________________
(20)
पूज्य० ॥ ३ ॥ अंगजंग हुवे जेहने, नगीने हो बेठानी न श्रय के || पाप जनम पूरव तणां, मुज तेहनां हो सुवा उजमाय के || पूज्य० ॥ ४ ॥ चैत्यजंग करे चाहि ने, अधमाधम हो करे प्रतिमा जंग के ॥ तेथे कर्मे करें। पामियो, परजव नर हो थाये अंग जंग के ॥ पूज्य० ॥ ॥ ५ ॥ वड बोर लींबु जेवडा, मसा मोहोढे हो होये आखे मील के ॥ रसोली बोटी वडी, वदने वली हो था खे खील के । पूज्य ॥ ६ ॥ करणि कोण ते आदरी, ते दाखो हो गुरुजी गुणखार के | गाढे घाये ढोरने, खर श्वानने हो मारे पाषाण के ॥ पूज्य० ॥ ७ ॥ गड गुंबड न टले कदा, कान देवल हो थाये करणक मूल के ॥ गुति अरुऊ चांदी होये, कोण तेहने हो करम प्रतिकूल के ॥ पूज्य० ॥ ८ ॥ बाडी अति रलीयाम पी, देखीने हो दरखे सहु लोक के । चोरे फल फूल तेनां, गुंबडानो हो पामे ते शोक के ॥ पूज्य० ॥ ए॥ पग फाटी थाये चीरीयां, खस लूखस हो अंगे थाये दाज के ॥ उपचारे उरसे नहीं, दुःख देखे हो कोण करम प्रसाद के ॥ पूज्यः ॥ १० ॥ मासे प ऊपजे मासे दो वरसे बहु रोग के ॥ सास खास कफ फूटपी, कये दुःखे हो एम होवे मोग के ॥ पूज्य० ॥ १२ ॥
-
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org