Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 561
________________ ૫૪૫ શ્રી નાટક સમયસારના પદો मौन रहै लहि मंदकषाय, सहै बध बंधन होइ न तत्ता। ए करतूति करै सठ पै, समुझै न अनातम-आतम-सत्ता।।१०।। (सश-१०-१३२) (यो ) जो बिनु ग्यान क्रिया अवगाहै। जो बिनु क्रिया मोखपद चाहै।। जो बिनु मोख कहै मैं सुखिया। ___ सो अजान मूढनिमैं मुखिया।।११।। (१२-११-१33) શ્રીગુરુનો ઉપદેશ અજ્ઞાની જીવો માનતા નથી. (સવૈયા એકત્રીસા) जगवासी जीवनीसौं गुरु उपदेस कहै, तुमैं इहां सोवत अनंत काल बीते हैं। जागौ है सचेत चित्त समता समेत सुनौ, __ केवल-वचन जामैं अक्ष–रस जीते हैं।। आवौ मेरै निकट बताऊं मैं तुम्हारे गुन, परम सुरस-भरे करमसौं रीते हैं। ऐसे बैन कहै गुरु तौऊ ते न धरै उर, मित्रकैसे पुत्र किधौं चित्रकैसे चीते हैं।।१२।। (सश-१२-१३४) જીવની શયન અને જાગૃત દશા કહેવાની પ્રતિજ્ઞા (દોહરા) एतेपर बहु सुगुरु, बोलैं वचन रसाल। सैन दसा जागृत दसा, कहै दुईकी चाल।।१३।। (लश-१३-१३५)

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