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ने केहो काल ॥ वरस मास कहिशुं दिन वार, जोई लेजो जाण विचार ॥ १०॥ पहेली तिथिनी संख्या आण, संवत जाणो एणे अहिनाण ॥ बाण वेद जो वांचो वाम, जाणो वरष तणुं ते नाम ॥ १९१॥ वासुपूज्य जिनवर जे नमो, चैत्रथकी मासज ते तमो ॥ अजूया ली अगीयारस सार, तिहां सुरगुरु गिर गुरुवार ॥ ॥ ११ ॥ उहा सवे वाणुं चोपाश, एक जपमाला पूरी था ॥ ऊपर अधिको पाठ वखाण, ते संख्याना मणि या जाण ॥ ११३ ॥ एम गणतां जे आवे दोय, सहस लाखनी संख्या होय ॥ एक रहे सविहुकोनो वतु, ते ऊपर फरके फूमतुं ॥ ११४॥ जपमाली एक गुण वहे, एहना गुण को पार न लहे ॥ पगपग बिंड हये वली तिहां, गणतां बिछ नही वली जिहां ॥ ११५ ॥ जोतां गुण दीसे अति घणा, वारु वर्ण अ तेह तणा॥ पढतां गुणतां सुणतां सार, सविहुं ऊपर सुख दातार ॥ ११६ ॥ मानव मन माया परिहरो, मेसी काया नि मल करो ॥ आ जपमाली हीयडे धरो, मुक्ति वधू जिम लीलाये वरो॥११७॥ ध्यान धरीने आप नहरो. कूडी कुबुद्धि ते परिहरो॥ मोह मूको नाणो अनिमा न; एक मना ध्यान धर्म ध्यान ॥ श्राश अन्याख्यान
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