Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 569
________________ ૫૫૩ શ્રી નાટક સમયસારના પદો शानी 94 सहा म छे. (East) * ग्यानी ग्यानमगन रहै, रागादिक मल खोइ। चित उदास करनी करै, करम बंध नहि होइ।।३६ ।। (सश-36-१५६) पणीमोह महातम मल हरै, धरै सुमति परकास। मुकति पंथ परगट करै, दीपक ग्यान विलास।।३७ ।। ( श-3७-१५७) જ્ઞાનરૂપી દીપકની પ્રશંસા. (સવૈયા એકત્રીસા) जामैं धूमकौ न लेस वातकौ न परवेस, करम पतंगनिकौं नास करै पलमैं। दसाकौ न भोग न सनेहको संजोग जामैं, मोह अंधकारको वियोग जाके थलमैं ।। जामैं न तताई नहि राग रकताई रंच, लहलहै समता समाधि जोग जलमैं। ऐसी ग्यान दीपकी सिखा जगी अभंगरूप, निराधार फुरी पै दुरी है पुदगलमैं ।।३८ ।। (सश-3८-१५८) જ્ઞાનની નિર્મળતા પર દૃષ્ટાંત. (સવૈયા એકત્રીસા) जैसो जो दरव तामैं तैसोई सुभाउ सधै , ___ कोऊ दर्व काहूकौ सुभाउ न गहतु है। जैसैं संख उज्जल विविध वर्न माटी भखै, माटीसौ न दीसै नित उज्जल रहतु है।। तैसैं ग्यानवंत नाना भोग परिग्रह-जोग, करत विलास न अग्यानता लहतु है।

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