Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
૫૪૩
શ્રી નાટક સમયસારના પદો
तैसैं ग्यानवंत नाना भांति करतूति ठानै, किरियाकौं भिन्न मानै याते निकलंक है।।४।।
(सश-४-१२६)
जैसैं निसि वासर कमल रहै पंकहीमैं,
पंकज कहावै पै न वाकै ढिग पंक है। जैसैं मंत्रवादी विषधरसौं गहावै गात,
मंत्रकी सकति वाकै विना-विष डंक है।। जैसैं जीभ गहै चिकनाई रहै रूखे अंग,
पानीमैं कनक जैसे काईसौं अटंक है। तैसैं ग्यानवंत नानभांति करतूति ठानै, किरियाकौ भिन्न मानै यातै निकलंक है।।५।।
(लश-५-१२७)
વૈરાગ્યશક્તિનું વર્ણન ( સોરઠા) पूर्व उदै सनबंध, विषै भोगवै समकिती। करै न नूतन बन्ध , महिमा ग्यान विरागकी।।६।।
(१२-९-१२८)
જ્ઞાન-વૈરાગ્યથી મોક્ષની પ્રાપ્તિ છે. (સવૈયા એકત્રીસા) सम्यकवंत सदा उर अंतर,
ग्यान विराग उभै गुन धारै। जासु प्रभाव लखै निज लच्छन,
___ जीव अजीव दसा निखारै।। आतमको अनुभौ करि कै थिर,
आप तरै अर औरनि तारे। साधि सुदर्व लहै सिव सर्म, सु कर्म-उपाधि विथा वमि डारै।।७।।
(१४-७-१२८)

Page Navigation
1 ... 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572