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________________ (१०) सुत ते जाणीये, बाल पणे मरी जाय ॥१॥वली - पजे वलि वलि मरे, गर्ने व्यो सोय ॥ नाश करे धन धान्यनो, एम उःखदायी होय ॥२॥जो कदाच महोटो थयो, घणो करे हेराण ॥ विष प्रयोग शस्त्रे हरे, मात पितानां प्राण ॥३॥ सुख दुःख काई नवि करे, नवि आपे नवि लेय ॥ रूसे तूसे जे नही, उदासीन गणो तेय ॥४॥ जात मात जे प्रिय करे, क्रीडा करतो रंग ॥ यौवन वय जे सुख दिये, नक्ति तणे परसंग ॥ ५।। संतोषे माय बापने, मोठे वचने जेह ॥ कथन कदा लोपे नाह, सुत, ए पंचम नेय ॥ ६॥ . ॥ ढाल चोथी॥ ॥ नेमिराय तुं धन्य धन्य अणगार ॥ ए देशी ॥ ॥जीहो काला काला जामगं, लाला सघले मीले रे थाय ॥ जीहो पूरे जंबु सुधर्मने, लाला कुंण कर्मे कहेवाय ।। कृपानिधि मुजने नांखो तेह ॥जेम लांगे मन संदेह ॥ कृपा ॥१॥ ए आंकणी ॥जीहो सर्व दिव. समुनिने ठणे, लाला सतीने करे संताप ॥जीहो तेणे पापे करी ऊपजे, लाला कोढ रोगनो व्याप ॥ कृपा ।। १जीहो केणे कर्मे मुख वासना, लाला गंध होय शाख । जीहो वकवदन वक्षी आंगुलि, लाला जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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