Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४२) ॥६५॥ लीये वारु विद्या विज्ञान, कूडो विनय करे अझान ॥ विद्यागुरुने अपमाने बहु, तेहगें नएयु निः फल होय सहुँ ॥६६॥ विद्यागुरुनी नक्तिये नस्यो, माने विनय गुणे परिवस्यो ॥ एणी परे जे जे विद्या जणी, सघली सफल होवे तेह तणी ॥ ६७ ॥ देई दान हीये न समाश, मन चिंते में दीधुं कां॥ तस घर लक्ष्मी वहेली मले, गण्या दिवसमांहे पण टले ॥ ६ ॥ थोडे धने नित्य वाधे व्याह, दीये देवरावे जे पर प्राह ॥ पुण्यथकी परजव रंगरोल, तसु घर क मला करे कल्लोल ॥ ६॥ ॥ जे जेहने मनगमतुं होय, नाव सहित कृषिने दिये सोय ॥ देई मन उच्चाट न जास, तस घर लक्ष्मी रहे थिरवास ॥ su॥ पशु पं खी माणसनां बाल, जे पापी पीडे विकराल ॥ तस घर गेरु न होये शिरे, जो होये तो निश्चय मरे ॥ ॥ ७१ ॥ जेह तणे मन दया प्रधान, गोयम तस घर बहु संतान ॥ अणसांनट्युं सुएयुं कहे जेह, परजव बहेरो थाये तेह ॥ ७॥ अणदीगने दीतुं नणे, धर्म जवेखे मूरख पणे ॥ कर्म तणी गति विषमी जोय, ते परना जात्यंधो होय ॥ ७३ ॥ निखर अन्न ने विरु कारि साधुने दीये जे नर नारि ॥ मन जाणि कृपणाये
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