Book Title: Karmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ ( ३.) तस पूंग॥ ११॥ उनाले अनि ज्वले अति घणी, धन खोने थाये ते जणी ॥ तापे पीड्यां आर्ति करे, तृषा क री पशु खियां मरे ॥ एह पाप जाणो तस शिरे॥ १॥ चार पांच उ मासे करे, अधिको नारी गर्न नहिं 'धरे ॥ कोण कर्म पोहोते तेहने, ते संबंध कहो हित घणे ॥ १३॥ आहेडी वनमांहे शोर, करे पापीया पाप अघोर ॥ पाडे हरिणने बहुला त्रास, गर्नपात तिणे गर्जनो नाश ॥ १४ ॥ विधवा बालपणे जे थाय, तेहने पाप कोण कदेवाय ॥ निज नरतारने मारी हाथ, रमे रंगे बीजानी साथ ॥ १५ ॥ पुत्र जनम पामीने मरे, संतति एक नहिं तसु ष कर्म पूरब नव कयां, तेणे संतान श्रवृतयों ॥ १६॥ पहली ढाल ए पूरी करी, कर्म विरोधक ब ना कर्म टाले नर नार, वीर मुलीये संसीए.१७७२२॥ ॥दोहा ।। ॥ मृग वराह शंबर शशा, महिष गग बक मोर ।। तित्तर पोपट चरकला, हंस कपोत चकोर ॥१॥ मारे एहवा जीवने, हाथ सरासर नाडी ॥ मीनादिक जल चर हणे, जाले पाशमां पाडी ॥२॥ पशु पंखी माणस - . . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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