SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४) ॥ ढाल नवमी॥ नदी जमुनाके तीर, उमे दोय पंखियां ॥ ए देशी॥ .. ॥व्रण वाहे नासूर, क्रूर मुख मीलमे ॥ पवित्रपणुं नही होय, रहे कुचीलमे ॥ कवण कर्म तेणे कीध, सिक नही औषधे । गिरुआ गुणह निधान, कहो करुणा बुझे ॥१॥ कान नाक विधीने, परोक्ष दोरडां ॥ कौत क कारणे कान, कापे कोरडां ॥ पशु पंखी प्रत्ये एम, पीडे जे पापीया ॥ नासुरे करी तेह, होय संतापीया ॥ २॥ रक्त पित्तनो रोग, लहे जे जीवडा ॥ गले अंग उ पांग, पडे मांहे जीवडा ॥ नवांतरे तेणे पाप, कीधां प्रजु केहवां ॥ मनुष्य तणो नव पामी, पामे कुःख एहवां ।। ३॥महिष महिषी ने बाग, बागी ने बलदीया ॥ फासुं घाली तास, गले मारे पापिया। मरी नरकमांहे जाय, महा अहमी दले ॥ करे खेमो खंग, पारानी परे मीले ॥४॥ जो कदाच वलि ते, मनुष्यमांहि अवतरे ॥पा में बहुलां छुःख, गलित कोढे मरे ॥ हरस रोगे करी जेह, थातुर होये श्रातमा ॥ पाप तेहनां कोण, कहो पुण्यातमा ॥५॥ फोडे सरोवर पास, नदी उह शोष. दे॥ जलविण सहु जल जंतु, घणा पुःखीया होवे ।। ते कर्मने पाप, पीडा होवे हरसनी।। चित्ते दया न. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy