Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ मत करो, रण जूनु नवि थाय ।। परनव जीव जाये ति हां, रण जाणो फुःखदाय ॥२॥ ॥ ढाल रोजी॥ ॥ देशी फुबखडानी॥ ॥ रखे को रण करो॥ ए बांकणी ॥ सुणजो हवे आदरी करी रे, रणिया सुतनी वात ॥ रखे कोई रण करो॥जे दिनथी ते ऊपजे, ते दिनथी तिरजात ॥ र. खे॥१॥ को गुण माने नहिं, बोले निरी वाण ॥ रखे०॥ मीमीतुं सवि जखे रे, कोइ न माने आण ।। रखे ॥२॥ वस्तु जली जे घरे होवे रे, ते चोरी करी लेय ॥ रखे ॥ जो वारे माता पिता रे, तो गाली तसु देय ॥ रखे ॥३॥ राठ पीठ जे घर तणां रे, वेची खाये सो॥रखे॥ नांजे होमलां कुंमलां रे, जो तेहने कहे को॥ रखे ॥४॥ए बालक को नवि लहे रे, करशे घर तणां काम ॥ रखे ॥ मा बाप तेहनां श्म कहे रे, मोहोटो थाशे जाम ॥ रखे॥५॥ शोल वरसनो जव थयो रे, परणाव्यो मन रंग ॥ रखे ॥ विवाहे धन खरची घणुं रे, वढूअर आणी चंग ॥ रखे ॥ ६॥ मास एक-परण्या थयो रे, मांनी तव वढवाड ॥ रखे० । सासु समझो एम कहे. रे, थावी नडी कुहाड ॥ रखे० ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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