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શ્રી નાટક સમયસારના પદો
પરિગ્રહના વિશેષ ભેદ કથન કરવાની પ્રતિજ્ઞા. (સવૈયા એકત્રીસા) आतम सुभाउ परभावकी न सुधि ताकौं,
जाको मन मगन परिग्रहमैं रह्यो है। ऐसौ अविवेकको निधान परिग्रह राग,
__ताको त्याग इहांलौ समुच्चैरूप कह्यो है।। अब निज पर भ्रम दूरि करिवैकै काज,
बहुरौं सुगुरु उपदेशको उमह्यो है। परिग्रह त्याग परिग्रहको विशेष अंग, कहिवैकौ उद्दिम उदार लहलह्यो है।।३०।।
(-30-१५०)
સામાન્ય-વિશેષ પરિગ્રહનો નિર્ણય (દોહરા) त्याग जोग परवस्तु सब, यह सामान्य विचार। विविध वस्तु नाना विरति, यह विशेष विस्तार।।३१।।
(-३१-१५१)
પરિગ્રહમાં રહેવા છતાં પણ જ્ઞાની જીવ નિષ્પરિગ્રહી છે.
(यो ) * पूरव करम उदै रस भुंजै,
___ ग्यान मगन ममता न प्रयुंजै। उरमैं उदासीनता लहिये, यौं बुध परिग्रहवंत न कहिये।।३२।।
(सश-3२-१५२)
પરિગ્રહમાં રહેવા છતાં પણ જ્ઞાની જીવોને પરિગ્રહ રહિત કહેવાનું કારણ.
(सवैया मेत्रीसा) जे जे मनवंछित विलास भोग जगतमैं ,
ते ते विनासीक सब राखे न रहत हैं। और जे जे भोग अभिलाष चित्त परिनाम,
तेऊ विनासीक धारारूप है बहत है।।