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( ११ )
साप सरीटी सापणी, वींडी वढण हो मारे पुण्यदेत के ॥ गोद बनुंदरीने हणे, तेथे करणी हो मुख तस फल देत के ॥ पूज्यo || १२ || मंदवाड थाये चीकणी, घरमा दो थोडी होये तोष के ॥ जनमांतर तेथे पोपीये, पाप संच्यां हो जगवन् कहो कोण के ॥ पूज्ये ॥ १३ ॥ धर्मत थानकथकी, साज लेइ हो सहु दूषण लेह के ॥ जीवदया पाले नहिं, व्याधि सघलो हो व्याप तम देह के || पूज्य० ॥ १४ ॥ हितउपदेश हियावटे, सांजलीने हो सहु डूषण टाल के ॥ पुण्यवशे प्राणी घणी, सांजलजो हो सह सातमी ढाल के || पूज्य० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ पीनस रोग पीडा करे, शोषित नाक स्वयंत ॥ वांकी से नासिका, कीटक प्राणी दमंत ॥ १ ॥ केहेवां कर्म करयां तेणे, पूरवले जवे खाम ॥ जविक जीव तुमे सांजली, करो न एहवां काम ॥ २ ॥ चलीमार जवे चरकलां, पापी जे मात | मोर चकोर को किल सुखा, पीनस ते धरंत ॥ ३ ॥ यक्ष राक्षस ने किंपुरुष, नूत प्रेत गंधर्व । पिशाच महोरग किन्नरा, ए को क में सर्व ॥ ४ ॥ जलमांदे बूडी मरे, परवल चडी पडेल अभि सर्प विष शस्त्र मृत, व्यंतर ए सवि हुंत ॥ ५ ॥
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