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( ३३ ) राखे अरने, क्षत्री जाणो तेह ॥ २ ॥ जनम जातिची शुद्ध होय, संस्कारे द्विज जाण ॥ वेद अन्यासे विप्र होय, ब्राह्मण होय गुण खाण ॥ ३ ॥ दान दयाने सत्य तप, शौच संयम संपन्न ॥ ब्रह्म विनय विद्या निपुण, ते ब्राह्मण गण धन्न ॥ ४ ॥ कांकर कनक समान मति, तजे शूद्रनुं दान ॥ करे शुश्रूषा धर्मनी, विप्र तपां धाण ॥ ५ ॥ दया दान उपकार मति, असत्य तपो परिहार || बोले वचन विमासिने, वैश्य तणो व्यवहार ॥ ६ ॥ दीना बारी कोष मुखमा धर्म रहित जे होय || श्रद्धा दया न लेने, शुद्ध गजे, सोम ॥ ७ ॥ ॥ प्रश्न जे जे पूनिया, सख्यिक कोहम सूर एक मने, दुखि पाणी दूरे ॥
ते चित्त धरो
थो५२.
॥ ढाल तेरमी ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥
॥ सुणजो जंबु पृहा जवियण, इह परजव हितकारी ॥ एद सांजलतां कर्म निर्जरा, दोय सही सु खकारी ॥ १ ॥ सुजो० ॥ सोहम स्वामी जंबु तिका री, जंबु पर उपगारी ॥ बारह परखदा बेठा पूबे, प्रश्न सर्व सुविचारी ॥ २ ॥ सुण ० ॥ सजन जन ए सुब तो ह्ररखे, दुर्जन चिन्त विकारी ॥ ए ऊपर प्रतीति न
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