Book Title: Kalp Samarthanam
Author(s): Purvatanacharya
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 3
________________ S ave Archana Kenda Acharya S amsun Gyarmast श्री देवचंद लालभाइ जैन पुस्तकोद्धारे श्रीवीतरागाय नमः श्रीकल्पसमर्थनम्। पूर्वाचार्यप्रणीतं कल्पान्तर्वाच्यम् ॥ नमः श्रीवर्धमानाय ।। (वाच्यानि) पुरिमचरिमाण कप्पो मंगलं वद्धमाणतिथम्मि । इह परिकहिआ जिण१ गणहराइथेOरावलि२ चरितं३॥१।(कल्पदशकं) आपलक्कु१ देसियर सिजायर३ रायपिण्ड४ किहकम्मेप। वय६ जि७ पतिकमणे८ मासं९ पोसवणकप्पे१०॥२॥आलुको धम्मो पुरिमस्स य पछिमस्सय जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं होइ सचेलो अबेलो य१॥शासपादुद्देसेणं ओघाइहिं समणाइ अहिगच । कडमिह सोसि चिय न कप्पई पुरिमचरिमाणं था मजिसमगाणं तु इर्मजं कडमुदिस्स तस्स वेवत्ति । नो कप्पइ सेसाण उ कप्पा तं एस मेरतिर ॥५॥ सिजायरत्ति भन्नइ आलयसामी य तस्स जो पिंडो। सो सोसि न कप्पइ पसंगगुरुदोसमाचाओ ॥६॥ जइ जग्गति सुविहिया करिति आवस्सयं च अमत्थ । सिआयरोन होई सुत्तेव कए व सो होइ ॥७॥ तणडगलछारमल्लगसिजासंथारपीढलेवाई। सिखायरपिंडो सो न होइ सेहो असोवहिओ३॥८॥ मुदियाइगुणो राया अडविहो | तस्स होइ पिंडत्ति । पुरिमेअराण एसो वाघायाईहिं पडिकुट्टो ॥९॥ ईसरपमिईहिं तर्हि वाघाओ खद्धलोहु दाराणं । दसण संगो गरहा इअरेसिं न अप्पमायाओ॥१०॥ असणाईण चउकं वत्थं तह पत्त पायपुंछणए । निवपिंडम्मि न कप्पर पुरिमंतिमजिणज For Private And Personal use only

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