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॥ यथ ॥
॥ श्री कर्मविपाक प्रथवा जंबू टचानो रास प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥
॥ सकल पैदारथ सर्वदा, प्रयमुं श्यामल पास ॥ नमिये तेहने ऊठि नित्य, परमानंद प्रकाश ॥ १ ॥ गोयम गहर पर नमी, कर्मविपाक विधि जोय ॥ फल जाखं कृत कर्मनां, सांजलजो सहु कोय ॥ २ ॥ सोहम स्वामी समोसख्या, चंपानगरी मांहे ॥ जंबू प्रभु प्रणमी करी, पूछे प्रश्न उत्सादे ॥ ३ ॥ कहो जगवन् धनवंत सुखी, शे कर्मे जीव श्राय ॥ दारिद्री निर्धन दुःखी, कुण कर्मे कहेवाय ॥ ४ ॥ वलतुं बोले केवली, सुप जंबू सुविचार ॥ जला प्रश्न तें पूनिया, नविक जीव हितकार ॥ ५ ॥
॥ ढाल पेहेली ॥ देशी चोपाइनी ॥
॥ साधु जणि दीये बहु मान, पहेले जवे जेणे दी धुं दान ॥ रुद्धि वृद्धि ते पामे घणी, आशा पूरे सवि मन तणी ॥ १ ॥ दान न दीधुं जेणे नरे, ते परघर मागता
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