Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 551
________________ શ્રી નાટક સમયસારના પદો શિષ્યની શંકાનું સમાધાન. ( સવૈયા એકત્રીસા ) पूरव अवस्था जे करम - बंध कीने अब, तेई उदै आइ नाना भांति रस देत हैं। केई सुभ साता कोई असुभ असातारूप, दुहूंसौं न राग न विरोध समचेत हैं।। जथाजोग क्रिया करैं फलकी न इच्छा धरैं, जीवन - मुकतिकौ बिरद गहि लेत हैं। यातें ग्यानवंतकौं न आस्रव कहत कोऊ, मुद्धतासौं न्यारे भए सुद्धता समेत हैं ।।७।। (ऽलश-७-१03) राग-द्वेष-भोड़ अने ज्ञाननुं लक्षएा ( होरा ) जो हितभाव सुराग है, अनहितभाव विरोध । भ्रामिक भाव विमोह हे, निरमल भाव सु बोध ।। ८ ।। ( ऽलश-८-१०४) राग-द्वेष-भोड ४ आसव छे. (छोरा) राग विरोध विमोह मल, एई आस्रवमूल। एई करम बढाईकैं, करें धरमकी भूल ॥ ९॥ ( Sलश-८-१०५ ) सभ्यऱ्हेष्टि छव निरास्रव छे. (होरा ) जहां न रागादिक दसा, सो सम्यक परिनाम । यातें सम्यकवंतकौ, कह्यौ निरास्रव नाम।।१०।। ( ऽलश-१0-१0९ ) ૫૩૫

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