Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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શ્રી નાટક સમયસારના પદો
मात्म-अनुभव अ २पानी शिपाम. (East) * जो पद भौपद भय हरै, सो पद सेऊ अनूप। जिहि पद परसत और पद, लगै आपदारूप।।१७।।
___ (१२-१७-१3८)
સંસાર સર્વથા અસત્ય છે. (સવૈયા એકત્રીસા) जब जीव सोवै तब समुझै सुपन सत्य,
वहि झूठ लागै तब जागै नींद खोइकै। जागै कहै यह मेरौ तन यह मेरी सौंज,
ताहू झूठ मानत मरन-थिति जोइकै।। जानै निज मरम मरन तब सूझै झूठ,
बूझै जब और अवतार रूप होइकै। वाहू अवतारकी दसामैं फिरि यहै पेच, याही भांति झूठौ जग देख्यौ हम टोइकै।।१८।।
( श-१८-१३८)
સમ્યજ્ઞાનીનું આચરણ (સવૈયા એકત્રીસા) पंडित विवेक लहि एकताकी टेक गहि,
दुंदज अवस्थाकी अनेकता हरतु है। मति श्रुति अवधि इत्यादि विकलप मेटि,
निरविकलप ग्यान मनमैं धरतु है।। इंद्रियजनित सुख दुखसौं विमुख हैकै,
परमके रूप है करम निर्जरतु है। सहज समाधि साधि त्यागि परकी उपाधि , आतम आराधि परमातम करतु है।।१९।।
(लश-१८-१४०)

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