Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 7
________________ से जी॥ शि०॥ माय बाप तणां मन हीसे जी ॥ शिक ॥ हाथ पगे सोनानी कमली जी ॥ शि०॥ अणियाली आंखडली जी ॥ शिष्य० ॥१२॥ काने मोतीनी लालडी सोहे जी॥ शिण॥ कडे कंदोरो मन मोहे जी ॥ शिण ॥ पगे राती पगरखी घाले जी॥ शि० ॥ उमकं तो बांगण चाले जी॥ शिष्य ॥ १३ ॥ जेम रूप नंदन नुं निरखे जी॥ शितेम हियडामां घणुं हरखे जी ॥शि ॥ मुज जाग्यदशा सपराणी जी। शि० ॥ पुत्र बोले मधुरी वाणी जी ॥ शिष्य० ॥१४॥ पांच वरस लगे लाले पाले जी॥ शि॥ पसीनणवा मेट्यो निशाले जी॥शि०॥आपे निशालीयाने खडीया जी ॥ शि०॥ रूपा सोनाना ते घडीया जी॥ शिष्य ॥१५॥ वतरणां विणा जवफूली जी ॥शि॥ आपे सुखडली बहु मूली जी॥शि ॥ खीरोदक शणियां चकमा जी ॥ शि०॥ पांमरी पीतांबर थकमां जी ॥ शिष्य० ॥ १६॥ पंमितने बहु धन आपे जी॥ शिण ॥ जाणे कोर्ति मा. हारी व्यापे जी॥ शिजणी गणिने थयो ते पोढो जी॥ शि॥ सहु कहे पिताथी दोढो जी ॥ शिष्य र॥ माता पण वचन न लोपे जी ॥ शि०॥ कुवचन कहे तोही न कोपे जी ॥ शि०.॥ एम प्रीति देखा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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