Book Title: Kalashamrut Part 4
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 565
________________ ૫૪૯ શ્રી નાટક સમયસારના પદો १जी-(हो।) प्रभु सुमरौ पूजौ पढ़ौ करौ विविध विवहार। मोख सरूपी आतमा, ग्यानगम्य निरधार।।२३।। (१२-२३-१४३) જ્ઞાન વિના મોક્ષમાર્ગ જાણી શકાતો નથી. (સવૈયા એકત્રીસા) काज विना न करै जिय उद्यम, लाज विना रन मांहि न जूझै। डील विना न सधै परमारथ, सील विना सतसौं न अरूझै।। नेम विना न लहै निहचै पद, प्रेम विना रस रीति न बूझै। ध्यान विना न थंभै मनकी गति, ग्यान विना सिव पंथ न सूझै।।२४।। (लश-२४-१४४) જ્ઞાનનો મહિમા (સવૈયા તેવીસા) ग्यान उदै जिन्हकै घट अंतर, ___ जोति जगी मति होत न मैली। बाहिज दिष्टि मिटी जिन्हके हिय, आतमध्यान कला विधि फैली।। जे जड चेतन भिन्न लखें, सुविवेक लियें परखें गुन–थैली। ते जगमैं परमारथ जानि, गहैं रुचि मानि अध्यातमसैली।।२५।। (तश-२५-१४५)

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