, डूःखे दांत जीन दाढ रे || सो० ॥ ४ ॥ जिव्हा वश राखे नहिं, बोले बहुलां कूड रे ॥ सो० ॥ संयम सहित सुधा यति, कूम करे तस मूढ रे ॥ सो० ॥ ॥ ५ ॥ ते परजव थाये बोबडो, होगे वली मुखना रोग रे || सो० ॥ श्राप कमाइ दुःख सहे, बूटे न कर्मना जो गरे । सो || ६ || श्रवण वढे जेहना सदा, रुधिर पर निकसंत रे ॥ सो० ॥ कामे नाखे फाटका, कवण कर्म विकसंत रे || सो० ॥ ७ ॥ जांग जवाई सांजले, चाडि चुगलनी घात रे || सो० ॥ श्रादर करी आदरे, कान तणी ए वातरे ॥ सो० ॥ ८ ॥ दीर्घदंत मुख नीकले, दी से घणुं विरूप रे ॥ सो० ॥ पर अपवाद घर घर करे, एतसु कर्म स्वरूप रे || सो० ॥ ए ॥ पगरहित होये पां गलो, पगलुं एक न खसाय रे ॥ सो० ॥ पूरव जवनुं तेड़ ने, कत्र कर्म दुःखदाय रे ॥ सो० ॥ १० ॥ पंग जोगी चाहे पशु, दया रहित रखडत रे । सो० ॥ चांबली वड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रांबली, कोपे कुमति पडंत रे । सो० ॥ ११ ॥ श्वेतार कादिक औषधि, काढे तेहनी जडंत रे । सो ॥ पाप उदय जब आवियां, खूलो पंगु लोमंत रे । सो० ॥ १२ ॥ मूत्र कृबू करी महा कुःखी, पथरी रोग प्रचंमरे ॥ सो॥ अंतर्गल शोफो होय, कवण कर्मनो दंग रे ॥ सो ॥ १३॥ जे राजानी रमणीशु, सेवे विषयनां सुख रे। सो॥ मूत्र कृवनुं तेहने, परजव थाये छुःख रे ॥ सो ॥१५॥प्रेम करी परनारीशू, काम राग विलसंत रे॥सो । परदाराना पापथी, पथरी प्रबल दमंत रे ॥सो० ॥ १५॥ गुरुणीशं रंगे रमे, कामविषयना राग रे ॥सो॥ अंतर्गल होय तेहने, किहां न लहे सोनाग रें। सो॥१६॥ महिला मित्रनी जोगवे, वारे तेहथु वढंत रे ॥ सोनवि बीये अपवादथी, शोफो तास चढंत रे । सो॥१७॥ दीसंतो अति फूटरो, बोली न शके बोल रे॥ सो॥ मूंगो गूगो मूलथी, कवण कर्मनो रोल रे ॥ सो ॥ १० ॥ अनिर्वचन गुरुने कहे, महो टार्नु हरे मान रे॥ सोए । कूडी साख तिहां दीये, गूंगो इणे अनिमान रे । सो ॥ १ए॥ ए फूषण जे टाल शे सांजली ए उपदेश रे। सो० ॥ ढाल उठी कहे की रजी, सूषण नहि सवलेश रे । सोए ॥२०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) ॥ दोहा ॥ ॥ शूल व्याधि जे नर लदे, गावी जमली कूख ॥ औषध को माने नहि ॥ कवण कर्मनुं दुःख ॥ १ ॥ प शु पंखी मानव प्रते, बेठां बाण दांत ॥ शूलरोग तस ऊपजे, सोहम एम जयंत || २ || कारण चार विना म रे, जे नरनां संतान ॥ तेह तणां गुरुजी कहो, कवण क मैं विना ॥ ३ ॥ सूरजने सन्मुख थई, देवालयमां जा य ॥ द्रव्य लोज मनसा धरी, साधु तथा सम खाय ॥ ४ ॥ सम खाती शंके नहि, कृषि माथे कर देय ॥ मृषा सम की धाकी, संतति नाश करेय ॥ ५ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ दोसलानी ॥ रूपन जिणंदशुं प्रीतडी ॥ ए देशी ॥ ॥ तुंग जे होय मानवी, बेहु हाथे हो न कराये. काज के ॥ पूज्यजी कहे कवियण सुणो ॥ ए आंकणी ॥ जव पहेलो जे जांखिये, तेहने होय हो जे कर्मनो साज के ॥ पूज्य ॥ १ ॥ सुधर्मा वलतुं एम कहे, सुप जंबू हो तसु कर्मनी साख के ॥ रसीयो पाप तो रसे, जे बेदे हो पंखीनी पांख के ॥ पूज्य० ॥ २ ॥ मात पिता गुरु साधुने, निज हाथे हो ताडना करे तिरक के ॥ पर जव करम उदय होय, कर्म पांखे हो मागे ते जीख के ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) पूज्य० ॥ ३ ॥ अंगजंग हुवे जेहने, नगीने हो बेठानी न श्रय के || पाप जनम पूरव तणां, मुज तेहनां हो सुवा उजमाय के || पूज्य० ॥ ४ ॥ चैत्यजंग करे चाहि ने, अधमाधम हो करे प्रतिमा जंग के ॥ तेथे कर्मे करें। पामियो, परजव नर हो थाये अंग जंग के ॥ पूज्य० ॥ ॥ ५ ॥ वड बोर लींबु जेवडा, मसा मोहोढे हो होये आखे मील के ॥ रसोली बोटी वडी, वदने वली हो था खे खील के । पूज्य ॥ ६ ॥ करणि कोण ते आदरी, ते दाखो हो गुरुजी गुणखार के | गाढे घाये ढोरने, खर श्वानने हो मारे पाषाण के ॥ पूज्य० ॥ ७ ॥ गड गुंबड न टले कदा, कान देवल हो थाये करणक मूल के ॥ गुति अरुऊ चांदी होये, कोण तेहने हो करम प्रतिकूल के ॥ पूज्य० ॥ ८ ॥ बाडी अति रलीयाम पी, देखीने हो दरखे सहु लोक के । चोरे फल फूल तेनां, गुंबडानो हो पामे ते शोक के ॥ पूज्य० ॥ ए॥ पग फाटी थाये चीरीयां, खस लूखस हो अंगे थाये दाज के ॥ उपचारे उरसे नहीं, दुःख देखे हो कोण करम प्रसाद के ॥ पूज्यः ॥ १० ॥ मासे प ऊपजे मासे दो वरसे बहु रोग के ॥ सास खास कफ फूटपी, कये दुःखे हो एम होवे मोग के ॥ पूज्य० ॥ १२ ॥ - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) साप सरीटी सापणी, वींडी वढण हो मारे पुण्यदेत के ॥ गोद बनुंदरीने हणे, तेथे करणी हो मुख तस फल देत के ॥ पूज्यo || १२ || मंदवाड थाये चीकणी, घरमा दो थोडी होये तोष के ॥ जनमांतर तेथे पोपीये, पाप संच्यां हो जगवन् कहो कोण के ॥ पूज्ये ॥ १३ ॥ धर्मत थानकथकी, साज लेइ हो सहु दूषण लेह के ॥ जीवदया पाले नहिं, व्याधि सघलो हो व्याप तम देह के || पूज्य० ॥ १४ ॥ हितउपदेश हियावटे, सांजलीने हो सहु डूषण टाल के ॥ पुण्यवशे प्राणी घणी, सांजलजो हो सह सातमी ढाल के || पूज्य० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ -: ॥ पीनस रोग पीडा करे, शोषित नाक स्वयंत ॥ वांकी से नासिका, कीटक प्राणी दमंत ॥ १ ॥ केहेवां कर्म करयां तेणे, पूरवले जवे खाम ॥ जविक जीव तुमे सांजली, करो न एहवां काम ॥ २ ॥ चलीमार जवे चरकलां, पापी जे मात | मोर चकोर को किल सुखा, पीनस ते धरंत ॥ ३ ॥ यक्ष राक्षस ने किंपुरुष, नूत प्रेत गंधर्व । पिशाच महोरग किन्नरा, ए को क में सर्व ॥ ४ ॥ जलमांदे बूडी मरे, परवल चडी पडेल अभि सर्प विष शस्त्र मृत, व्यंतर ए सवि हुंत ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ॥ ढाल बाठमी॥ ॥ मनमोहन लाल ॥ ए देशी॥ ॥ कुत्सित रूप बीहामणुं ॥ कहो केवली लाल ।। माथु महोटुं तीब रे॥ कहो केवली लाल ॥ कपिल केश आंख चीपडी ॥ कहो ॥ वचनकटुक जिम नींब रे ॥ कहो॥१॥ नाक ब कान सूपडां ॥ कहो ॥ लां बा हो हलकंत रे॥ कहो ॥ श्याम वदन दंत वंकड़ा ॥कहो । खर जेम त्राडुकंत रे॥ कहो ॥२॥ केहने दी नवि गमे ॥ कहो । गर्दन मुह जाणे पूड रे ॥क हो ॥ महिष कंध मातो घणो ।। कहो ॥ सूरवाल दा ढी मूब रे ।। कहो ॥ ३ ॥ कुंण करम कीधां तेणे ॥ क हो ॥ जेहथी एहवू कुरूप रे ॥ कहो ॥ उपकारी सो हम कहे ॥ कहो॥ तेहनुं सर्व सरूप रे ॥ कहो ॥४ ॥ पंच महाव्रत सूधां धरे ॥ कहो ॥ सौम्यवदन सुक माल रे ॥ सुणो धारणी नंद ॥ करे रक्षा उकायनी॥ सुणो॥ जेम पाले माय बाल रे ॥ सु० ॥५॥ ममता माया नवि करे ।।सुणी ॥ टाले दूषण बायास रे ॥ Kा चारित्रथी के नहि रे ॥ सु० ॥ परिसह देखी याल रे सु०॥६॥ उनाले से आतापनारे ॥ सु॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ॥ शीयाले सहे शीत रे ॥सु॥ मांस मसानां दुःखस हे ॥ सु०॥ शत्रु मित्र समचित्त रे ॥ सु०॥७॥ मुनि वर समता रस नस्यो। सु०॥ कांचन उपल समान रे ॥ सु०॥ पुक्कर तप संजम धरे ॥ सु०॥ न करे तासु निदान रे ॥ सु० ॥ ७॥ हसे धुंके हेला करे रे। सु० ॥ मलमलीन तनु देख रे ॥ सु॥ए पुगंध दोजागीया ॥सु०॥ करे घणो विशेष रे ॥सु ॥ ए॥रूप मदे मो ह्यो थको रे ॥ सु०॥ धर्मबुझि उवेख रे ।। सु०॥ कर्म उदय सब ते हुवे ॥ सु॥ थाय कुरूप विशेष रे ॥ सु० ॥ १० ॥ आदरशुं ढाल आठमी ॥ सु०॥ सुणतां होय श्राणंद रे ॥ सु०॥ देवचंद वाचक तणो ॥ सु ॥ शिष्य कहे वीरचंद रे ॥ सु०॥ ११॥ इति ॥ ॥दोहा॥ ॥ःखे आंख रहि रहि, तेहगें कहो कुण पाप ।। परगुण देखी नवि शके, तेहथी आंख अदाप ॥१॥ शिर कर कंपे जेहना, गात्रे थाय प्रखेद ॥ अंग सघलां शूनां होये, कवण कर्म संवेद ॥२॥ मारगमांदे हीमतां, शस्त्र हाथमां होय ॥ वाहे जिहां तिहां काम विण, कंपरोग तेणे जोय ॥३॥ पक्षाघात परानवे, कवण करण संयोग ॥ दाणे स्त्री हत्या करे, अर्थ अंग हुवे रोग | ..... ...... . . . . .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) ॥ ढाल नवमी॥ नदी जमुनाके तीर, उमे दोय पंखियां ॥ ए देशी॥ .. ॥व्रण वाहे नासूर, क्रूर मुख मीलमे ॥ पवित्रपणुं नही होय, रहे कुचीलमे ॥ कवण कर्म तेणे कीध, सिक नही औषधे । गिरुआ गुणह निधान, कहो करुणा बुझे ॥१॥ कान नाक विधीने, परोक्ष दोरडां ॥ कौत क कारणे कान, कापे कोरडां ॥ पशु पंखी प्रत्ये एम, पीडे जे पापीया ॥ नासुरे करी तेह, होय संतापीया ॥ २॥ रक्त पित्तनो रोग, लहे जे जीवडा ॥ गले अंग उ पांग, पडे मांहे जीवडा ॥ नवांतरे तेणे पाप, कीधां प्रजु केहवां ॥ मनुष्य तणो नव पामी, पामे कुःख एहवां ।। ३॥महिष महिषी ने बाग, बागी ने बलदीया ॥ फासुं घाली तास, गले मारे पापिया। मरी नरकमांहे जाय, महा अहमी दले ॥ करे खेमो खंग, पारानी परे मीले ॥४॥ जो कदाच वलि ते, मनुष्यमांहि अवतरे ॥पा में बहुलां छुःख, गलित कोढे मरे ॥ हरस रोगे करी जेह, थातुर होये श्रातमा ॥ पाप तेहनां कोण, कहो पुण्यातमा ॥५॥ फोडे सरोवर पास, नदी उह शोष. दे॥ जलविण सहु जल जंतु, घणा पुःखीया होवे ।। ते कर्मने पाप, पीडा होवे हरसनी।। चित्ते दया न. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) विकीध, थावर ने त्रसनी॥६॥ कुटुंब तणी होये हा ण, के जेहने सरवथा।। तेह तणां जे पाप, कहो जे हो ये यथा ॥ माजीने नवे आवी, मारे जे माउला ॥ तणे कुटुंबनो नाश, जाणो कृत पाउलां ॥ ७ ॥ राते नवि दीसंत, दीहे आंख निर्मली ॥ रातअंधो केणे पाप, कहो मुज केवली ।। अरुणोदय मध्यान्ह, संध्याये जे जमे ॥ खाय पीये मध्य रात्रि, रात्यंधो तसु. दमे ॥ ना रांधण वायनी पीड, हाथे पगे करी ॥ कीयां कहेवां कर्म, कहो करुणा करी ॥ घोडा घोडी उंट, फेरे जे छ मति ॥ रांघण तेहने पाप, जाणो होये बती॥ ए॥ वली जगंदरनो व्याधि, राध निकले घण। ॥ असुख था पोहोर, थाय जे रेवणी ॥ फोडे कूकड इंक, पीये रस रसे करी॥ तेह पापने रोग, होये जगंदरी ॥१०॥ एह जाणी प्राणी, जे झूषण टालशे॥ श्रीजिनवरनी थाण, सूधी जे पालशे ॥ ते लेहेशे शिवसुख, फुःख नहिं ले कदा ॥ नवमी ढाले वीर, लहे सुखसंपदा ॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ बेगं फिरतां बोलतां, जिहां तिहां अंतराल । वार थावे फुःख दीये, कवण कर्मनी चाल ॥१॥जश् शिकारे जीवने, मारे विण अपराध ॥ तेह कर्म उदय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) हुये, तव मरगीनी व्याध ॥ २ ॥ खंधे जारटले नहि, क रणी केही कीध | स्वामी अर्थ साधे नहिं, व्याप स्वार्थ मेली || ३ || माढी मूळ होये नहिं, पांपणना जाये वाल ॥ मारे जे जायेजने, दो कन्यानो बाल ॥ ४ ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ ॥ कपूर दोये प्रति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ दाड गंजीर हिया होडी रे, मोहोटा रोग कहाय ॥ जेहने यावी ऊपजे रे, कवण कर्म सहाय ॥ सोजागी सोहम, जाखो कर्मनी वात ॥ जे केवली विष न कहात || सोजागी सोहम ॥ जा० ॥ १ ॥ एकथी । बालक परनां लेने रे, वेचे परदेशे जाय ॥ महि माइना मोहथी रे, दाम गंजीर तस थाय ॥ सो० ॥ २ ॥ जा० ॥ धन पाम्युं थिर नवि रहे रे, जिहां तिहांथी जाय ॥ जन्मांतरना तेहना रे, कवण कर्म उपाय ॥ सो० ॥ ३ ॥ जा० ॥ संन्यासी योगी जती रे, अथवा लिंगी कोय ॥ द्रव्य संच्यां खाये गृही रे, पामे धन नही सो यः ॥ सो० ॥ ४ ॥ जा० ॥ जो कदाच धन संपजे रे, * मि. चोर अन्याय ॥ नृप सघलुं लूंटी लीये रे, यंते खेरु श्राय ॥ सो० ॥ ५ ॥ जा० ॥ प्रतिसार होये जेहने रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (29) थाये बोही बाण || नाखे मलमूत्र यागमां रे, ए तसु कर्म निदान | सो० ॥ ६ ॥ जा० ॥ जे थाये नर कूबडो रे, हीं बेवड होय ॥ कोण कर्म कीधां ते णे रे, जगवन् जांखो सोय ॥ सो० ॥ ७ ॥ ज० ॥ उंट बलद जेंसा बालकां रे, घाठां तेदनां चर्म ॥ लोने जार घणा जरया रे, कीधां एह कुकर्म ॥ सो० ॥ ८ ॥ ॥ जा० ॥ नपुंसकपणुं जे लहे रे, कोण करणी करी दीन || पुरुष नहि नारी नहि रे, माणसमां दी न ॥ सो० ॥ ए ॥ जा० ॥ माणस घोटक ढोरने रे, समारे सुख काम ॥ कुमति गलकंबल छेदने रे, वेद नपुंसक पाम || सो० ॥ १० ॥ जा० ॥ नरके जाये जीवडा रे, पामे बहुलां दुःख ॥ अनंत शीत ताप वेद ना रे, अनंती सदे तृष भूख ॥ सो० ॥ ११ ॥ जा० ॥ तेणे जीवे कोण कीधला रे, कर्मना बंध कठोर ॥ सुर वेदना खेत्रवेदना रे, जे पामे दुःख रोर || सो० ॥ १२॥ जा० ॥ महारंज महामूर्ख ना रे, अस्त चोरी परदार ॥ पंचेंद्रियवध फल जखे रे, नरक लहे अवतार ॥ सो० ॥ १३ ॥ जा० ॥ दोष टाले जो एहवा रे, जवियण देडे याण || दशमी ढाल पूरी थइ रे, वीर तपी ए बाप ॥ सो० ॥ १४ ॥ ना० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) ॥दोहा॥ तिर्यंचमांहे ऊपजे, जीव लहे पुःख जोर ॥ तेणे संच्यां पूरवे, केहां कर्म कठोर ॥१॥ थाप काजे जी जी करे, परनें कामे अपूठ ॥ ममनो पार न को खहे, मुख मोतुं चित्त बु० ॥२॥ जे धूतारे लोकने, हैये होय रोमांच ॥ कर्म करे जे एहवां, पूरव लव तिर्यच ॥३॥ पुरुष वेद तजी स्त्रीपणुं, कोण पापे पामंत ॥ कूड कपट बल चपलता, मायाये महिला हुँत ॥४॥ चोग न पामे ते रति, बती वस्तु न खवा य॥ करे अंतराय आपे नहि, जोग रहित ते थाय । ॥५॥ रीशे धड हड़तो मरे, मातो मान विशेष ॥ खोन खेहेरमां काल करी, कुगति करे प्रवेश ॥६॥ ॥ ढास अगीयारमी॥ " ॥चरणाली चामुंडा रण चढे ॥ ए देशी॥ ॥ वाघ सिंह क्रोधे होय, माने गर्दन श्वान रे॥ नोल साप होय खोजथी, काणो केणे निदान रे ॥१॥ प्रश्न उत्तर गुरुजी कहे, सांजलजो सहु. कोय रे ॥ पांति जेदना पापथी, आंखे काणो होय रे॥प्रभ०॥ ५.२ ।। अजगर केणे कर्मे होये, पेट घसंतो चाले रे ॥ विद्यामद अति घणो करे, कोने अदर नाले रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) प्रश्न ॥३॥ नणे गुणे कहो गुण किश्यो, एम कहीं वंदे प्राणी रे ॥ अजगरमांहे ऊपजे, मूरख मनुष्य निशाणी रे ॥ प्रभ० ॥४॥ रहे सदाये बीहतो, थोडे घणे कडाके रे॥ पशु पंखीने त्रासवे, बंधुक मेहेली जडाके रे ॥प्रभ० ॥ ५॥ पामे दास दासोपणुं, आ दर न लहे रेख रे ॥ निमुंडे सहु तेहने, कवण कर्मना लेख रे ॥ प्रश्न० ॥६॥ जाति मदे मातो फरे, विनय नही तसु पास रे॥ दानादिक पामे नही, हाड विक्र यी थाय दास रे ॥प्रश्न ॥ ७॥ वाला जेहने नीकले, एक बेत्रण चार पंच रे ॥ पामे वेदन अति घणी, क वण कर्मनो संच रे ॥ प्रभ० ॥॥ अणगल जल जे वावरे, गली संखारो नाखे रे ॥ गलतां टुंपो जे दीये, ए वालानी साख रे॥ प्रश्न ॥ए॥ नीच जातिमां ऊपजे, कुण करणीथी तेह रे ॥ अनाचार रातो सदा, निरख सरखमां रेह रे ॥ प्रभ० ॥१०॥ कूडां तोल कुंडां मापले, अधिकुं लेनटुं श्रापे रे ॥ क्रियाहीन कोइ नवी लहे, नीच जाति तेणे पापे रे ॥प्रभ॥११॥ ॥ श्लोक ॥ यत्र यत्र क्रिया श्रेष्टा, तत्र तत्र नरोत्तमाः॥ पत्र यत्र क्रिया नास्ति, तत्र तत्र नराधमाः॥१॥ कि पा बलवती लोके, सर्व धर्मानुसारिणी ॥ असा दया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३० ) क्षमा सजा, शांतिमेधाप्रवर्डिनी॥॥ क्रिया सत्सं गतिः सिद्धिः, सेवा व्रतगति तिः ॥ एता स्त्रयोदशा पत्या, धर्मस्य गृहचारिणः ॥३॥ ढाल ॥ ढाल सोहे अग्यारमी, सांजलतां सुखदाय रे ।। कारण पापतणां तजे, वीर सुखी ते थाय रे । प्रश्न ॥१५॥ ॥दोहा।। ॥ ए फल नांख्यां पापनां, हवे कहु पुण्य विपाक । सुकृत संच्यां सुख होय, आंबे न थाये थाक ॥१॥ जीव लहे नव मनुष्यनो, किणे पुण्ये करी पूज्य । सो हम बोले शुन्न परे, जंबु एम तुं बूज ॥२॥ सरस चित्त सुकुमाल पj, नहिं मन क्रोध लगार ॥ जीव तणी जयणा करे, न्याये वणिज व्यापार ॥३॥ सा त खेत्र धन वावरे, पूजे जिनवर देव ॥ साधुतणी सेवा करे, खहे नरनव ततखेव ॥४॥ नारी मरी नर नो पजे, सुकृत कहिये तास ॥ सत्य शील संतोष दृढ, विनय पुरुष विलास ॥५॥.. - ॥ ढाल बारमी । । दीग देव अनेक, हांजी दीग देव अनेक,.. • नको मन क्से रे॥न को॥ए.देशी॥ ख खहे सुख सार । हांजी० ॥ स्खला अनु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१ ) पम सुरवरा रे ॥ अ॥ थर थरंग रसाल | हां। नाचे बहु अपनरा रे ॥ ना० ॥ गर्न नहीं सुख सेज ॥हां०॥ तिहां ऊपजे सदा रे ॥ ति० ॥ आणंदे सहु देव ॥ हां ॥ कहे जय जय तदा रे ॥ कण् ॥ १॥ मन मान्यां करे रूप ॥ हांग ॥ स्वरूप विविध परे रे ॥स्व०॥ जरा न व्यापे वाल ॥हा॥ के स्वेद नहिं शिरे रे ॥ के ॥ कहो स्वामी.शे पुण्य ॥ हां॥के कि हां कीधां मुदा रे ॥ के कि०॥॥ तजी घरना व्यापार ॥हा॥के पंचेंद्रिय दमे रे । के पंचें ॥ मुक्कर तप बार नेद ॥ हां०॥ सत्तर जेद संजमे रे ॥स०॥ नावे जषक चित्त ॥ हां ॥आणा जिननी वहे रे ॥श्रा॥ दान दया दाक्षिण्य ॥ हां०॥ अमर पदवी लदे रे।। अ॥३॥ नाना विधनानोग ॥ हांग ॥ नला जे जो गवे रे ॥ज॥ फुःख नहीं लव लेश ॥ हां०॥ दीर्घ श्रायु जोगवे रे ।। दी० ॥ सोजागी शिरदार ॥ हां। सहु माने घणुं रे ॥ के स० ॥ जगगुरु नाखो तेह ।। हांग ॥ कारण कोण पुण्यनुं रे ॥ का॥४॥ वस्त्र पात्र अन्न पान ॥ हां०॥ शय्या मुनिने दीये रे॥श॥ अजय दान दातार ॥ हां०॥ जीवदया हीये रे ॥ के जी०॥ खोपे नही गुरु वाण ॥ हां ॥ मीतुंमुख उचरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) ॥ मी० ॥ लोग संयोग सौजाग्य ॥ हां ।। श्रायु घणुं ते वरे रे ॥ श्रायु ॥५॥ केणे पुण्ये बदु बुद्धि ॥हा॥ चतुरता अति घणी रे ॥ च ॥ नणे गणे सिद्धांत ॥ हां ॥ जणावे सहु जणी रे॥ ज० ॥ देव गुरुना गुण गाय ॥ हां ॥ नक्ति गुरुनी करे रे ॥ ज०॥ तेणे पुण्ये करी तेह ॥ हो ॥ पंमित होय शिरे रे ॥ पं०॥६॥ लखमी रहे स्थिरवास ॥ हांग ॥ कोडी विणसे नही रे ॥ को० ॥..परनव तेणे पुण्य ॥ हां ॥ कस्यां कोण नम्मही रे'॥ का ॥ देई दान शुज पात्र ।। हां परतावी नवि धरे रे ॥ ५० ॥ तस घर शकि समृद्धि ॥ हां०॥ सदा वासो करे रे ॥ स० ॥७॥ पौढा पुत्र प्रधान ।। हां० ॥ होय जेहने घरे रे ॥ के हो॥ नारी होय सुपात्र ॥ हां०॥ केणे पुण्ये अनुसरे रे॥ के ॥जीवदया मन शुरु ॥ हांग ॥ पाले नही कारिमी रे ॥पा०॥ वीर कल्याणनी कोडि ॥ हां ॥ रोहे ढाल बारमी रे॥ ल॥७॥ ॥दोहा॥ ॥ केणे लक्षणे क्षत्री होये, केणे लक्षणे द्विज जा त। वैश्य केणे लक्षणे होय, केम होये शूज जात ॥ २॥ संग्रामें शूरों होय, पागे पग नवि देय ॥ शरणे For . .. . ..... .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) राखे अरने, क्षत्री जाणो तेह ॥ २ ॥ जनम जातिची शुद्ध होय, संस्कारे द्विज जाण ॥ वेद अन्यासे विप्र होय, ब्राह्मण होय गुण खाण ॥ ३ ॥ दान दयाने सत्य तप, शौच संयम संपन्न ॥ ब्रह्म विनय विद्या निपुण, ते ब्राह्मण गण धन्न ॥ ४ ॥ कांकर कनक समान मति, तजे शूद्रनुं दान ॥ करे शुश्रूषा धर्मनी, विप्र तपां धाण ॥ ५ ॥ दया दान उपकार मति, असत्य तपो परिहार || बोले वचन विमासिने, वैश्य तणो व्यवहार ॥ ६ ॥ दीना बारी कोष मुखमा धर्म रहित जे होय || श्रद्धा दया न लेने, शुद्ध गजे, सोम ॥ ७ ॥ ॥ प्रश्न जे जे पूनिया, सख्यिक कोहम सूर एक मने, दुखि पाणी दूरे ॥ ते चित्त धरो थो५२. ॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ सुणजो जंबु पृहा जवियण, इह परजव हितकारी ॥ एद सांजलतां कर्म निर्जरा, दोय सही सु खकारी ॥ १ ॥ सुजो० ॥ सोहम स्वामी जंबु तिका री, जंबु पर उपगारी ॥ बारह परखदा बेठा पूबे, प्रश्न सर्व सुविचारी ॥ २ ॥ सुण ० ॥ सजन जन ए सुब तो ह्ररखे, दुर्जन चिन्त विकारी ॥ ए ऊपर प्रतीति न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) आवे, जाणो ते बहुल संसारी ॥३॥ सु०॥ श्रीपासबंद सूरीसर पाटे, समरचंद गुणधारी ॥ तेने पाटे श्री राजचंद सूरि, सुरती सोहे सारी ॥४॥ सु०॥ शिष्य शिरोमणि तेहना कहिये, पचम काल आहारी ॥ देव चंद वणारसी दीपे, प्रागवंश शिगगारी ॥५॥ सु०॥ जंबुपछा नणशे गुणशे, सुणशे जे नर नारी ॥ मानव नव ते सफल करीने, थाशे सुर अवतारी ॥६॥ सु०॥ संवत सत्तर अद्यावीशे, पाटण नगर मोजारी ॥ जंबुपृष्ठा रची मन रंगे, वीरजी मुनि सुखकारी ॥७॥ सुण ॥ ॥इति श्री वीरजी मुनि कृत जंबुपृचा संपूर्णा ।। ॥अथ॥ ॥ श्री गौतमरवानी चोपाई प्रारंजः॥ . .. ॥दोहा॥ ... ॥ सकल मनोरथ पूरवे, चोवीसमो जिण चंद ॥ सोवनवान सोहे सदा, पंखे परमानंद ॥१॥ समवसर ए देवे मली, रचीयुं उत्तम गम ।। पद्यासन पूरी करी, बेठा त्रिजुवन खाम ॥२॥ बेग मुनिवर केवली, गण हर कर 'अगियार ॥ सुर नर किन्नर मानवी, बेठी पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) खद बार ॥ तव गोयम मन चिंतवे, जीवितनो एसोर ॥जे कोई आपणथकी, कीजे पर उपकार ॥४॥ गोयम हियडे जाणतो, आणी पर नपकार ॥ सजा सहुको सांजले, पूठे यो विचार ॥५॥ ॥ ढाल ॥ चोपा ।। ॥पहेला वीर जिणेसर पाय, प्रणमी गोयम गणहर राय ॥ कर जोडीने आगल रहे, सुललित नाषा एणी परें कहे ॥ ६ ॥ तुं जिन नक्ति मुक्ति दातार, तुज गुण कोश् न पामे पार ॥ में नेट्यो त्रिजुवननो देव, पुण्य पाप फल पूडं हेव ॥७॥ क्लतुं बोले वीर जिणंद, गोयम तुं आणे आणंद ॥ पूजे पृछा जे तुज गमे, तस हुँ उत्तर आपीश तिमे ॥७॥ आगे मयगलने मद जस्यो, एक पंचायणने पाखस्यो । आगे गोयमनुं जग वान, ला, वीर तणुं वली मान ॥ ए॥ नवियण नाव जलेरो धरी, अंग तणी आलस परहरी ॥ सुणजो हर्ष हिये उल्लसी, गोयमपृछा पूछे किसी ॥१०॥ जगवन् ! जीव नरक शें जाय, तेहज अमर जुवन सुर-थाय ॥ तिरियमांहे ते फुःख केम सहे, किशे कमें मानव नव लहे ॥१९॥ तेहिज़ पुरुष पणे संसार, कीशे कम ते याये नार ॥ कहो जिनवर पूरो मन रली, तेहज किशे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) नपुंसक वली ॥ १२॥ थोडं श्रायु होय तेह तएं, किशे कमै होये ते घणुं ॥ लोग रति शे नवि जोगवे, तेहिज जोग नला जोगवे ।। १३ ॥ किशे कमें सोजागी होय, किशे कमें दोजागी जोय ॥ तेहिज बुद्धि तणो नंमार, किशे कर्मे नवि बुधि लगार ॥ १४॥ तेहिज पंमितमांहे प्रधान, शे कर्मे थाये थझान ॥ नीरु धीरु कोण कर्मे सोय, विद्या सफल निःफल केम होय ॥ १५ ॥ नासे धन वाधे थिर थाय, जन्म्या पुत्र न जीवे काय ॥ पौढा पुत्र घणा शे स्वामि, बहिरपणुं शे कर्मे विराम ॥ १६ ॥ जात्यंधो नर शें अवतरे, के कमें भोजन नवि जरे ॥ किशे कर्मे कोढी कूबडो, दासपणुं पामे बापडो ॥ १७ ॥ किशे कर्मे दारिधि जंत, किशे कर्मे तेहज धनवंत ॥ रोगे पीड्यो पाडे री च, रोग रहित शें थाये जीव ॥ १७ ॥ गोयम पूढे क हो जिनवीर, शे कर्मे होये हीन शरीर ॥ तसु परजव शुं पडीयो चूक, जे एणे नवे थाये ते मूक ॥ १५ ॥ किशे कर्मे लूंगे पांगलो, किशे कर्मे रुपें श्रागलो। विकट कर्मनु कहो स्वरुप, तेहिज नर केप्न थाये कुरुप ॥२०॥ किशे कर्मे वेदना अनंत, वेदन विण केम था में जैत । मी तन पंचेंजिय-तणुं, केम पामे एकेंदि ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) यप ॥ २१ ॥ शी परें थाये श्रिर संसार, केम पाने वहेलो जवपार ॥ शे संसार सोहेलो तरी, पुण्यवंत पामे शिवपुरी || २२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जीव सवे जगती तथा, तुं तस बंधु समान ॥ जाव मनोगत सवी लहें, होय अनंतुं ज्ञान ॥ २३ ॥ पुवी पदारथ जे थाने, ते देखे मुनि देव ॥ कृपा क री जगवन् कहो, कर्म फलाफल देव ॥ २४ ॥ गुण गि. रुन गणधर जलो, हर्षे जोडी हाथ ॥ सफल करो मुज विनति, जतिय जी जगनाथ ॥ २५ ॥ गोयम गणहर विनव्यो, एणी परें वीरजिणंद ॥ नमे निरंतर पय कमल, जेहना चोराव इंद ॥ २६ ॥ वीतराग वलतुं वदे, वाणी सरस अपार || सुण गोयम गणधार तुं, पूठ्या तणो विचार ॥ २८ ॥ ॥ चोपाइ ॥ ॥ गोयम पृष्ठा पूठी रहे, वलतुं वीर जिनेसर क दे ॥ सावधान सवि परषद दुइ, निसुणे निज जापा जूजू ॥ २७ ॥ वरसे स्वामि वचन विलास, पोहोचे जवियण जन मन वाश || आषाढो सासाढो मेह. करी गाजीनें श्राव्यो एड् ॥ २९ ॥ तेषे अवसर नावी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 18 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) तृष नूख, नागं कुरिय सरीसां पुःख ॥ मधुरी वाणी सुणी जब कान, मधुर पणुं नहि कहेने मान ॥३०॥ सरस कवण कहीये सूखडी, जेणे खाधे नांगे नूख डी। जिनवर वाणी निसुण, जाम, ते विपरीत व खाणे ताम ॥ ३१ ॥ जे शेलडी सरस रस घडी, ते पण कहेने चित्ते नवि चडी ॥ नाति अने उनाति दे खवे, गोल खांग खारी लेखवे ॥ ३३ ॥ सुधा मुधा सवि कहे मन थाय, साकर कांकर सम तोलाय ॥नी ली जाख न गमे सराख, एकज मीठी जिननी जाख ॥३३ ॥ इसी वाणी जिन मुखे उच्चरी, गोयम बो लाव्यो हित करी, एकज जीव लहे फुःख घणां, सुण गोंयम कारण तेह तणां ॥ ३४ ॥ जीव विणासे जंपे अली, जे नर परधन चोरे वली ॥ परनारीशुं रंगे रमे, पाप परिग्रह काको गमे ॥ ३५ ॥रात्रि दिवस रीशे धडहडे, अनिमाने मानवने नमें । कोश तणो णे आकार, नीचा नमणा नहिं लगार ।। ३६ ।। मुखमीठो मन माया करे, कहो ते किम जवसागर तरे॥ हियडे नितुरो वयण कठगेर, पापी पाप करे अति घोर ॥३७॥ जोवे बिज कुमतिनो धणी, मनमां मूळ धरे अति घ पी जे अधमाधम विण अपराध, गोठे बेगे निदे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) साध ॥ ३८ ॥ जे मानवने एहवो ढाल, प्राये दी हुतां आल ॥ एवी मति जस पोते बती, गुण की धो नवि जाणे रति ॥ ३५ ॥ वीर जणे सुण गोयम वा त, इस्यां कर्म जे करे निघात || दोहिलां दुःखमांदे त डफडे, ते नर मरी नरके रडवडे ॥ ४० ॥ तप संयमदाने चौशाल, जावे जडक छाने दयाल | शीर्ष वहे सरुनीया, ते नर पामे अमर विमान ॥ ४१ ॥ मानव सरसी मांगे प्रीत, काज आपणुं चाले चित्त ॥ वांबित काज सखुं ततकाल, वेहेली प्रीति करे विसरा ल ॥ ४२ ॥ जोतां दरिसए क्रूर अपार, कोइ न पामे मननो पार ॥ कीधां कर्म जीवशुं करे, तिहांथी मरी तिरिय वतरे ॥ ४३ ॥ सरल चित्त सुकुमाल अपार, क्रोध लोन मन नहीय लगार || जीव तणी नित्य ज या करे, साते खेत्रे धन वावरे ॥ ४४ ॥ वोहोरे विष जे न्याये करी, मूके पोतुं पुण्ये जरी ॥ साधु तपा पाय सेवे घणुं, लहे जीव ते मानवपणुं ॥ ४५ ॥ संतो विनये गुण वदे, सरल चित्त शीले दृढ रहे | सत्य वचन जे बोले नार, थाये पुरुष मरी संसार ॥ ४६ ॥ चपल पणे धूतारे लोक, मूरख पातक बांधे फोक ॥ कूड कपट मायाये बहु, सगां सणीजां तंचे सहु ॥४७॥ Jain Educationa International # For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) मन विश्वास नही केह तणो, वीर नणे गोयम तुमे सुणो ॥ एहवां कर्म करे नर जेह, परनव महिला थाये तेह ॥ ४०॥ मानव तुरी समारे ढोर, वींधे नाक परोवे दोर ॥ गल कंबल बेदे अज्ञान ॥ कौतुक का रण कापे कान ॥ भए ॥ इस्यां कर्म जे करे नवीन, सविहु माणसमांहे हीन ॥ नवि नारी ते नहि नर मांय, गोयम सोय नपुंसक थाय ॥ ५० ॥ जीव वि पासे नितुरजपणे, जे परलोक न माने गणे ॥ चित्त मांहे जस घणो कलेश, ते नर आयु लहे लवलेश ॥ ॥५१॥ राखे जीवदया नर थई, अजयदान ऊपर मति रही। कार्ये थायु आहे नर तेह, गोयम ए तुम धर संदेह ॥ ५५ ॥ तुं अन्न देवा मांमे व्याप, देने मने करे संताप ।। मुजने पडियो वरांसो घणो, आप्यो अर्थ शोक थापणो ॥५३॥ आपणने मति देवा टली, बीजा देतां वारे वली ॥ गोयम एहवे कर्मे जोय, जो गरहित नव पूरे सोय ॥ ५४॥ वारु वस्त्र पाटो पाट ला, जात पात्रने पाणी नलां ॥ इषिने दे हियडे गह गही, परजव जोग खहे ते सही ॥५५॥ गुरु गिरथा तीर्थकर साध, हनो जे न करे अपराध ॥ विनय वहे मूकी अधिमान, दर्शन जेतुं सोम. समान ॥ ५६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) वाणी मी समाणी ऊरे, विरुयां वचन सदा परि हरे ॥ वीर वदे गोयम गुणवंत, ते परजव सोजागी संत ॥ ५७ ॥ गुणविण गर्व घणो मन धरे, तपसीनी जे निंदा करे || मानी धर्मविडंबक होय, परजव मर दोजागी सोय ॥ ५८ ॥ पढे गुणे चिंते सुविशेष, य वर जणी वली दिये उपदेश || सहगुरु नक्ति करे मन शुद्ध, परजव पामे चोखी बुद्ध ॥ ५७ ॥ तपसी ज्ञान वंत गुणवंत, तास अवज्ञा करी हसंत ॥ ए अजाण मुख एणी परें कहे, ते नर मरीने बुद्धि नवि लहे || ॥ ६० ॥ माय ताय सेवे मन खरे, छावर वडाने श्रादर करे ॥ धर्माधर्म विगत जुजु, पृछे सावधान जे हुइ ॥ ६१ ॥ राधे जिनवरनां वयण, जेणे उघडे हियानां नया || देव ने गुरुना गुण गाय, मरी पुरुष ते पंकि तथाय ॥ ६२ ॥ मन माने तेम जीव विणास, खान: पीठ ने करो विलास || पढे गुणे धर्मे शुं होय, एम चिंतवतो मूरख होय ॥ ६३ ॥ कूकड तित्तर लावां चडां, सूअर हिरण रोऊ बापडां ॥ वन जमतां जे आपे धरी, बीकण होये सदा ते मरी ॥ ६४ ॥ जीवः सवि ऊपर हित सदा, जय न करे न करावे कदा ॥ * पीड पराइ बजें जेड़, गोयम धीर दोवे नर तेह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) ॥६५॥ लीये वारु विद्या विज्ञान, कूडो विनय करे अझान ॥ विद्यागुरुने अपमाने बहु, तेहगें नएयु निः फल होय सहुँ ॥६६॥ विद्यागुरुनी नक्तिये नस्यो, माने विनय गुणे परिवस्यो ॥ एणी परे जे जे विद्या जणी, सघली सफल होवे तेह तणी ॥ ६७ ॥ देई दान हीये न समाश, मन चिंते में दीधुं कां॥ तस घर लक्ष्मी वहेली मले, गण्या दिवसमांहे पण टले ॥ ६ ॥ थोडे धने नित्य वाधे व्याह, दीये देवरावे जे पर प्राह ॥ पुण्यथकी परजव रंगरोल, तसु घर क मला करे कल्लोल ॥ ६॥ ॥ जे जेहने मनगमतुं होय, नाव सहित कृषिने दिये सोय ॥ देई मन उच्चाट न जास, तस घर लक्ष्मी रहे थिरवास ॥ su॥ पशु पं खी माणसनां बाल, जे पापी पीडे विकराल ॥ तस घर गेरु न होये शिरे, जो होये तो निश्चय मरे ॥ ॥ ७१ ॥ जेह तणे मन दया प्रधान, गोयम तस घर बहु संतान ॥ अणसांनट्युं सुएयुं कहे जेह, परजव बहेरो थाये तेह ॥ ७॥ अणदीगने दीतुं नणे, धर्म जवेखे मूरख पणे ॥ कर्म तणी गति विषमी जोय, ते परना जात्यंधो होय ॥ ७३ ॥ निखर अन्न ने विरु कारि साधुने दीये जे नर नारि ॥ मन जाणि कृपणाये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३.) करे. परनव तसनोजन नवि जरे ॥ ४॥. पाडे मध जे दव दीये वेड, तेहनी दैव करे शी केड ।। पाप तणी मन नाणे शंक, जे नर जीव प्रत्ये दिये अंक ॥ ५ ॥ बाला कुलां नोला हरी, खांते खुंटे लीला करी ॥ की धां कर्म जीव शंकरे, मरी पुरुष कोढी अवतरे।। ७६ ॥ उंट बलद नेसा बालकां, जारे पीडे लोती थकां ॥श्म पापे पूराये घडो, ते परनव थाये कूबडो॥ ७॥ जाति मदे मदमातो फिरे, जीव तणो जे विक्रय करे ॥ जे कृतघ्न अवगुण आवास, ते नर परजव श्राये दास ॥ ।। ॥ विनय हीन वर्जित चारित्र, दान तणा गुण नहिय पवित्र ॥ मनसादिक जे नवि संवरे, ए नर दारिखी अवतरे ॥७॥ विनयवंत दाने उल्लसे, चा रित्रना गुण वासे वसे ॥ लोकमांहे तस कीर्ति घणी, महोटी कि तणो ते धणी ॥ ॥ विश्वासी पाडे संताप, सूधे मन न आलोवे पाप ॥ गोयम इसे करें मन नडे, ते नर रोगे पीड्यो रडे ॥ ७१ ॥ विश्वासी राखे हित करी, आलोयण आलोये खरी ॥ परनव तसु महिमा ए वडो, रोग न आवे घर बँकडो ॥२॥ करे जे लघु खाघव केटला, हुं जाणुं नर नहीं ते नला। कूडे तोखे करे. कुंसाट, अधिक लेश्ने थापे घाट ।। ३।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) प्रत्यक्ष पुरुष न बीहे पाप, वली वरांसे पाडे माप ॥ सोने खेवा हिंमे बहु, नखर क्रियाएं वेचे सहु ॥ ७ ॥ जेह तणे मन अति अनिमान, माने अवरने तृण स मान ॥ ले थापतां करे जे खांच, मुख बोलतां नहिं खल खांच ॥ ५ ॥ पाप बहुल मांमे विवसाय, इस्या श्रवर जे करे उपाय ॥ ते नर परनव खियो दीन, सघलां अंम हुवे तसु हीन ॥ ६ ॥ संयम सहित गुणे गहगहे, जे सुसाधु शीले दृढ रहे ॥ तास पूंठ करवे पडवडो, ते परजव थाये बोबडो ॥ ७ ॥ जेहने धर्म तषी नही धांख, दे पंखी जातिनी पांख ॥ तेहy जव आयुटुं पते, थाये डूंगे नव श्रावते ॥ ॥ दया रहित कहे दिन रात, पशु कुमारां प्रत्ये कुजाति ॥ गाये घाय करे गलगलो, परजव ते थाये पांगुलो॥॥ सरल स्वजाव धर्म अदिगण, जीव जतन जे करे सु. जाण ॥ जिन गुरु पाय नक्तो नित्य होय, रूपे मदन सरीखो सोय ॥ ए॥ मन वांकडो करे नित्य पाप, होंशे जीव विराधे श्राप ॥ जेहने देवगुरुशुं खेश, रूप न पामे ते खवलेश ॥ १ ॥ यंत्र तंत्रने नाडी दोर, खो कुते करी कठगेर ॥ जे पापी पीडे पर जंत, ते पामे वेदना अनंत ॥ए॥ प्राणी संकट पक्ष्यो अचिंत, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) बंधन मरणे थयो जयजीत ॥ दया करी मूकावे कोय, तसु शिर वेदन निखर नवि होय ॥ ए३ ॥ हियमें नेहने निविड परिणाम, अति अज्ञान महाजय जाम। कर्म आशातावेदनी घणुं, तव पामे एकेजियपणुं । ॥ ए४ ॥ पुण्य पाप परलोक न आज, त्रिजुवन को न थी शषिराज ॥ जे नर माने ईश्यो विचार, गोयम तेहने थिर संसार ॥ एy ॥ पुण्य पाप जे लोक मकार, ठे जिन सेवित सुगुरु नर नार ॥ महिमंमल मुनिवर ने सही, माने ते संसारी नही ॥ ए६ ॥ निर्मल ज्ञान थडे चारित्र, दर्शन नूषित देह पवित्र ॥ ते नर मरी तरी संसार, थाये शिवपुर तणो शिणगार ॥ ७ ॥ ॥दोहा॥ ॥ गोयम पूनियु, वीरजिणेसर पास ॥ तक हियु त्रिजुवन गुरे, गिल्या वचन विलास ॥ एn नविक लोक तुमे सांजली, वाणी बहुत विचार | पु एय पापफल प्रगटवे, प्रीडो हृदय मकार ॥ एए॥ पृक्षा उत्तर बेहु मली, अडचालीश प्रमाण ॥ अरथ बहुल तुमे जाणजो, जग जयवंता जाण ॥ १० ॥ पढ्या गुण्या प्रीव्या तंणो, कवि कहे एहज मर्म ॥ दया से हित मादर करी, कीजे जिनवर धर्म ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६ ) ॥ चोपा॥ . ॥ वीरविमल केवलनुं गेह, नांज्या नविक तणा संदेह ॥ हरष्यो तव गोयम गणधार, सना सहु जंपे जयकार ॥ १० ॥ समयरत्न जयवंत मुणीश, एम जंपे जग तेहनो शिष्य ॥ सुणजो वर्णावर्ण अढार, उति सारु करजो उपकार ।। १०३ ॥ लहे अरथ गोयम गणधार, तो पण आणी पर उपकार ॥ वीर कन्हे बहु पृष्ठा कीध, नविक प्रत्ये प्रतिबोधज दीध ॥१४॥ एम जाणी कवि करे विचार, जून एह संसार असार ॥ पुत्र कलत्र पोढां घरबार, रहेशे सोवन धन शणगार ॥ १५ ॥ जातां जीव न लागे वार, काया कृटी कीजे बार ॥ जनमत' एहिज फल सार, कीजे काई पर उपकार ॥ १०६ ॥ हियडे अवर म घरजो नर्म, ते उपकार कहीजे धर्म ॥ पुण्य पाप साथे आवशे, सह आपणे काज लागशे ॥ १७॥ कवि कहे हुं शुं बोलू बहु, जिनवर तो जाणे हे सहु ॥ पुण्यकाज करशो एक ससा, शिवसुख लेहशो वीशे वसा ॥ १७ ॥ श्री मुख गौतम पृष्ठा करे, वीर सरीखा संशय हरे ॥ बेहुनी वाणी अमृत समान, अमृत वाणी एहनु अनि धानः ॥ १७॥ एह चोपावरची चौशाल, कोण संवत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने केहो काल ॥ वरस मास कहिशुं दिन वार, जोई लेजो जाण विचार ॥ १०॥ पहेली तिथिनी संख्या आण, संवत जाणो एणे अहिनाण ॥ बाण वेद जो वांचो वाम, जाणो वरष तणुं ते नाम ॥ १९१॥ वासुपूज्य जिनवर जे नमो, चैत्रथकी मासज ते तमो ॥ अजूया ली अगीयारस सार, तिहां सुरगुरु गिर गुरुवार ॥ ॥ ११ ॥ उहा सवे वाणुं चोपाश, एक जपमाला पूरी था ॥ ऊपर अधिको पाठ वखाण, ते संख्याना मणि या जाण ॥ ११३ ॥ एम गणतां जे आवे दोय, सहस लाखनी संख्या होय ॥ एक रहे सविहुकोनो वतु, ते ऊपर फरके फूमतुं ॥ ११४॥ जपमाली एक गुण वहे, एहना गुण को पार न लहे ॥ पगपग बिंड हये वली तिहां, गणतां बिछ नही वली जिहां ॥ ११५ ॥ जोतां गुण दीसे अति घणा, वारु वर्ण अ तेह तणा॥ पढतां गुणतां सुणतां सार, सविहुं ऊपर सुख दातार ॥ ११६ ॥ मानव मन माया परिहरो, मेसी काया नि मल करो ॥ आ जपमाली हीयडे धरो, मुक्ति वधू जिम लीलाये वरो॥११७॥ ध्यान धरीने आप नहरो. कूडी कुबुद्धि ते परिहरो॥ मोह मूको नाणो अनिमा न; एक मना ध्यान धर्म ध्यान ॥ श्राश अन्याख्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) परिहरो, रयणीनोजन ते मत करो ॥११७॥ श्री सम केत शुं बारे व्रत, जाग्यवंत पाले ए चित्त ॥ अतीत अनागतने वर्तमान, ए त्रण काल करे जिन ध्यान । ॥११॥ कीधां कर्म जो बूटे तोय, दान शील तप मति जो होय ॥ मन शुझिविण सहु ए बाल, जेम जो जाणो होय इंजाल || १५० ॥ कर्म करे जीव काया सहे, हीये विचारी जो ते लहे ॥ एक मना समरो नवकार, पूरव चौदमाहे जे सार ॥११॥ ए संसार असारद अडे, विगते जाणशो तमे पडे ॥ श्रा जपमाली हियडे धरो, मुक्तिवधू जेम लीला वरो॥ ॥ १२ ॥ जपमालीशुं संख्या कही, को जाणे को जा णे नही ॥ कवि कहे कुणही म करशो रीश, सर्वे मली ने होये एकवीश ॥ ११३ ॥ अणजाणतां कडं होये अलि, अधिकुं उलु खमजो वली ॥ मुनि लावण्यसमय कहे इस्यु, धन्य मन जे जिन वचने वस्युं ॥१४॥ ॥ इति श्री गौतमपृष्ठा चोपाइ संपूर्ण ॥ * समाप्त. - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa international Fer Personal and Private Use Only