Book Title: Karm Ki Gati Nyari Part 07
Author(s): Arunvijay
Publisher: Jain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha

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Page 6
________________ ___घाती के विभाग में ४ कर्म और अघाती के विभाग में अन्य चार कर्म आते हैं जिनका नामोल्लेख उपरोक्त तालिका में किया गया है । घाती-अघाती के भेद समझाते हुए उपरोक्त क्रम बदलकर चार कर्मों को एक तरफ घाती कर्म के विभाग में और शेष चार कर्मों को दूसरी तरफ अघाती कर्म के विभाग में रखा गया है। अतः सामान्यरूप से ८ कर्मों का नामनिर्देश उत्तराध्ययन सूत्र आदि ग्रन्थों में बताए गए क्रमानुसार किया गया है, तथा घाती-अघाती के दृष्टिकोण से ८ कर्मों का क्रम इस प्रकार रखा है-१. ज्ञानावरणीय कर्म, २. दर्शनावरणीय कर्म, ३. मोहनीय कर्म, ४. अन्तराय कर्म, ५. नामकर्म, ६. गोत्रकर्म, ७. वेदनीय कर्म, ८. आयुष्य कम । "नाणां च सणं चेव चरित्तं च तवो तहा" . आदि श्लोकों से बताये गये आत्मा के भिन्न-भिन्न गुणों के क्रम कुछ भिन्न प्रकार से ही मिलेंगे । आत्मा के गुण आठ हैं। अतः उन आठ गुणों के आच्छादकभावरक कर्म भी आठ हैं। आत्मा के ८ गुण आवरक ८ कर्म १. अनन्तज्ञानगुण २. अनन्तदर्शनगुण ३. अनन्तचारित्र-यथाख्यातचारित्रगुण - ४. अनन्तवीर्य (शक्ति) गुण ५. अनामी-अरूपीपना गुण ६. अगुरू-लघुपना गुण ७. अनन्त-अव्याबाधसुख गुण ८. अक्षयस्थिति गुण शानावरणीय कर्म दर्शनावरणीय कर्म मोहनीय कर्म अन्तराय कर्म नाम कर्म गोत्र कर्म बेदनीय कर्म आयुष्य कर्म कर्म की गति न्यारी

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