Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
૫૫૦
કલશામૃત ભાગ-૪ जी-(Ea६२) * बहुविधि क्रिया कलेससौं, सिवपद लहै न कोइ। ग्यानकला परकाशसौं , सहज मोखपद होइ।।२६ ।।
(सश-२६-१४६) ग्यानकला घटघट बसै, जोग जुगतिके पार। निज निज , कला उदोत करि, मुक्त होइ संसार।।२७।।
(१२-२७-१४७)
અનુભવની પ્રશંસા (કુંડલિયા) * अनुभव चिंतामनि रतन, जाके हिय परगास।
सो पुनीत सिवपद लहै, दहै चतुरगतिवास।। दहै चतुरगतिवास, आस धरि क्रिया न मंडै। नूतन बंध निरोधि, पूब्बकृत कर्म बिहंडै।। ताके न गनु विकार, न गनु बहु भार न गनु भव। जाके हिरदै मांहि, रतन चिंतामनि अनुभव।।२८।।
(सश-२८-१४८)
સમ્યગ્દર્શનની પ્રશંસા (સવૈયા એકત્રીસા) जिन्हके हियेमैं सत्य सूरज उदोत भयौ,
____ फैली मति किरन मिथ्यात तम नष्ट है। जिन्हकी सुदिष्टिमैं न परचै विषमतासौं ,
समतासौं प्रीति ममतासौं लष्ट पुष्ट है।। जिन्हके कटाक्षमैं सहज मोखपंथ सधै,
मनको निरोध जाके तनकौ न कष्ट है। तिन्हके करमकी कलोलै यह है समाधि, डोलै यह जोगासन बोलै यह मष्ट है।।२९ ।।
(सश-२८-१४८)

Page Navigation
1 ... 564 565 566 567 568 569 570 571 572