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________________ ૫૫૧ શ્રી નાટક સમયસારના પદો પરિગ્રહના વિશેષ ભેદ કથન કરવાની પ્રતિજ્ઞા. (સવૈયા એકત્રીસા) आतम सुभाउ परभावकी न सुधि ताकौं, जाको मन मगन परिग्रहमैं रह्यो है। ऐसौ अविवेकको निधान परिग्रह राग, __ताको त्याग इहांलौ समुच्चैरूप कह्यो है।। अब निज पर भ्रम दूरि करिवैकै काज, बहुरौं सुगुरु उपदेशको उमह्यो है। परिग्रह त्याग परिग्रहको विशेष अंग, कहिवैकौ उद्दिम उदार लहलह्यो है।।३०।। (-30-१५०) સામાન્ય-વિશેષ પરિગ્રહનો નિર્ણય (દોહરા) त्याग जोग परवस्तु सब, यह सामान्य विचार। विविध वस्तु नाना विरति, यह विशेष विस्तार।।३१।। (-३१-१५१) પરિગ્રહમાં રહેવા છતાં પણ જ્ઞાની જીવ નિષ્પરિગ્રહી છે. (यो ) * पूरव करम उदै रस भुंजै, ___ ग्यान मगन ममता न प्रयुंजै। उरमैं उदासीनता लहिये, यौं बुध परिग्रहवंत न कहिये।।३२।। (सश-3२-१५२) પરિગ્રહમાં રહેવા છતાં પણ જ્ઞાની જીવોને પરિગ્રહ રહિત કહેવાનું કારણ. (सवैया मेत्रीसा) जे जे मनवंछित विलास भोग जगतमैं , ते ते विनासीक सब राखे न रहत हैं। और जे जे भोग अभिलाष चित्त परिनाम, तेऊ विनासीक धारारूप है बहत है।।
SR No.008259
Book TitleKalashamrut Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages572
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Spiritual, & Discourse
File Size2 MB
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